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सोरठा
१४. प्रथम उद्देशे ताहि, जंबद्वीप नी वारता। ___ जंबूद्वीपादि मांहि, जोतिषि नी कहिये हिवे ।।
१४. अनन्तरोद्देशके जम्बूद्वीपवक्तव्यतोक्ता द्वितीये तु जम्बूद्वीपादिषु ज्योतिष्कवक्तव्यताऽभिधीयते।
(वृ०प० ४२६) १५. रायगिहे जाव एवं वयासी-जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे
केवइया चंदा पभासिसु वा ? पभासेंति वा ? प्रभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे
१६. जाव..........
नव य सया पन्नासा, तारागण कोडीकोडीणं ॥ सोभिसु, सोभिति सोभिस्संति ॥ (जी० सू०७०३)
१७. गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे दो चंदा पभासिसु वा३ दो
सूरिया तर्विसु वा३ छप्पन्नं नक्खत्ता जोगं जोइंसु वा ३
(वृ प० ४२७)
१५. *राजगृह नगर में जावत प्रश्न गोयम भला, सुगणा!
जंबुद्वीप नामा द्वीप विषे प्रभु ! केतला? सुगणा ! चंद्र प्रभास कियो करै नैं करिस्यै सही, सुगणा !
इम जिम जीवाभिगम में वक्तव्यता कही सुगणा ! १६. जाव नव सै पचास तारा गण कोडाकोड़ ही,
शोभ प्रतै शोभ्या शोभै शोभस्यै जोड़ ही । जीवाभिगम' रै मांहि प्रश्न चंद्रादिक तणो,
वीर प्रभ दियो जाब संक्षेप कहूं सुणो॥ १७. बे चंद्र प्रभास कियो रु करै करस्यै सही,
सूर्य दोय तप्या रु तपै तपस्यै वही। छप्पन नक्षत्र चंद्र संघात बखाणिय,
जोग जोड्या जोड़े जोड़स्यै तेह पिछाणियै ।। १८. ग्रह एक सौ नैं छिहतर जेह आकाश में,
चार प्रति चरचा काल अतीत हुलास में। वर्तमान पुन चार प्रति चरै छै तिके,
काल अनागत मांहि चार चरस्यै जिके ।। १६. एक लाख कोड़ाकोड़ी तारा जाणिय,
वलि तेतीस हजार कोड़ाकोडि आणियै । नवसै कोड़ाकोडि पंचास कोड़ाकोडि जे,
शोभ प्रति शोभ्या शोभै शोभस्यै जोडि जे ॥ २०. हे प्रभु! लवणसमुद्र विष चंद्र केतला ?
इम जिम जीवाभिगम' जाव तारा जेतला। ते इहविध कहिवाय च्यार चंद जाणिय, सूर्य च्यार उदार के कांत बखाणियै ।।
१८. छावत्तरं गहसयं चारं चरिंसु वा ३
(वृ० प० ४२७)
१६. एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं, खलु भवे सहस्साई।
नव य सया पन्नासा, तारागण कोडिकोडीणं ।। सोभिंसु, सोभिति, सोभिस्संति । (श० ६।३)
२१. नक्षत्र एक सौ द्वादश पवर सुहामणां,
तीन सौ बावन मोटा ग्रह रलियामणां । तारा बे लख कोड़ाकोड़ नी जोड़ है,
सतसठ सहस्र कोडाकोडि नवस कोडाकोड़ है। २२. धातकीखंड कालोद पुक्खरवरद्वीप ही,
अभ्यंतर - पुखरार्द्ध मनुष्यक्षेत्रे वही। एह सर्व विषे जीवाभिगम जाव जोड़ जे,
एक शशि परिवार तारा कोड़ाकोड़ जे॥ २३. बारै चंद बारै सूर धातकीखंड में,
रवि शशि बिहुं चोबीस हरष घमंड में। *लय : इण सरवरिया री पाल १. (सू० ७०३)
२. (सू० ७२२)
२०. लवणे णं मंते ! समुद्दे केवतिया चंदा पभासिसु वा ?
पभासेंति वा ? पभासिस्संति वा ? एवं जहा जीवाभिगमे जाव ताराओ (....श० ६।४) गोयमा ! लवणे णं समुद्दे चत्तारि चंदा पभासिसु
वा ३ । चत्तारि सूरिया तर्विसु वा ३(वृ० प० ४२७) २१. बारसोत्तरं नक्खत्तसयं जोगं जोईसु वा ३ तिन्नि
बावन्ना महग्गहसया चारं चरिंसु वा ३ दोन्नि सयसहस्सा सत्त४ि च सहस्सा नवसया तारागणकोडिको
डीणं सोहं सोहिंसु वा ३। (वृ०प० ४२७) २२. धायइसंडे, कालोदे, पुक्खरवरे, अभितरपुक्खरद्धे, मणु
स्सखेत्ते - एएसु सव्वेसु जहा जीवाभिगमे (सू० ८०६, ८१०, ८३०, ८३४) जाव-एगससीपरिवारो, तारागणकोडिकोडीणं॥
(श० ६।४) २३. बारस चंदा पभासिंसु वा३ बारस सूरिया तविसु वा३
एवं-"चउवीसं ससिरविणो नक्खत्तसया य तिन्नि छत्तीसा।
श०६, उ०२, ढाल १६६ ७
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