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२७. एकेंद्री वधै घटै अवटिया त्रिह, जघन्य समय इक माग ।
उत्कृष्टो ए आवलिका नों, असंख्यातमो भाग ।।
२७. एगिदिया वड्ढेति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि । ___ एएहिं तिहि वि जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं
आवलियाए असंखेज्जइभागं। (श० ५।२१६)
सोरठा २८. नहिं विरह एकेंद्री मांय, वधै घटै वलि
ए तीनूं कहिवाय, निसुणो न्यायज २६. एकेंद्री रै मांहि, घणां ऊपजै जे ___अल्प नीकलै ताहि, वृद्धि कहीजे ते
अवट्रिया । तेहनों ।। समय । समय ।।
३०. तथा एकेंद्री मांहि, अल्प ऊपजे जे समय ।
घणां नीकलै ताहि, घटै हाणि कहिजै तदा ।। ३१. तथा एकेंद्री मांय, सरिखा उपजे नीकलै ।
ते समये कहिवाय, वृद्धि हाणि नहिं, अवट्ठिया ॥ ३२. *बेइन्द्री वधै घटै इमहिज कहिवा, अवटिया इम होय ।
जघन्य समय इक ने उत्कृष्टो अंतरमुहूर्त दोय ॥ ३३. एक अंतरमहर्त विरह, अंतरमुहर्त दूसरै।
ऊपजै जेताज निकलै, अवट्टिया दुगुणंतरै ॥ ३४. "इमहिज जाव चरिद्री कहिवा, शेष रह्या ते न्हाल ।
वध घटै ते तिमहिज भणवा, हिवै अवट्ठिया नो काल ।।
२६. 'एगिदिया वड्दति वि त्ति' तेषु विरहाभावेऽपि बहुतराणामुत्पादादल्पतराणां चोद्वर्तनात्,
(वृ० प० २४५) ३०. 'हायंति वि' त्ति बहुतराणामुद्वर्तनादल्पतराणां चोत्पादात् ।
(वृ० प० २४५) ३१. 'अवट्ठिया वि' तितुल्यानामुत्पादादुद्वर्तनाच्चेति ।
___ (वृ० प० २४५) ३२. बेइंदिया 'वड्ढंति, हायंति' तहेव, अवट्ठिया जहणेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता।
(श०५।२२०) ३३. एकमन्तमहत्तं विरहकालो द्वितीयं तु समानानामुत्पा
दोद्वर्तनकाल इति । (वृ० प० २४५) ३४. एवं जाव चउरिदिया। (श० ५।२२१)
अवसेसा सम्वे 'वड्ढंति, हायंति तहेव, अवट्ठियाणं
नाणत्तं इम, ३५. समुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं दो अंतोमुहुत्ता;
३६. गब्भवक्कंतियाणं चउव्वीसं मुहुत्ता,
३७. संमुच्छिममणुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता,
३८. गब्भवक्कंतियमणुस्साणं चउबीसं मुहुत्ता,
३५. विरह संमूच्छिम तिर्यंच पंचेन्द्री, इक अंतरमहर्त्त होय ।
तेहथी दुगुणो काल अवट्ठिया नो, अंतरमहूर्त दोय ।। ३६. गर्भेज तिर्यंच में विरह काल थी, मुहूर्त बार जगीस ।
दुगुणो काल है अवट्ठिया नों, कह्या महूर्त चउबीस ।। ३७. विरह समूच्छिम मनुष्य मांहै जे, कह्या मुहूर्त चउबीस ।
दुगुणो काल है अवट्ठिया नों, मुहुर्त अड़तालीस ॥ ३८. बार मुहूर्त विरह गर्भज मनुष्ये, वलि मुहूर्त बार जगीस ।
जिण समय ऊपजै जिता नोकल अवट्ठिया मुहूर्त चउबीस ।। ३६. व्यंतर जोतिषि सुधर्म ईशाणे, विरह महूर्त चउवीस ।
दुगुणो काल है अवट्ठिया नों, मुहूर्त अड़तालीस ॥ ४०. तृतीय कल्प विरह नव अहोनिश, ऊपर मुहर्त बीस ।
दुगुणो काल है अवट्ठिया नों, निशि अठारै मुहूर्त चालीस ।। ४१. माहिंद्र द्वादश दिन दस मूहर्त, विरह कह्यो जगदीश ।
दुगुणो काल है अवट्ठिया नों, दिन चउबोस मुहूर्त बीस ॥ *लय : धिन प्रम रामजी लय : पूज मोटा मांज......
३६. वाणमंतर-जोतिसिय-सोहम्मीसाणेसु अट्टचत्तालीसं
मुहुत्ता, ४०. सणंकुमारे अट्ठारस राइंदियाइं चत्तालीसं य मुहुत्ता ।
४१. माहिदे चउवीसं राइंदियाई वीस य मुहुत्ता ।
श० ५, उ०८, ढाल ९३ ९७
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