SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. इक जीव समय इक बे आयु वेदै, ते मिथ्या इण न्यायो। इक समय बे आउ वेदवै युगपत, बे भव ना प्रसंग थी ताह्यो। २४. जिन कहै हूं बलि एम कहूं छु, जालग्रन्थिका दृष्टंत । संकलिका मात्र छै इण पक्षे, जाव समुदाय रचना रहंत ॥ २५. इण दृष्टांते इक-इक जीव नैं, पिण बहु जीवां रै नहिं माहोमांहि । बहु जन्म सहस्र विषे घणां आउखा ना, सहस्र गमे थया ताहि॥ २६. काल अतीत विषे अनुक्रमै, बहु आयु सहस्र थया ताह्यो । वर्तमान भव तांई कहिये, निसूणो तेहन न्यायो । २७. अन्य भव अन्य भवे करि आयु-प्रतिबद्ध बंध कहायो। सर्व परस्पर इम आयु-बंध है, पिण इक भव बहु न बंधायो । २३. यच्चोक्तमेको जीव एकेन समयेन द्वे आयुषी वेदयति तदपि मिथ्या, आयुर्द्वयसंवेदने युगपद्भवद्वयप्रसङ्गादिति । (वृ० प० २१५) २४. से जहानामए जालगंठिया सिया जाव अण्णमण्ण घडताए चिट्ठति । इह पक्षे जाल ग्रन्थिका–सङ्कलिकामात्रम् (वृ० प० २१५) २५., २६. एवामेव एग मेगस्स जीवस्स बहूहिं आजाति सहस्सेहिं बहूई आउयसहस्साई आणुपुब्विगढियाई जाव चिट्ठति एककस्य जीवस्य न तु बहूनां बहुधा आजातिसहस्रेषु क्रमवृत्तिष्वतीतकालिकेषु तत्कालापेक्षया सत्सु बहून्यायुःसहस्राण्यतीतानि वर्तमानभवान्तानि । (वृ० प० २१५) २७. अन्यभविकमन्यभविकेन प्रतिबद्धमित्येवं सर्वाणि परस्परं प्रतिबद्धानि भवन्ति न पुन रेकभव एव बहनि । (वृ० प० २१५) २८. एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं एग आउयं पडि संवेदेइ, तं जहा-इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा। २६. जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ । ३०. जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, नो तं समय इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ । ३१. इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणाए, नो परभवियाउयं पडिसंवेदेइ । परभवियाउयस्स पडिसंवेदणाए, नो इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ । ३२. एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पडि संवेदेइ, तं जहा - इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा। (श० ५/५८) ३३. जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उवज्जित्तए, से णं भंते ! कि साउए संकमइ ? निराउए संक २८. अनक्रमै जाव एम रहै छै, इक जीव समय इक मांह्यो। इक आयु वेदै ते इह भव नं, तथा परभव नं वेदायो॥ २६. जे समय इह भव ते, वर्तमान भव नों आउखो वेदै जेह । ते समय विषे परभव न आउखो निश्चय नहीं वेदेह ।। ३०. जे समय विषे परभव न आउखो वेदै छै जीव । ते समय विषे इह भव न आउखो, वेदै नहीं अतीव । ३१. इह भव नों आउखो वेदवै करि, परभव न आयु न वेदंत । पर भव नों आउखो वेदवै करि, इह भव नों नहीं भोगवंत ॥ ३२. इम निश्चय इक जीव एक समय करि, आउखो एक वेदंत। इह भव न अथवा परभव नु, वलि आयु अधिकार कहंत ॥ ३३. जीव प्रभ ! जावा जोग्य नरक में, स्यूं आयु सहित जावंत । __ के आउखा रहित जावै छै ? हिव भाखै भगवंत ॥ मइ ? ३४. गोयमा ! साउए संकमइ, नो निराउए संकमइ । (श०५/५६) ३५. से णं भंते ! आउए कहिं कडे ? कहिं समाइण्णे ? ३४. आउखा सहित जावै छै नरके, आउखा रहित न जाय । एम सुणी में गोतम स्वामी, प्रश्न करै बलि ताय ॥ ३५. ते प्रभ ! आयु किहां कियो बांध्यो, वलि ते किहां समाचरित्तं ? ए आयु ना कारण अंगीकरण थी, हिवै जिन उत्तर कहित्तं ।। ३६. पूर्व भवे कियो बांध्यो आउखो, पाछल भव समाचरितं । ___ आउ ना कारण अंगीकरण थी, इम जाव वैमानिक कहित्तं ॥ २० भगवती-जोड़ ३६. गोयमा ! पुरिमे भवे कडे, पुरिमे भवे समाइण्णे । एवं जाव वेमाणियाणं दंडओ। (श० ५/६०, ६१) Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy