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________________ ४२. ब्रह्म पंचम देवलोक विरह छे, दुगुणो काल है अवट्टिया नों, ४३. लंतके विरह पैंतालीस अहनिशि, दिवस साठा बावीस | अहोनिशि पैंतालीस ॥ दिवस वलि पैंताल । जिण समय ऊपजै जिता नीकले, नेउ दिन अवट्टिया न्हाल ॥ ४४. महाशुक असी दिवस विरह के असी अहोनिश वाट | जिग समय पजे जितानी अवस्थिति दिन एक सौ साठ ॥ ४५. अष्टम कल्पे विरह दिवस सो दिवस वलो सौ तित्थ । जिण समय ऊपजै जिता नीकले, दोय सौ दिन अवस्थित्त ।। ४६. नवमें दशमें विरह मास संख्याता तेहची दुगुणा मास । 1 अवट्ठिया नों काल कह्यो, मास संख्याता तास ।। ४७. आरण अच्चू विरह वर्ष संख्याता, तेही दुगुणा वास । अट्ठानों का कह्यो छे, संख्याता वर्ष नी राश ॥ ४५. इमहिज नव ग्रीवेयक मांहे, पण वृत्ति मां कह्यो एम त्रिक विहं नों जुजुओ लेखो सांभलजो घर प्रेम ॥ ४९. हेली पिक वर्ष संख्याता सौ मध्यमे संख्य हजार । ऊपरली त्रिक वर्ष संख्यात लक्ष, विरहकाल सुविचार || ५०. विरह अद्धा थी कालज दुगुणो, अवट्ठिया नों जान । विरह जेतलुं काल पर्छ पिण, उत्पत्ति चवन समान ।। ५१. विरह अनुत्तर प्यार विषे वर्ष असंख हजार तेही दुगणो काल कहीजे, अवट्ठिया तुं विचार ॥ ५२. विरह काल सर्वार्थसिद्ध में पस्य नों संख्यातमों भाग । तेहथी दुगुणो काल कहीजै, अवट्ठिया नुं माग ॥ ५३ वर्ष घटे इक समय जघन्य थी, उत्कर्ष करि ताय । आवलिका नौ असंख्यातमों भाग को जिनराय ॥ ५४. अवट्ठिया नुं काल जे पूर्वे, पभप्यूँ तेम पिछाण | आंख्यूं ए सगलो सूत्रे करि, श्री जिन वचन प्रमाण ॥ ५५. काल के सिद्ध वर्ष प्रभु जिन भाखे शिव वाट । जघन्य थकी तो एक समय लग, उत्कर्ष समया आठ ॥ ५६. काम केलं अवट्ठिया नुं ? जघन्य थकी तो एक समय छै, ५७. उत्कृष्ट विरहो मास पट नो अवट्ठिया इतरो सही पछे वाधै नां नां घटे इम अवस्थित दुगुणो नहीं ॥ ५८. भासे जिन गुणरास । उत्कृष्टो षट मास || सोरठा हिव जीवादिक जेह, तेहने इज अन्य भंग करि । गोयम प्रश्न करेह, चित्त लगाई सांभली ॥ लय: पूज मोटा भांजे १८ भगवती-जोड़ Jain Education International ४२. भोवतालीस राईदिवा ४३. लंतए नउई राइंदियाई, ४४. महामुक सदि राईदियस ४५. सहस्सारे दो राईदियवाई ४६. आणयपाणयाणं संखेज्जा मासा, ४०. बाणाई वासा ४८. एवं गेवेज्जदेवाणं । ४६. इह यद्यपि ग्रैवेयकाधस्तनत्रये संख्यातानि वर्षाणां शतानि मध्यमे सहस्राणि उपरिमे सक्षाणि विरह उच्यते । ( वृ० प० २४५) ५१. विजय वे जयंत जयंत अपराजियाणं असंखेज्जाई वाससहस्साइं । ५२. पनिओभानो । ५३. एवं भणिति हायंति' जणं एक्क समयं उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं, ५४. अट्टियागंज भणिय' । (०५।२२२) 3 ५५. सिद्धा णं भंते! केवइयं कालं वड्ढति ? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ (श० ५।२२३ ) समया । ५६.अट्टया ? गोयमा ! जहणेणं छम्मासा | ५८. जीवादीनेव भग्यन्तरेणाह For Private & Personal Use Only एक्कं समयं उक्कोसेणं (०५।२२४) (०१० २४५) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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