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४. वीर कहै सुण गोयमा ! कदाचित कंप हो वलि विशेष कंपाय । यावत ते ते भाव नैं परिणमै छे हो सुण गोतम ! वाय ॥ ५. कदाचित परमाणुओ, नहि कंपै हो ए स्थिर कहिवाय । यावत ते ते भाव में नहि परिणमै हो स्थिर नीं अपेक्षाय ।। ६. संघ प्रभु ! दुप्रदेशियो, ए तो की हो यावत् परिणमंत ? जिन कहै की कदाचित, जाव परिणमै हो धुर भंग ए हूंत ॥
७. कदाचित् ते कंप नहीं, जाव न परिणमे हो ए दूजो भंग । कदा देश इक कंपतो, देश न कंप हो तीजो भांगो ए बंग ॥ ८. संघ प्रभु ! तीन प्रदेशियो, एतो कंप हो यावत् परिणमंत ? जिन कहै कंप कदाहिं, जाव परिणमै हो पहिलो भंगो एव ।। ६. कदात्रि कंप नहीं, जाव न परिणमै हो ए दूजो भंग । कदा देश इक कंपतो, देश न कंपै हो तीजो भांगो ए चंग ॥
सोरठा
१०. एक देश
पंत, एक देश तथाविध परिणमंत, न्याय तृतीय ११. एक आकाश प्रदेश, वे बिहु नैं सुविशेष,
प्रदेश तेह एक देश
१८. पुद्गल तेहनुं ईज
कंप
*लय : वीर सुणो मोरी वीनती
भंगा
में
वंछ्यो
१२. "कदा देइक कंपतो,
नहि कंप हो बहुदेशा गम्म | नहि कंप हो इक देश पंचम्म | एतो की हो यावत् परिणमंत ? जिन कहे की कदा चिहूं जावपरिणमें हो पहिलो भांगो एहत ॥ १४. कदा चिह्न कंप नहीं, जाव न परिणमैं हो ए दूजो भंग । कदा देश इक कंपतो, देश न कंप हो तीजो भांगो ए चंग ॥
कवा देश वह कंपता, १२. संघ प्रभु ! प्यार प्रदेशियो,
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नहीं
तणों ॥
सोरठा
१५. दोय
ए ॥
आकाश प्रदेश, तेह विषे वेवे रह्या । ते माटे सुविशेष, एक वचन बिदेश १६. कदा देश इक कंपतो, नहि कंप हो बहुदेशा गम्म कदा देश बहू कंपता, नहि कंप हो इक देश पंचम्म | १७. कवा देश वह कंपता नहि कंपे हो बहुदेशा पष्टम्म | इमहिज पंच प्रदेशियो, यावत् कहिवो हो अनंत प्रदेशिक गम्म ॥
,
सोरठा
नों अधिकार पूर्वे जे आस्यो अछे । विचार, कहिये छे हिव आगलं ॥
रह्या ।
इहां ॥
४. गोयमा ! सिय एयति वेयति जाव तं तं भावं परिणमति,
५. सिय नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति । ( श० ५ / १५० ) ६. दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयति जाव तं तं भावं परिणमति ?
गोयमा ! सिय एयति जाव तं तं भावं परिणमति । ७. सिय नो एयति जाव तो तं तं भावं परिणमति । सिय देसे एयति, देसे नो एयति । ( श० ५ / १५१) ८. तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयति ?
गोयमा ! सिय एयति, सिय नो एयति । सिय देसे एयति न दे पति ।
१२. सिय देसे एयति, नो देसा एयंति। सिय देसा एयंति, नो देसे एपति ।
१३. चउप्पएसिए णं भंते ! खंधे एयति ?
गोमा ! सिय एयति,
१४. सिय नो एयति । सिय देसे एयति, नो देसे एयति ।
( श० ५ / १५२ )
१६. सिय देसे एयति, नो देसा एयंति । सिय देसा एयंति, गो देखे पति
१७. सिय देसा एयंति, नो देसा एयंति। जहा चउप्पएसिओ तहापंचओ, तहा जाव अनंतयएसओ (०२ / १५३)
१८. पुलाधिकारादेवेदं सूत्रम् (बृ० प०२३३)
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श०५, उ० ७, ढाल ८
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