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________________ नक्षत्र त्रिण सौ छत्तीस अतिहि सोहता, एक हजार नैं छप्पन ग्रह मन मोहता। २४. तारा नी संख्या अठ लाख कोडाकोड़ है, तीन सहस्र कोडाकोड़ अधिक सुजोड़ है। सात सौ कोड़ाकोड़ वलि ऊपर कह्या, एतला तारका धातकीखंड द्वीपे रह्या । २५. कालोद चंद बयांल बयांलिस दिनकरा, नक्षत्र एक हजार एक सौ छिहंतरा। तीन हजार नैं छसौ छिन्नं ऊपर, एतला मोटा ग्रह ते सुरवर मन हरै।। एगं च गहसहस्सं, छप्पन्नं धायईसंडे । (वृ० प०४२७) २४. अठेव सयसहस्सा तिन्नि सहस्साई सत्त य सयाई। धायइसंडे दीवे तारागणकोडिकोडीणं । (वृ०प० ४२७) २५. बायालीसं चंदा बायालीसं च दिणयरा दित्ता । कालोदहिमि एए चरंति संबद्धलेसागा । नक्खत्तसहस्स एग एगं छावत्तरं च सयमन्नं । छच्च सया छन्नउया महागहा तिन्नि य सहस्सा ॥ (वृ०५० ४२७) २६. अट्ठावीसं कालोदहिमि बारस य तह सहस्साई । णव य सया पन्नासा तारागणकोडिकोडीणं ।। (वृ० प० ४२७) २६. तारा अठावीस लाख तणी कोड़ाकोड़ है, ऊपर द्वादश सहस्र कोड़ाकोड़ि जोड़ है। नवसौ कोड़ाकोड़ अधिक बखाणिया, पचास कोड़ाकोडि कालोदधि आणिया ।। २७. द्वीप पुक्खरवर चंद्र एक सौ चोमाल है, रवि एक सौ चोमालीस चार विशाल है। चार चरै कह्यो ते रवि शशि सहु चर नहीं, अभ्यंतर-पुक्खराद्धे बोहितर भमैं सही ।। २८. नक्षत्र च्यार हजार में बत्तीस ऊपरं, महाग्रह द्वादश सहस्र छह सौ रु बोहितरं । तारा छिन्न लक्ष कोडाकोड़ नी जोड़ है, चोमालीस सहस्र च्यार सौ कोड़ाकोड़ है। २७. चोयालं चंदसयं चोयालं चेव सूरियाण सयं । पुक्खरवरंमि दीवे भमंति एए पयासिता। इह च यद्भ्रमणमुक्तं न तत्सर्वांश्चन्द्रादित्यानपेक्ष्य, किं तहि ? पुष्करद्वीपाभ्यन्तरार्द्धवर्तिनी द्विसप्ततिमेवेति । (वृ० प० ४२७) २८. चत्तारि सहस्साई बत्तीसं चेव होंति नक्खत्ता। छच्च सया बावत्तरि महागहा बारससहस्सा ।। छन्नउइ सयसहस्सा चोयालीसं भवे सहस्साई । चत्तारि सया पुक्खरि तारागणकोडिकोडीणं ।। (वृ०प० ४२७) २६. बावत्तरि च चंदा बावत्तरिमेव दिणयरा दित्ता । पुक्खरवरदीवड्ढे चरति एए पभासिता॥ तिन्न सया छत्तीसा छच्च सहस्सा महम्गहाणं तु । नक्खत्ताणं तु भवे सोलाई दुवे सहस्साई॥ (वृप० ४२७) ३०. अडयाल सयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साई। दो य सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं । (वृ०प० ४२७) २६. अभ्यंतर-पुक्खरार्द्ध द्वीप – विषे सही, चंद्र बोहितर सूर बोहितर गगन ही। मोटा ग्रह षट सहस्र तीनसौ छत्तीस है, नक्षत्र दोय हजार मैं सोल जगीस है। ३०. अडतालीस लक्ष कोडाकोड़ि पिछाणज्यो, बावीस सहस्र कोड़ाकोड़ि ऊपर आणज्यो, दोय सौ कोड़ाकोड़ तारा शोभावता, अभ्यंतर पुक्खरार्द्ध विषे सुख पावता॥ ३१. मनुष्य क्षेत्र में एक सौ बत्तीस चंद्रमां। सूर्य एक सौ बत्तीस अधिक आनंद मां। महाग्रह ग्यार हजार छह सौ सोल वली, नक्षत्र तीन हजार छह सौ छिन्नु रली ॥ ३२. तारा अठ्यासी लक्ष कोड़ाकोडि जोड़ है, ऊपर चालीस सहस्र कोडाकोड़ है। सात सौ कोड़ाकोड़ ए पूरा ऊणां नहीं, यावत एक शशि परिवार हिवै कहं सही। ३१. बत्तीसं चंदसयं बत्तीसं चेव सूरियाण सयं । सयलं मणुस्सलोयं चरंति एए पयासिता । एक्कारस य सहस्सा छप्पि य सोला महागहाणं तु । छच्च सया छण्णउया णक्खत्ता तिन्नि य सहस्सा ॥ (वृ०प० ४२७, २८) ३२. अडसीइ सयसहस्सा चालीस सहस्स मणुयलोगंभि । सत्त य सया अणूणा तारागणकोडिकोडीणं ।। (वृ० प० ४२८) ८ भगवती-जोड़ Jain Education International Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003619
Book TitleBhagavati Jod 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages490
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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