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५. क्षत्रियकंड ग्राम नगर विषे स्थु, इन्द्र महोच्छव आजो रे। अथवा खंधक कात्तिकेय न महोच्छव,
कै हरि बलदेव नों स्हाजो रे ?
५. किणं अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहे इ वा,
खंदमहे इ वा, मुगुंदमहे इ वा, 'खंदमहेइ व' त्ति स्कन्दमहः --- कार्तिकेयोत्सव: 'मुगुंदमहेइ व' त्ति इह मुकुन्दो वासुदेवो बलदेवो वा
(वृ० प० ४६३) ६. नागमहे इ वा, जक्खमहे इ वा, भूयमहे इ वा,
कूवमहे इ वा, ७. तडागमहे इ वा, नईमहे इ वा, दहमहे इ वा,
पव्वयमहे इ वा, ८. रुक्खमहे इ वा, चेइयमहे इ वा थूभ महे इ वा,
६. अथवा नाग देव न महोच्छव, के जक्ष व्यंतर नों जाणी।
अथवा भूत तणो महोच्छव छै, के कप महोच्छव माणी ।। ७. अथवा तलाव तणो महोच्छव छ, के नदी महोच्छव न्हाली।
अथवा आज महोच्छव द्रह नो, कै गिरि महोच्छव सुविशाली ।। ८. अथवा रूख तणो महोच्छव छ, के चैत्य महोच्छव चंगो।
अथवा मृतक बालै ते ऊपर, चोतरो थभ प्रसंगो ।। ६. जे भणी ए बहु उग्र वंश नां, ऊपनां वर कुलभूता।
भोगा भोग-वंश में ऊपनां, कै राजन-वंश प्रसूता ।। १०. ईखाग वंश तणां फून ऊपनां, ज्ञातपुत्र गुणवंता।
कोरव क्षत्रिय क्षत्रिय नां सुत, सुभट सुभटसुत मंता ।। ११. सेनापति सेना नां नायक, सीखदायक पसत्थारो।
लेच्छकी जाति नां वलि ब्राह्मण, इब्भ गजंतव्य भूमि मझारो।।
६. जण्णं एते बहवे उग्गा, भोगा, राइण्णा,
१२. जिम उववाइ मांहि कह्यो छ, सार्थवाह सुखकारो।
प्रमुख सगलाइ स्नान करी फुन, करि वलि कर्म ववहारो।। १३. जिम उववाइ उपंगे आख्यं, जावत निकलै ताह्यो। ____ जन वृंद इक दिशि सन्मुख जाय, स्युं महोच्छव पुर मांह्यो ।। १४. इम मन मांहि विचारी जमाली, कंचुइज पुरुष बोलायो।
अंतःपुर नी चिंता नों कारक, ते कंचइज नैं कहै वायो। १५. अहो देवानुप्रिया ! क्षत्रियकुंडज, ग्राम नगर रै मांह्यो।
आज महोच्छव इंद्र तणो स्युं, जाव निकल जन बंद ताह्यो ? १६. तिण' अवसर ते पुरुष कंचइज, जमाली क्षत्रिय कूमारो।
इम पूछ्ये छते हरषित हुवो, पायो संतोष जिहवारो॥ १७. श्रमण भगवंत महावीर तणो जे, आगम आवि धारो।
तेह विषे जै ग्रह्य कीधू जिण, निश्चय निर्णय सारो।। १८. हाथ दोनइ जोड़ जमाली नै, क्षत्रियकुमर प्रतेहो। जय विजय शब्द करिने बधावै, बधावी वचन वदेहो ।
गीतक-छंद १६. जय त्वं विजय त्वं एहवे आशीर्वाद वचन कही।
भगवंत न आगमन ते, आनंद करि तुझ वृद्धि ही ।।
१०. इक्खागा, णाया, कोरव्वा, खत्तिया, खत्तियपुत्ता भडा,
भडपुत्ता, ११. जोहा पसत्यारो......"लेच्छई....."इब्भ........
'पसत्थारो'त्ति-धर्मशास्त्रपाठका: ............ इभ्याः यद्रव्यनिचयान्तरितो महेभो न दृश्यते
(ओ० वृ० प० ११०) १२. जहा ओववाइए (ओ० सू० ५२) जाव (सं० पा०)
सत्थवाहप्पभितयो व्हाया कयबलिकम्मा १३,१४. जहा ओववाइए (ओ० सू० ५२) जाव खत्तिय
कुंडग्गामे नयरे मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति ? -एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कंचुइ-पुरिसं सद्दावेइ,
सद्दावेत्ता एवं वदासी१५, किण्ण देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे
इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति ? (श० ६/१५८) १६. तए णं से कंचुइ-पुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं
एवं वुत्ते समाणे हट्ठतु? १७. समणस्स भगवओ महावीरस्स आगमणगहिय
विणिच्छए। १८. करयल जाव (सं० पा०) जमालि खत्तियकुमार
जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी
१६. जय त्वं विजयस्व त्वमित्येवमाशीर्वचनेन भगवतः समागमनसूचनेन तमानन्देन वर्द्धयतीत भावः ।
(वृ० प० ४६३) २०. नो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नपरे
इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छति ।
२०. *अहो देवानुप्रिया ! क्षत्रियकंडज ग्राम नगर में आजो।
निश्चै नहीं छै इंद्र महोच्छव, जाब निकलै तेहथी समाजो।। *लय : लाल हजारी को जामो १. ओवाइयं सूत्र ५२ के वाचनान्तर में 'पायदद्दरेणं......"एगदिसि एगाभिमुहे" पाठ है । देखें ओ० वृ० ५० ११३
श० ६, उ० ३३, ढाल २०१ २४१
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