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________________ २०. जो मीसा-परिणता कहाय, स्यूं मन-मीसा-परिणता थाय ? मीसा-परिणता सुजोय, प्रयोग-परिणता जिम अवलोय ॥ जदि वीससा-परिणता देख, तो स्यं वर्ण-परिणता पेख? गंध-परिणता आदि सुजोय, वीससा-परिणता पिण इम होय॥ २२. जाव तथा समचउरंस एक, एक आयत-संठाण संपेख । द्विकसंयोगिक ए दस भंग, वीससा-परिणत एह प्रसंग ।। २३. हे भगवंत ! तीन द्रव्य जेह, स्यं प्रयोग-परिणता कहेह । मीसा-परिणता तास कहीजै? वलि वीससा-परिणता लीजै ? २४. जिन कहै प्रयोग-परिणता तीन, अथवा मीसा-परिणता चीन। अथवा तीन द्रव्य पिछान, तेह वीससा-परिणता जान ।। २५. अथवा इक द्रव्य प्रयोग जाण, दोय द्रव्य मीसा पहिछाण । अथवा प्रयोग-परिणत एक, दोय वीससा-परिणता देख ।। २६. तथा प्रयोग-परिणता दोय, इक द्रव्य मीसा-परिणत होय । अथवा दोय प्रयोग विशेख, एक वीससा-परिणत देख ।। २७. अथवा इक द्रव्य मीसा होय, अनै वीससा कहिये दोय । अथवा दो मीसा कहिवाय, एक वीससा-परिणत पाय ।। २८. तथा प्रयोगे परिणत एक, इक द्रव्य मीसा-परिणत पेख । एक वीससा-परिणत जाण, त्रिकसंजोगियो एक पिछाण ।। २६. जदि प्रयोग-परिणता जोय, तो स्य मन-प्रयोगे होय । वचन-प्रयोग-परिणता कहिये? काय-प्रयोग-परिणता लहिये? ३०. जिन कहै मन-प्रयोग-परिणता, इहविध भांगा तास वर्त्तता। इकसंयोगिक त्रिण भंग थाय, द्विकसंयोगिक षट कहिवाय॥ ३१. तीन द्रव्य त्रिण पद मे चीन, इकसंयोगिक भांगा तीन । द्विक संयोगिक विकल्प दोय, भांगा तेहनां षट अवलोय ।। २०. जइ मीसापरिणया कि मणमीसापरिणया ? एवं मीसापरिणया वि। (श०८७७) २१. जइ वीससापरिणया कि वण्णपरिणया ? गंधपरि णया? एवं वीससापरिणया वि २२. जाव अहवेगे चउरससंठाणपरिणए, एगे आयतसंठाणपरिणए। (श० ८७८) १३. तिण्णि भंते ! दवा कि पयोगपरिणया? मीसा परिणया? वीससापरिणया? २४. गोयमा ! पयोगपरिणया वा, मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा। २५. अहवेगे पयोगपरिणए, दो मीसापरिणया, अहवेगे पयोगपरिणए, दो बीससापरिणया २६. अहवा दो पयोगपरिणया एगे मीसापरिणए, अहवा दो पयोगपरिणया, एगे वीससापरिणए । २७. अहवेगे मीसापरिणए, दो वीससापरिणया, अहवा दो मीसापरिणया एगे वीससापरिणए। २८. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए। (श० ८७९) २६. जइ पयोगपरिणया कि मणपयोगपरिणया ? वइपयोग परिणया? कायपयोगपरिणथा ? ३० गोयमा ! मणपयोगपरिणया वा, एवं एक्कासंयोगो दुयासंयोगो ३१. तिन्नीत्यादि, इह प्रयोगपरिणतादिपदत्रये एकत्वे त्रयो विकल्पाः द्विकसंयोगे तु षट् । (वृ० प० ३३८) ३२. तियासंयोगो य भाणियब्वो। (श०८।८०) त्रिकयोगे त्वेक एवेत्येवं सर्वे दश । (वृ० प० ३३८) ३३. जइ मणपयोगपरिणया कि सच्चमणपयोगपरिणया ? असच्चमणपयोगपरिणया ? सच्चमोसमणपयोगपरि णया ? असच्चमोसमणपयोगपरिणया? ३४. गोवमा ! सच्चमणपयोगपरिणया वा जाव असच्च मोसमणपयोगपरिणया वा । ३५. अहवेगे सच्चमणपयोगपरिणए, दो मोसमणपयोग परिणया एवं दुयासंयोगो, ३२. त्रिकसंयोगिक भांगो एक, विकल्प पिण तसु एक संपेख । तीन द्रव्य नां त्रिहुं पद मांय, ए दस मांगा सगला थाय ।। ३३. जो मन-प्रयोग-परिणता होय, स्यू सत्य-मन-प्रयोगे जोय ? इम चिउं मन नीं पूछा जाण, हिव उत्तर देवै जगभाण ।। ३४. त्रिहं सत्य-मन-प्रयोग-परिणता, जावत त्रिहुं व्यवहार वर्त्तता। इकसंयोगिक भांगा च्यार, हिवै द्विकसंयोगिक अधिकार ।। ३५. अथवा सत्य-मन-प्रयोग एक, दोय मृषा-मन-प्रयोग देख । इम द्विकसंयोगिक भंग बार, जूजुआ करिवा न्याय विचार।। सोरठा ३६. चिहं पद सत्य-मनादि, तीन द्रव्य द्विकयोगिका। तसु विकल्प बे साधि, इक विकल्प नां भंग षट। ३६,३७. सत्यमनः प्रयोगादीनि तु चत्वारि पदानीत्यत एकत्वे चत्वारो द्विकसंयोगे तु द्वादश । (वृ० ५० ३३८) ३२६ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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