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७७. दर्शण-अलद्धिया प्रभु ! जीवा, स्य ज्ञानी ए प्रश्न कहीवा ? ७७. तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी ? जिन कहै तास अलद्धियो नाही, तीन दष्टि विण जीव न थाई॥ अण्णाणी ?
गोयमा ! तस्स अलद्धिया नत्थि । ७८. समदर्शण-लद्धिया पंच ज्ञान, भजना बे त्रिण चिउं इक मान। ७८. सम्मदंसणलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए। तस्स
तास अलद्धिया में त्रिण अज्ञान, भजना किहां बे किहां त्रिण जान ।। अलद्धियाणं तिणि अण्णाणाइं--भयणाए। ७६. मिथ्यादर्शन-लद्धिया मांय, तीन अज्ञान नी भजना पाय। ७६. मिच्छादंसणलद्धियाणं तिण्णि अण्णाणाई भयणाए । तास अलद्धिया में पंच नाण, तीन अज्ञान नी भजना पिछाण । तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाइं, तिण्णि य अण्णाणाई
भयणाए। वा०-मिथ्यादर्शन नां अलद्धिया ते सम्यग्दृष्टि अनै मिश्रदृष्टि नै अनुक्रम वा०—मिथ्यादर्शनस्यालब्धिमतां सम्यग्दृष्टीनां करिके पंच ज्ञान, तीन अज्ञान नी भजना।
मिश्रदृष्टीनां च क्रमेण पञ्च ज्ञानानि त्रीण्यज्ञानानि च भजनयेति ।
(वृ० प० ३५३) ८०. समामिथ्यादर्शन-लद्धिया नीं, तास अलद्धिया नीं वलि जानी। ८०. समामिच्छादसणलद्धिया, अलद्धिया य जहा मिच्छामिथ्यादर्शन लद्धि अलद्धी, तेह कह्या तिम भणव प्रसिद्धी ॥ दसणलद्धिया अलद्धिया तहेव भाणियन्वा ।
(श० ८।१६०) ८१. चारित्र-लद्धिया स्यप्रभ ! नाणी? पंच ज्ञान नी भजना जानी। ८१. चरित्तलद्धिया णं भंते! नीवा कि नाणी? अण्णाणी?
किहां बे ज्ञान किहां त्रिण जोय, किहां चिउं ज्ञान किहां इक होय ॥ गोयमा ! पंच नाणाई भयणाए । ८२. तेह चरित्र नां अलद्धिया में, मनपज्जव वर्जी ए ठामें। ८२. तस्स अलद्धीयाणं मणपज्जवनाणवज्जाइं चत्तारि
भजना च्यार ज्ञान नी भाल, तीन अज्ञान नी भजना न्हाल ॥ नाणाई, तिण्णि य अण्णाणाई-भयणाए। (श.८।१६१)
वा०-चारित्र-अलद्धिया दूजे, चोथै, पांचमै गुणठाण बे ज्ञान वा तीन ज्ञान वा०-चारित्रालब्धिकास्तु ये ज्ञानिनस्तेषां मनःपर्यवअनै सिद्धा में एक केवलज्ञान । तेह. विषे चारित्र लब्धि नथी ते माट। अनै पहिले, वर्जानि चत्वारि ज्ञानानि भजनया भवन्ति, कथम् ? तीज गुणठाणे दो अज्ञान वा तीन अज्ञान ।
असंयतत्वे आद्यं ज्ञानद्वयं तत् त्रयं वा, सिद्धत्वे च केवलज्ञानं, सिद्धानामपि चरित्रलब्धिशून्यत्वाद, यतस्ते नोचारित्रिणो नोअचारित्रिण इति, ये त्वज्ञा
निनस्तेषां त्रीण्यज्ञानानि भजनया । (वृ० प० ३५३) ५३. सामायक-चारित्र-लद्धिया नीं, पूछा जिन भाखै छै ज्ञानी। ८३. सामाइयचरित्तलद्विया णं भंते ! जीवा कि नाणी? वर्जी केवलनाण उदार, च्यार ज्ञान नी भजना सार ।। अण्णाणी?
गोयमा ! नाणी. केवलवज्जाइं चत्तारि नाणाई
भयणाए। ५४. ते सामायक चारित्र सोय, तास अलद्धिया में अवलोय। ८४. तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई, तिण्णि य अण्णाणाई
पांच ज्ञान नैं तीन अज्ञान, भजनाइं करि भणिवा जान ॥ भयणाए।
वा०--सामायिक-चारित्र नो अलद्धियो ते छेदोपस्थापनी आदि पाम करी वा०-सामायिकचरित्रालब्धिकास्तु ये ज्ञानिनस्तेषां अथवा सिद्ध भावे करी ए ज्ञानी में पांच ज्ञान नी भजना । अने प्रथम, तीज गुणठाणे पंच ज्ञानानि भजनया, छेदोपस्थापनीयादिभावेन सिद्धअज्ञानी। तिहां तीन अज्ञान नी भजना ।
भावेन वा, ये त्वज्ञानिनस्तेषां त्रीण्यज्ञानानि भजनया।
(वृ० प० ३५३) ८५. सामायक-चारित्र नां जेम, लद्धि अलद्धी आख्या तेम। ८५. एवं जहा सामाइयचरित्तलद्धिया अलद्धीया य भणिया, जाव यथाख्यात इम जोय, लद्धि अलद्धी में अवलोय ॥ एवं जाव अहक्खाय-चरित्तलद्धीया अलद्धीया य
भाणियव्वा। ८६. णवरं यथाख्यात-लद्धिया में, पंच ज्ञान नी भजना पाम। ८६. नवरं-अहक्खायचरित्तलद्धीयाणं पंच नाणाई भयणाए। बेत्रिण चिउं इक ज्ञान उदार, चरम परम गणस्थानक च्यार ॥
(श० ८/१६२)
श०८, उ०२, ढा०१३६ ३५५
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