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३४. तमपेक्ष्य स कृष्णलेश्योऽल्पकर्मा व्यपदिश्यते, एवमुत्तर
सूत्राण्यपि भावनीयानि । (वृ० प० ३०१)
३४. ते नील तणी अपेक्षाय, कृष्णलेसी अल्प कर्म छ।
इम स्थिति आश्री ताय, सूत्र आगल पिण जाणिय ॥ ३५. *नील लेस्यावंत नारक प्रभजी ! अल्प कर्म किण वारै ।
कापोत नारक महाकर्मी छ ? जिन कहै हंता जिवारे॥
३६. किण अर्थे ?तब श्री जिन भाखै, स्थिति आश्री कहिवायो ।
तिण अर्थे नील अल्पकर्मवंत, कापोत महाकर्म थायो ।
३७. असुरकुमार पिण इमहिज भणवा, णवरं तेजू अधिकाइ ।
एवं जाव वैमानिक कहिवा, लेस पावै ते थाइ ॥
३५. सिय भंते ! नीललेसे नेरइए अप्पकम्मतराए ? काउलेसे नेरइए महाकम्मतराए ? हंता सिय ।
(श०७।६६) ३६. से केणठेणं भंते ! ......"गोयमा ! ठिति पडुच्च । से तेणठेणं गोयमा ! जाव महाकम्मतराए।
(श० ७७०) ३७. एवं असुरकुमारे वि, नवरं-तेउलेसा अब्भहिया ।
एवं जाव वेमाणिया जस्स जइ लेस्साओ तस्स तत्तिया
भाणियव्वाओ। ३८. जोइसियस्स न भण्णइ
एकस्या एव तेजोलेश्यायास्तस्य सद्भावात् संयोगो नास्तीति ।
(वृ०प०३०१) ३६. जाव
(श० ७७१) सिय भंते ! पम्हलेस्से वेमाणिए अप्पकम्मतराए ? सुक्कलेस्से वेमाणिए महाकम्मतराए ? हंता सिय ।
(श० ७७२) ४०. से केणठेणं? सेसं जहा नेरइयस्स (सं० पा०) जाव महाकम्मतराए।
(श० ७१७३)
३८. जोतिषि नो दंडक नहि भणवो, लेस्या इक तिण मांही ।
लेस संयोग नहीं तिण माट, जोतिषि भणवो नांही।।
३६. जाव कदा पद्मलेसी वैमानिक, अल्पकर्मी किण वारै ।
महाकर्मी शुक्ललेसी वैमानिक ? जिन कहै हंता जिवारै॥
४०. किण अर्थे प्रभजी! इम कहिये, शेष नरक जिम जाणी।
जावत महाकर्मवंत कहीजै, न्याय पूर्ववत छाणी॥
४१. कह्या
हिवै
सोरठा सलेसी जोय, वेदनवंत वेदना सोय, ते आगल
हुवै तिके । कहियै अछ।
४१. सलेश्या जीवाश्च वेदनावन्तो भवन्तीति वेदनासूत्राणि
(वृ०प० ३०१)
*लय : शान्तिनाथ मेरे मन बसिया
पर इस विषय में अपना कोई मत प्रदर्शित नहीं किया। इसकी समीक्षा में कोई वातिका या टिप्पण भी नहीं लिखा । उत्तराध्ययन (३४॥३५) के संदर्भ में यह अभिमत संगत नहीं है। वहां नीललेश्या वाले नैरयिक की उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर बताई गई है। यह तथ्य आचार्यश्री तुलसी द्वारा निर्मित तीन सोरठों में निरूपित है। वे सोरठे इस प्रकार हैंवृत्ति विषे इम वाय, नीललेसी जे नेरइयो । सतर सागर स्थिति ताय, उपजे नरक पंचमी विषे । उत्तराध्ययन मझार, चउतीसम अध्ययन में । नील लेश्या स्थिति सार, दश सागर जाझी कही ।। तिणसू ए अप्रमाण, नीललेसी जे नेरियो । सतर सागर स्थिति माण, उपजे नहिं पंचमि नरक ।
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भगवती-जोड़
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