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________________ पुद्मल प्रतं मृदुपण प्रतै, कक्खड़प २३. * कक्खड़ मृदु फर्श पुद्गल २४. एवं दो कहिवा अछे गुरु लघु नां शीत उष्ण नां दोय . स्निग्ध लुक्स नां बे यतनी २५. कक्व निहाल | भावै ॥ दुपणे नाल मृदु वरधरापणे गुरु लघुपणे परिणमावै, लघु गुरुपर्ण इम २६. शीत उष्णपर्णे इम कहिये, उष्ण शीतपणे इम लहिये । निद्ध लक्खपणे परिणाम, लूखो निद्धपणे इम पार्म ॥ २७. *वर्ण गंध गंध रस नं रस ने विषे फर्श विषे बलि सगला स्थानक नें विषे, कहि परिणामेइ २८. बे आलावा सर्व नां, पुद्गल विण लियां ताय । परिणामिया समर्थ नहीं, पुद्गल ले परिणमाय' ॥ ', परिणमाय । कहिवाय || सोय । दोय ॥ यतनी २१. पुद्गल लियां बिना सह एह नहीं परिणमा वारला पुद्गल ने लेई परिणमा नैं एम जाण । माण | तेह कहेई । दूहा ३०. देव तणां अधिकार थी, देव तणोंज पूर्व गोयम गणहरू, ते सुणज्यो ३१. * प्रभु ! अविशुद्धलेसी देवता ए विभंग अज्ञानी संगीत । अस मोह नों अर्थ ए. सुर उपयोग-रहीत ॥ J विचार | विस्तार ॥ Jain Education International J २२. अविशुद्ध विभंग सहित जे देव तथा देवी तथा अन्यतर एक जे ते विहं मांहिलो 1 वाo अविशुद्धलेसी विभंग अज्ञानी देव अणउपयोग आत्मा अविशुद्धलेसी देवादिक प्रत ए तीन पद नां द्वादश विकल्प हुवै । । जोय । सोय ॥ ३३. एहिं प्रति जाणें प्रभु दर्शण कर देखंत ? जिन कहे अर्थ समर्थ नहीं, ए धुर भांगो हुत ॥ 1 ३४. सुर विभंगयुत उपयोग विष ते विभंगवंत सुर सुरी प्रते । बिहुं मांहिला एक प्रति वलि, न जाणे देखे न ते ॥ * लय: राधा प्यारी है, लं नी झखोलो ठंडा नीर नो १. इस ढाल की गाथा २३, २४, २७ और २८ की जोड़ अंगसुत्ताणि पृ० २६६ के टिप्पण ११ के आधार पर की गई है । + लय : पूज मोटा भांज १२६ भगवती जी For Private & Personal Use Only २३. कक्खडफासपोग्गलं मउय- फासपोग्गलत्ताए, २४. एवं दस सि २७. वण्णाई सव्वत्थ परिणामेइ । २८. आलावगा दो दो पोगले अपरियाइत्ता, परिया( श० ६ । १६७ ) इत्ता । ३०. देवाधिकारादिदमाह (दु० १० २०३ ) ३१. अविसुद्ध से णं भंते! देवे असमोहएणं अप्पाणेणं अविशुद्वलेश्यो - विभङ्गज्ञानो देवः 'असमोहएणं बप्पाषेणं' ति अनुपयुक्त नात्मना ( वृ० प० २८४ ) ३२. अविसुद्धले सं देवं देवि, अण्णयरं, , इहाविद्धः समवतारमा देवः अविशुद्धश्यं देवादिकं इत्यस्य पदत्रयस्य द्वादशविकल्पा भवन्ति । ( वृ० प० २८४ ) ३३. जाणइ पासइ ? णो तिट्ठे समट्ठे । www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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