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१२२. लौकिक जेह कथित, अज्ञानी मिथ्यातीइं।
स्वछंदबुद्धि रचित, भारत जावत वेद चिहुं ।'
१२३. द्वितीय लोकोत्तर जन्न, जे अरिहंत भगवंत जी ।
उत्पन्न ज्ञान दर्शन्न, तास धरणहारे प्रभ ।।
१२२. से कि तं लोइए आगमे ?
लोइए आगमे -जण्णं इमं अण्णाणिएहि मिच्छादिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा--भारहं जाव चत्तारि वेया संगोवंगा । से तं लोइए आगमे।
(अणु० ५४८) १२३. से कि तं लोगुत्तरिए आगमे?
लोगुत्तरिए आगमे-जण्णं इमं अरहंतेहि, भगवंतेहिं
उप्पण्णनाणदंसणधरेहि १२४,१२५. तीयपडुप्पण्णमणागयजाणएहिं सव्वण्णूहि
सव्वदरिसीहि तेलोक्कवहिय-महिय-पूइएहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं,
१२४. तीन काल नां जाण, आंसू-वहित अमर नर ।
निरख्या जिन गुण-खाण, महिय तास गुणग्राम करि। १२५. पूजित भाव करेह, सर्व वस्तु ना जाण प्रभु ।
सर्व वस्तु देखेह, तिणे परूप्या बार अंग ॥ १२६. प्रथम अंग आचार, यावत् दृष्टीवाद' फुन ।
अथवा आगम सार, तीन प्रकार परूपिया ।। १२७. गणधर कृत वर सुत्त, अर्थागम अरिहंत कृत ।
उभयागम बिहुउक्त, अथवा आगम त्रिविध फुन।
१२६. आयारो जाव दिट्ठिवाओ।
(अणु० ५४६)
१२७. अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते तं जहा- सुत्तागमे
अत्थागमे तदुभयागमे। (अणु० ५५०)
अहवा आगमे तिविहे पण्णत्ते, १२८. अत्तागमे अणंतरागमे परंपरागमे।
१२६. तित्थगराणं अत्थस्स अत्तागमे ।
१३०. गणहराणं सुत्तस्स अत्तागमे,
१३१. अत्थस्स अणंतरागमे ।
१२८. आत्मागम धुर आण, अनंतरागम द्वितीय फून ।
परंपरागम माण, हिव निर्णय एहनों कहु । १२६. तीर्थंकर मैं जाण, अर्थागम आत्मा थकी ।
विण उपदेश पिछाण, तिण सं आत्मागम थया । १३०. गणधर नै पहिछाण, सूत्रागम छै आत्म थी।
तेहनों गंथ्यो जाण, आत्मागम ते सूत्र नों। १३१. अर्थ तणो अवलोय, आगम जाणपणो प्रवर ।
अणंतरागम जोय, गणधर तण कहोजियै ।। १३२. गणधर नां शिष्य सार, जंबू ने जे सूत्र नों।
अणंतरागम धार, परंपरागम अर्थ नों। १३३. तिण उपरत विचार, प्रभवादिक नैं सूत्र नुं ।
अर्थ तणु पिण घार, जाणपणो छै ज्ञान ते ॥ १३४. आत्मागम न कहाय, अणंतरागम पिण नहीं ।
परंपरागम थाय, हिव ए कहूं जुओ-जुओ।। १३५. अर्थ तणो पहिछाण, आत्मागम तीर्थंकरे ।
गणधर तणेज जाण, अणंतरागम अर्थ नों।। १३६. गणधर ना जे शीस, अथवा प्रशिष्य तेहना ।
अनुक्रम शीस जगीस, परंपरागम अर्थ नों।
१३२. गणहरसीसाणं सुत्तस्स अणंतरागमे, अत्थस्स परं
परागमे । १३३,१३४. तेणं परं सुत्तस्स वि अत्थस्स वि नो अत्ता
गमे, नो अणंतराममे, परंपरागमे ।
१, २. यह जोड़ संक्षिप्त पाठ के आधार पर की गई है। अनुयोगद्वार के इस
आदर्श में पाठ पूरा है। संक्षिप्त पाठ की सूचना पाद-टिप्पण में दी गई
श०५, उ०४, ढाल ८३ ४३
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