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४५. च्यार सागर कोड़ाकोड़, काल सुषम- सुषमा जोड़ । कोड़ाकोड़ि सागर वलि तीन काल सुषमा युगल' सुचीन ॥
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४६. कोटाकोड़ि सागर में दोय काल सुषमदुषमा होय । तृतीय आरो से हंस, पहिला युगल आदि जिन अंत ॥ ४७. कोड़ाकोड़ि सागर इक तास, ऊणां संहस बयालीस वास । काल दुष्षम-सुषमा विचार, जिन तेबीस चउथे आर ॥ ४८. इकवीस सहस जे वास, काल दुष्षमा पंचम इकवीस सहस वर्ष जोय, काल दुष्यम-दुषमा ४६. अवसप्पिणी काल आस्यात उत्सप्पिणी नी हिव
इकवीस सहस वर्ष न्हाल, कहिये दुष्यम- दुधमा काल ।। ५०. वलि वर्ष इकवीस हजार, काल दुष्षम दूजो आर । इनमें साधु धावक नहि चाय, बीजू एह पंचम जिसो पाय ।। ५१. कोड़ाकोड़ि सागर इक तास, ऊणां संहस बयालीस वास । दूषम-सुषमा तीजो आर, जिन जन्म तेबीस उदार ॥ ५२. कोड़ाकोड़ि सागर जे दोय, काल सुषम दुष्यमा होय | चउयो आरो चरम जिन आदि पछे युगल धर्म सुख साधि ।। ५३. कोड़ाकोड़ि सागर वलि तीन, काल सुषमा युगल सुचीन । प्यार सागरोपम कोड़ाकोट, काल सुषम-सुषमा जोड़ ॥ ५४. कोहाकोडि सागर दस लाधि, अवसप्पिणी काल आदि । कोदाकोड़ि सागर दस देख उत्सप्पिणी काल संपेल || ५५. कोड़ाकोड़ि सागर वीस सोय, अवसर्पिणी उत्सपिणी होय । बिहु मिलियां काल चक्र एक वर ज्ञान नेत्रे करि देख ॥
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दूहा
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होय ॥ बात।
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५६. काल तथा
अधिकार
गणधारक
गणी,
काल स्वरूप कहंत । गोयम प्रवर प्रश्न पूछत ॥ ५७. *जंबूद्वीप विषे जिनराय ! एह अवसप्पिणी काल ताय । सुषमा सुषम आरा में सुसाधि, उत्कृष्ट अर्थ आउखादि ॥ ५८. उत्तमार्थ प्राप्त कह्य तेह, तथा उत्तम काष्ठा प्राप्त एह । प्रकृष्ट अवस्था आप्त, तिको उत्तम काष्ठा प्राप्त ॥
५६. भरत नामा खेत्र नों उदार, केहवो आकार भाव प्रकार ? जिन कहै बहु सम रमणीक, भूमिभाग हुंतो तहतीक ॥ ६०. यथानाम दृष्टांत परीखो, मादल मुखपुट तेह सरीखो । उत्तरकुरु नी पर सहू बात, जीवाभिगम सूत्रे आख्यात | * लय : विना रा भाव सुण गूंज १. यौगलिक काल
४५. एएणं सागरोवमपमाणेणं चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम सुसमा, तिष्णि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा,
४६. दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम दूसमा,
४७. एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए वाससहस्सेहि ऊणिया कालो दूसम सुसमा,
४८. एक्कवी वाससहस्साई कालो समा एक्कची वाससहस्साई कालो दूसम- दूसमा ।
४६. पुणरवि उसचिनीए एक्कवीस वासरासाई कालो दूसम- दूसमा ।
५०. एक्कवीसं वाससहस्साई कालो दूसमा ।
५१. एगा सागरोवमकोडाकोडी बायालीसाए बाससहसेहिं ऊणिया कालो दूसम-सुसमा ।
५२. दो सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसम - दूसमा ।
५३. तिणि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो सुसमा, चत्तारि सागरोदमकडाकोडीको कालोमा।
५४. दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी, दस सागरोवमकोडाकोडीओ कालो उस्सप्पिणी । ५५. वीसं सागरोवमकोडाकोडीओ कालो ओसप्पिणी उस्सप्पिणी य । (०६०१२४)
५६. कलाधिकारादिदमाह
( वृ० प० २७७ )
५७, ५८. जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसम समाए समाए उत्तिमत्ताए, उत्तमान् तत्काणापेक्षा
आयुष्कादीन
प्राप्ता उत्तमार्थप्राप्ता उत्तमकाष्ठां प्राप्ता वा-प्रकृष्टावस्थां गता तस्याम् । ( वृ० प० २७७ ) ५६. भरह्स्स वासस्स केरिसए आगारभाव पडोवारे
होत्था ?
गोपमा ! बहुसमरमणि भूमिभागे होत्या ।
६०. से जहानामए - आलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तरकुरुवत्तब्वया नेयव्वा ।
'आगिपुश्वरे' ति मुनमुखपुट
उत्तरकुरु
वक्तव्यता च जीवाभिगमोक्तंवं दृश्या (जीवा० प० ३।५७-६२१) | ( वृ० प० २७७ )
श०६, उ० ७, ढा० १०७ १८१
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