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४६. परिहार-विशुद्धि सूक्ष्म-संपराय, चारित्र मोह क्षयोपशम थाय। ४६. परिहारविसुद्धिचरित्तलद्धी सुहुमसंपरायचरित्तलद्धी
यथाख्यात पंचम प्रसिद्धी, उपशम क्षायक चरित्त सुलद्धी ॥ अहक्खायचरिनलद्धी । (श० ८।१४३) ५०. चरित्ताचरित्त लद्धी भगवान ! कितै प्रकार परूपी जान ? ५०. चरित्ताचरित्तलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ?
जिन कहै एक आकार प्रकार, देश विरत क्षयोपशम सार। गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता । ५१. दान लद्धी जाव उपभोग लद्धी, इक इक तास प्रकार प्रसिद्धी । ५१. एवं जाव उवभोगलद्धी एगागारा पण्णत्ता। अंतराय क्षय क्षयोपशम होय, तेहथी उज्जल जीव सुजोय ॥
(श० ८।१४४) ५२, वीर्य लद्धि प्रभ ! कितै प्रकार? जिन कहै तीन प्रकार विचार। ५२. वीरियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ?
बाल वीर्य लद्धी अवधार, चिहं गणठाणे शक्ति उदार ॥ गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-बालवीरियलद्धी, ५३. पंडित वीर्य लद्धी पिछाण, ए मनिवर नी शक्ति सूजान । ५३. पंडियवीरियलद्धी, बालपंडियवीरियलद्धी। बाल पंडित वीर्य ए लद्धी, श्रावक नी ए शक्ति प्रसिद्धी ।।
(श० ८।१४५) ५४. इंद्रिय लद्धि प्रभ!कितै प्रकार ?जिन कहै पंच प्रकार विचार । ५४. इंदियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता? सोइंदि जाव फर्शद्री लद्धी, दर्शणावरणी क्षयोपशम सिद्धी ॥ गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—सोइंदियलद्धी
जाव फासिदियलद्धी।
(श० ८।१४६) ५५. ज्ञानलद्धिया हे प्रभु ! जीवा, स्यू ज्ञानी अज्ञानी कहीवा? ५५. नाणलद्धिया णं भंते ! जीवा कि नाणी? अण्णाणी ?
जिन कहै ज्ञानी कहिये तास, अज्ञानी नहिं कहिये जास॥ गोयमा ? नाणी, नो अण्णाणी। ५६. केइक बे ज्ञानी अवलोय, केइक त्रिण चिउं ज्ञानी होय । ५६. अत्थेगतिया दुण्णाणी, एवं पंच नाणाई भयणाए । केइक एक केवल शुद्ध खेम, पंच ज्ञान नी भजना एम ।।
(श० ८।१४७) ५७. तास अलद्धिया प्रभु!स्यू नाणी?जिन कहै नोज्ञानी छै अन्नाणी। ५७. तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी ? केइक बे अज्ञानी न्हाल, भजना तीन अज्ञान नी भाल ॥
अण्णाणी ? गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी । अत्थेगतिया दुअण्णा
णी,तिण्णि अण्णाणा भयणाए। (श० ८।१४८) ५८. आभिनिबोधिक ज्ञानलद्धिया, स्य ज्ञानी अज्ञानी कहिया ? ५८. आभिणिबोहियनाणलद्धिया णं भंते ! जीवा कि जिन कहै अज्ञानी नहिं जेह, च्यार ज्ञान नी भजना भणेह। नाणी? अण्णाणी?
गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी। अत्थेगतिया दुण्णाणी
चत्तारि नाणाई भयणाए। (श०८।१४६) ५६. तास अलद्धिया जे कहिवाय, मतिज्ञान न लहै जे मांय । ५६. तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी ?
ते ज्ञानी कहियै भगवान ! के अज्ञानी कहियै जान? अण्णाणी? ६०. जिन कहै ज्ञानी पिण कहिवाय, अज्ञानी पिण छै वलि ताय। ६०. गोयमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि। जे नाणी ते
जे ज्ञानी ते नियमा एक, केवलज्ञानी कहिये विशेख ॥ नियमा एगनाणी--केवलनाणी । ६१. जे अज्ञानी ते इम जान, कितलाइक में दोय अज्ञान । ६१. जे अण्णाणी ते अत्थेगतिया दुअण्णाणी, तिण्णि अण्णा
तीन अज्ञान केइक में तेम, भजना त्रिण अज्ञान नी एम ॥ णाई भयणाए। ६२. मतिज्ञानलद्धियो कह्यो सोय, श्रतज्ञानलद्धियो इम जोय । ६२. एवं सुयनाणलद्धिया वि । तस्स अलद्धिया वि जहा
मतिज्ञान में अलद्धियो जान, तिम श्रतज्ञान अलद्धियो मान ॥ आभिणिबोहियनाणस्स अलद्धीया। (श०८।१५०) ६३. पूछा अवधिज्ञानलद्धिया नी, जिन कहै ज्ञानी छै न अज्ञानी। ६३. ओहिनाणलद्धियाणं पुच्छा । के इक तीन ज्ञानी कहिवाय, केइक चिउंनाणी मनिराय ।। गोयमा! नाणी, नो अण्णाणी । अत्थेगतिया तिण्णाणी,
अत्थेगतिया चउनाणी। ६४. जे त्रिणज्ञानी ते इम कहिये, मति श्र त अवधिज्ञान त्रिहं लहिये। ६४. जे तिण्णाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, जे चिउंनाणी ते कहिवाय, मति श्र त अवधि रु मनपर्याय ।। ओहिनाणी।
जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी, ओहिनाणी मणपज्जवनाणी। (श० ८।१५१)
श० ८, उ० २, ढा० १३६ ३५३
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