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________________ १०, ११. भगवई श० २।११३ ११. चयंति, उववज्जति । १०. विउक्कमति कहितां विणसै छै, ए बिहं पद नों अर्थ जाणी। तेह विपर्ययपण कहै छै. सांभलज्यो चित ठाणी॥ ११. चयंति कहितां तेह चवै छै, उववज्जंति कहिता उपजिये । ए चिहं पद नों अर्थ द्वितीय शतक पंचमद्देशे' तिम कहिये । १२. इम निश्चै ग्रीष्म ऋतु नै विषे, वनस्पती बह जीवा । पानवंत अरु पुष्पवंत ए, जावत तिष्ठ अतीवा ।। १२. एवं खलु गोयमा ! गिम्हासु बहवे वणस्सइकाइया पत्तिया, पुफिया, फलिया, हरिय गरेरिज्जमाणा, सिरीए अतीव-अतीव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठति। (श०७।६३) १३. से नूणं भंते ! मूला मूलजीवफुडा, कंदा कंदजीवफुडा, १४. जाव (सं० पा०) बीया बीयजीवफुडा (श० ७।६४) १३. मूल प्रभ ! मूल जीव संघाते, फा छै अधिकायो । कंद संघाते कंद जीव ते, फा छै ए ताह्यो। १४. जाव बीज ते बीज जीव थी, फा एम पिछाणी । गोतमजी इण विध प्रश्न पूछ्ये ? जिन कहै हंता जाणी॥ सोरठा १५. कंद जमी रै मांहि, गांठ रूप मध्य भाग जे । ते कंद थी नीकली ताहि, चिहुं दिशि जटाज मूल ते॥ १६. तिण सू मूलज जीव, पृथ्वी करी प्रतिबद्ध छ । मही-रस अधिक अतीव, तेह प्रतै ए आहरै। १७. कंद जीव मूल तणो छै तेह, रस मूल करी प्रतिबद्ध छ । जेह, तेह प्रतै ए आहरै ।। १६. मूलानि मूलजीवस्पृष्टानि केवलं पृथिवीजीवप्रति बद्धानि""तस्मात्' तत् प्रतिबन्धाद्धेतोः पृथिवीरसं मूलजीवा आहारयन्ति । (वृ० प० ३००) १७. कन्दाः कन्दजीवस्पृष्टा: केवलं मूलजीवप्रतिबद्धाः 'तस्मात्' तत्प्रतिबन्धात् मूलजीवोपात्तं पृथिवीरसमाहारयन्ति । (वृ०प० ३००) १८. जइ णं भंते ! मूला मूलजीवफुडा जाव बीया बीय जीवफुडा, कम्हा णं भंते ! वणस्सइकाइया आहारेंति ? कम्हा परिणामेंति ? १८. *जो प्रभ! मूल फो मूल साथै, जाव बीज फयों बीज साथो। ___ तो किम वणस्सइ आहार करै छै, केम परिणमै नाथो? सोरठा १९. मूल भूमि रै मांहि, बीज भूमि स्यू दूर छ । आहार सहु ने ताहि, वलि सहु ने किया परिणमैं ।। २०. *जिन कहै मल ते मूल जीव थी, फा एह अत्यंतो । पृथ्वी जीव संघात बंध्या छै, तिण सं आहार करै परिणमंतो ।। २१. कंद जीव कंद साथ फा छै, मूल जीव थी बंधाणो। तिण सू आहार करै नै परिणमैं, इम खंधादिक जाणो ।। २०. गोयमा ! मूला मूलजीवफुडा पुढवीजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेति । २१. कंदा कंदजीवफुडा मूल जीवपडिबद्धा, तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति । एवं स्कन्धादिष्वपि वाच्यम् (वृ०प० ३००) २२. एवं जाव बीया बीयजीवफुडा फलजीवपडिबद्धा तम्हा आहारेंति, तम्हा परिणामेंति । (श०७।६५) २२. इम जाव बीज ते बीज जीव थी, फा थकाज अत्यंतो। फल जीव प्रतिबद्ध रस पाम्यां, तिण सूआहार करै परिणमंतो॥ *लय : शान्तिनाथ मेरे मन बसिया १. अंगसुत्ताणि (भाग २) ७।६३ में विउक्कमंति पाठ पाठान्तर में लिया गया है, मूल में तीन ही पद रखे गए हैं। दूसरे शतक (२।११३) में चारों पद उल्लिखित हैं। २४२ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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