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________________ ३६. धाय इसंडे .. बारस चंदा पभासिसु ... (जीवा० ३।८०६) ३८. कालोए 'कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा पभासिसु.. (जीवा० ३८२०) ३६. धातकीखंड मझार, बार चंद्र द्वादश रवि । __ आगल त्रिगुणा सार, पूरवला पिण भेलियै ।। ३७. बार धातकीखंड, तेहनें त्रिगुणा कीजिये । 8 छत्तीस सुमंड, पूरवला षट मेलियै ।। ३८. जंबूद्वीप नां दोय, लवणोदधि नां च्यार वलि । ए षट भेल्यां होय, बयांलीस कालोदधि । ३६. इहविध सगलै ठाम, त्रिगुणा करिने पूर्वला । भेलीजै अभिराम, आगल द्वीप समुद्र में ।। ४०. अर्थ विषे ए गाह, तिण अनुसारे हैं कह्यो । मिलतो न्याय सुराह, संख्या द्वीप समुद्र नीं' ॥ (ज० स०) ४१. *सेवं भंते ! अर्थ जे अंक बाणुं तणो, एकसौ नैं गुणंतरमीं ढाले सुजश घणो । स्वाम भिक्खु भारीमाल राय नैं प्रसाद है, 'जय-जश' हरष आनन्द गण अहलाद है। नवमशते द्वितीयोद्देशकार्थः ॥२॥ ४१. सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।। ढाल : १७० सोरठा १. द्वितीय उदेशा मांहि, द्वीप तणी कहि वारता । अन्य प्रकारे ताहि, तेहिज तृतीय उद्देश हिव ।। १. द्वितीयोद्देशके द्वीपवरवक्तव्यतोक्ता, तृतीयेऽपि प्रकारान्तरेण सैवोच्यते। (वृ० प० ४२८) २,३. रायगिहे जाव एवं वयासी- कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं एगूरुयमणुस्साणं एगूरुयदीवे नाम दीवे पण्णत्ते ? ४. 'दाहिणिल्लाणं' ति उत्तरान्तरद्वीपव्यवच्छेदार्थम् । (वृ० प० ४२८) दूहा २. नगर राजगृह जाव इम, बोल्या गोतम स्वाम । - हे भगवंत ! किहां अछ, दक्षिण दिशि नों ताम ।। ३. एगोरुक जे मनुष्य नों द्वीप एगोरुक नाम । __ अंतरद्वीप किहां कह्यो? तब भाखै जिन स्वाम ।। ४. उत्तर दिशि में पिण अछ, अंतरद्वीप प्रसीध । इण कारण दक्षिण तणो, गोयम प्रश्न सुकीध ॥ अन्तरद्वीप वर्णन सुणो जी। (ध्रुपदं) ५. जंबूद्वीप नामा द्वीप में जी, मंदरगिरि मैं पिछाण । दक्षिण दिशि नै विषे अछ जी, इम चलहिमवंत गिरि जाण ।। ६. ते चूलहिमवंत वर्षधर गिरि, तेहनें कूण ईशाण । तेह तणां चरिमांत थी, छेहड़ा थकी पहिछाण ।। ७. जंबुद्वीप नी जगती थकी, ऊपर थइ कहिवाय । __ लवणसमुद्र प्रतै तिहां, ईशाणकूण रै माय ॥ *लय : इण सरवरिया री पाल लिय : वीर वखाणी राणी चेलणा जी ५,६. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ। ७. लवणसमुदं उत्तरपुरत्थिमे गं । १० भगवती-जोड़ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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