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ढाल : ६१
दूहा
१. पूर्वे आऊखो कह्य ु, आरंभादि-सहीत
२. हे भदंत ! भव-अंत ! प्रभु आरंभ- सहित स्यूं नारकी, ३. अथवा आरंभ - रहित छँ,
आयुक्त छै जेह । डंडक चवीसेह || ! भयांत ! हे भगवान ! परिग्रह सहित पिछाण ? परिग्रह -रहित जगीस ? इम गोयम पूछे छते, जिन भाखै सुण शीस !
* जय जयकारी वाण जिनेंद्र नी, दीपक देव दिनंदो रे । शीतल चंद सरीखा स्वाम जी, जय जश करण जिनंदो रे ।। (ध्रुपदं )
४. नेरइया आरंभ-परिग्रह- सहित छै, आरंभ-रहित न थायो रे । परिग्रह - रहित नहीं छै नारकी, प्रभु ! किण अर्थे ए वायो रे ?
५. जिन कहै नारकी पृथ्वीकाय नें, आरंभ-पीड पमायो । यावत् पीड़ करै तसकाय नैं हिव निसुणो तसु न्यायो । सोरठा
६. अव्रत
आश्री एह, अथवा मन कर नैं हणं । किणकि काय नें तेह, पीड़ पमावै वलि ह ॥ ७. *शरीर परिग्रहवंत छै नारकी, तन नीं मूर्छा तासो । कर्म परिग्रहवंत छै नेरइया, ग्रहण करी कर्म रासो ॥ ८. सचित्त अचित्त वलि मिश्र द्रव्ये करी, परिग्रह सहित पिछाणो । तिण अर्थे करि आरंभ - सहित छै, परिग्रह सहित सुजाणो ||
६. प्रभु ! असुरकुमार आरंभ सहित छ ? पूछा एह वदीतो । जिन कहै आरंभ - परिग्रह- सहित छै, नहि आरंभ-परिग्रह-रहीतो ॥
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१०. किण अर्थे ? तब जिन कहै असुर ते, पृथ्वी पीड़ उपावै । यावत् त्रस नों पिण आरंभ करें, शरीर परिग्रह थावे ॥ ११. कर्म परिग्रहवंत ग्रहण किया, भवन परिग्रहवतो । देव देवी मनुष्य नैं मनुष्यणी, त्यां सूं ममत्व करतो ॥ *लय : आरंभ करतो जीव संक नहीं ।
७८ भगवती-जोड़
१. अनन्तरमायुरुक्तम्,
आरम्भादिना अथायुष्मत चतुर्विंशतिदण्डकेन प्ररूपयन्नाह - ( वृ० प० २३७ ) २. नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा ?
३. उदाहु अणारंभा अपरिग्गहा ?
४. गोयमा ! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, णो अणारंभा अपरिग्गहा । ( श० ५ / १८२ ) सेकेणट्ठणं भंते ! एवं बुच्चई - नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अणारंभा अपरिग्गहा ?
५. गोयमा ! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, जाव (सं० पा० ) तसकायं समारंभंति ।
७. सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति ।
८. सचित्ताचित्त मीसयाई दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति । से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, तो अणारंभा अपरिग्गहा ।
(श० ५ / १८३) ६. असुरकुमारा णं भंते ! कि सारंभा ? पुच्छा । गोयमा ! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा, नो अणारंभा अपरिग्गहा । ( श० ५ / १८४ ) १०. से केणट्ठेणं ? गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकार्य समारंभंति जाव तसकार्य समारंभंति, सरीरा परिगहिया भवंति |
११. कम्मा परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ
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