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________________ ७६. नायाधम्मकहाओ २५६ सूयगडो २१५१३२ ७६. ज्ञाता मांहि अदंभ, प्रतिलाभ सुकदेव नैं । दक्खिणाए पडिलंभ, सूगडांग इकवीसमें । ७७. श्रावक देवै सोय, पडिलाभ पाठ कह्यो तिहां । धर्मद्वेषी दे कोय, त्यां पिण पडिलभ पाठ है। ७८. साधु नैं दे सोय, त्यां पिण पडिलभ पाठ है । दै अन्यतीर्थक – कोय, त्यां पिण पडिलभ पाठ है ।। ७६. अन्य असंजति देह, त्यां पिण पडिलभ पाठ है । तिण कारण वच एह, गुरु बुद्धि रो कारण नहीं । ८०. केइक निपट अजान, श्रमण कहै साधू भणी । माहण श्रावक दान, एकांत निर्जर तसु कहै ।। ५१. प्रथम पाठ नों अर्थ, विरुद्ध करै इण रीत सू । पिण पडिलाभ तदर्थ, इहां पिण पाठ अछै इसो ।। ८२. पडिलभ गुरु बुद्धि होय, तो माहण श्रावक भणी । गुरु बुद्धि किम दे सोय, तसु लेखै पिण ऊथप्यो । ८३. पडिलभ गुरु बुद्धि होय, तो माहण श्रावक नहीं । माहण श्रावक सोय, तो पडिलभ गरु बुद्धि नहीं। ८४. तसु लेखे पिण एम, विरुद्ध परस्पर अर्थ इम । परम दृष्टि धर प्रेम, निमल न्याय चित में धरो॥ ८५. माहण धावक अर्थ, पडिलभ नों गुरु बुद्धि कहै । ए दोनूइ तदर्थ, विरुद्ध अर्थ पहिछाणज्यो ।। ८६. श्रावक भणीज ताहि, माहण तसु कहियै नहीं । पडिलभ गुरु बुद्धि नांहि, पडिलभ नाम देवा तणो ।। ८७. ते माटै पहिछाण, श्रावक असंजती भणी । प्रतिलाभ दै दान, तेहने एकांत पाप ह॥' (ज०स०) ८८. दानाधिकारादेवेदमाह (वृ० प० ३७४) दूहा ८६. दान तणां अधिकार थी, दान तणोज विचार । कहियै छै ते सांभलो, वीर वचन हितकार ॥ ८६. *निग्रंथ गृहस्थ घरे गोचरी, पिंड न पड़ जाणी । मुझ पात्रा में होइस एहवी, बुद्धि कर गयो पिछाणी॥ १०. दोय पिंड कोइ गृहस्थ निमंत्रे, हे आउखावंतो ! एक पिंड तो तुम्हें जीमजो, एक स्थविरा नै दितो॥ ११. निग्रंथ ते पिंड प्रति लेइने, स्थविर तणी पहिछाणी। गवेषणा करवी मन साचै, ऊजम अधिको आणी।। ८६. निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्प विट्ठ पिण्डस्य पातो मम पात्रे भवत्वितिबुद्धयत्यर्थः (वृ० प० ३७४) १०. केइ दोहि पिडेहि उवनिमंतेज्जा-एगं आउसो ! अप्पणा भुंजाहि, एग थेराणं दलयाहि । ११. से य तं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से अणुगवेसियव्वा सिया *लय : गरब न कीज रे सतगुरु सोखड़ली ४१४ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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