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________________ गोतक-छंद १४. जिमहीज गो तिम गवय फुन, जिम गवय तिम गो जाणिय । इह खुर ककुद शृंग पूंछ प्रमुखज, सदृश बिहु नों माणिय ।। ६४. से कि त पायसाहम्म? पायसाहम्मे-'जहा गो तहा गवओ, जहा गवओ सहा गो।' से तं पायसाहम्मे । (अणु० ५४०) खरककुदविषाणलाङ्गलादेद्वयोरपि समानत्वात् __(अनु० वृ० प० २०१) ६५. नवरं सकम्बलो गौर्वृत्तकण्ठस्तु गवय इति प्रायःसाधर्म्यता। (अनु० वृ० प० २०१) सोरठा १५. णवरं इतो विशेख, गो न कंबल प्रगट ही। कंठ वाटलुं देख, गवय-रोझ न जाणिये ॥ ६६. बहुलपणुं ते पाय, सदृशपणुं का तसुं । तृतीय भेद हिव आय, सर्वसाधर्म्य तणूं कहु ।। १७. सर्व भिन्न छै सोय, क्षेत्र काल प्रमुख करी । एक सरीख न होय, तिण सं सर्वसाधर्म्य नहि ।। १८. तृतीय भेद किम ख्यात, तथापि तसं वंछा तणुं । अरह प्रमुख विख्यात, तिण करि ओपम कहीजिय ।। ६७,६८. से कि तं सव्वसाहम्मे ? सब्वसाहम्मे ओवम्म नत्थि तहावि तस्स तेणेव ओबम्मं कीरइ। गीतक-छंद ६. अरिहंत जे अरिहंत सादृश, करत कारज जेहवू । चिउं तीर्थ वर धुर स्थापवै, जन अन्य नहि को एहवू । ६६. जहा अरिहंतेहि अरहतसरिसं कयं । तत्किमपि सर्वोत्तमं तीर्थप्रवर्तनादिकार्यमर्हता कृतं यदहन्नेव करोति नापरः कश्चिदिति भावः । (अनु० वृ० प० २०१) १००. चक्कवट्टिणा चक्कवट्टिसरिसं कयं, १०१. वासुदेवेण वासुदेवसरिसं कयं, १००. वलि चक्रवर्ती चक्रि सदृश, कार्य कर्ता जाणियै । षट् खंड साधन प्रमख जे जन, अन्य को नहि ठाणिय।। १०१. फुन अर्द्धचक्री करत कारज, अर्द्धचक्री सारिखो । युद्ध सूर नैं प्रतिमल्ल हंता, अन्य को नहिं पारिखो। १०२. बलदेव ते बलदेव सादृश, कृत्य कृत पद अमर ही । सुर सहस्राधिष्ठित हलादिक युद्ध अन्य ए सम को नहीं।। १०३. मुनि करै कारज मुनी सरिखू, अन्य को न करै इसु । सम्यक्त्व चारित्र बिन क्रिया कृत, तेह पिण नहि मुनि जिसु ।। १०२. बलदेवेन बलदेवसरिसं कयं, १०३. साहुणा साहुसरिसं कयं । से त सव्वसाहम्मे । से तं साहम्मोवणोए । (अणु० ५४२) सोरठा १०४. साधर्म्य-उपनय ख्यात, वैधर्म्य-उपनय त्रिविध । किंचित्वैधर्म्य जात, प्राय-सर्व-वैधर्म्य फुन ।। १०५. सबली-काबरी गाय, जन्म्यो जेहवो वाछरो । तेहवो वाछर नाय, बहुली-काली गा जण्यों ।। १०६. बहुली-काली जात, जेहवो छै जे बाछरो। तेहवो वच्छ न थात, गाय काबरी नों जण्यों ।। १०४. से कि तं वेहम्मोवणीए ? वेहम्मोवणीए तिविहे पण्णत्ते--किचिवेहम्मे, पायवेहम्मे, सव्ववेहम्मे । (अणु० ५४३) १०५. से कि तं किंचिवेहम्मे ? किचिवेहम्मे-जहा सामलेरो न तहा बाहुलेरो, १०६, जहा बाहुलेरो न तहा सामलेरो। से तं किंचिवेहम्मे। (अणु० ५४४) श०५, उ०४, ढाल ८३ ४१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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