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१२०. * एहनों हे भगवंत ! द्रव्य थकी खेत्र काल भाव थी, प्रदेश
१२१. कुण
१२२. हे
कुण थी थी थोड़ा, वलि बहत्व वलि तुल्य बरोबर, विशेषाधिक नारद-पुत्र ! पुद्गल तेह अशेषा । सर्व थी घोड़ा है, भाव थकी अप्रदेशा || १२३. + द्रव्य विषे बे आदि गुण थी, एक गुण कृष्णादि थोड़ा, १२४. *तेह थकी काल
असंखेज्ज गुणा
अनंत गुण कृष्णादि बहु । ते माटे ए अल्पहु || यो, अप्रदेशी पहिछान । छै, तास न्याय इम जाण ॥ वृत्तौ तास अर्थ वाणिये । रस फरस, संघात भेद पिछाणियै ।। पामतुं ।
।
१२५. परिणाम बाहुल एम जे समय वर्ण गंध
१२६. सूक्ष्म बादरपणं आदि, परिणाम अन्य
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ते समय काल थी अप्रदेशि का समय इक स्थिति हतुं ॥ १२७. जे अन्य परिणामे परिणाम, तेह समय विधे सही । काल थी अप्रदेशि कहिये, ते माटे ए अधिक ही ।।
सुविशेष | अप्रदेश ||
*लय : नमूं अनन्त चौबीसी लय: पूज मोटा भांजे ....
यतनी
१२८. इम भाव वर्णादि परिणाम, पूर्व कला ते रूपे ताम | द्रव्य परमाणु आदिक मांहि, काल थी अप्रदेशि है ताहि ॥ १२. क्षेत्र आधी एक प्रदेश, आदि देह अवगाव विशेष |
अन्य स्थान गमन आधी जन्न, काल थी अप्रदेशि निप्पन्न ।। १३०. संकोच विकोच अवगाण, ते आश्रयी पहिछाण । काल थी अप्रदेशि होय, तसु एक समय स्थिति जोय ।। १३१. तथा सूक्ष्म बादर जोय, वलि अस्थिर स्थिर अवलोय । ते आधी पिण सुविशेष, हुर्व काल धकी अप्रवेश ।। १३२. वलि सेज निरेज है ताम, बलि शब्दादिक परिणाम । इत्यादिक आश्री सुविशेष, नीपना काल थी अप्रदेश | १३३. भाव थी अप्रदेशि थी तेह असंखेज गुणा छे एह | ह्या द्रव्य प्रमुख विषे सोय, परिणाम बहुल अवलोय ॥
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बखाण । पहियाण ॥
१२० एखि मं भंते! पोमनाणं दस्वादेसे लेत्तादेसेणं, कालादेसेणं, भावादेसेणं सपएसाणं अपएसाण य ।
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१२१. कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ? बहुया वा वा ? विसेसाहिया वा ?
१२२. नारा
अपएसा,
१२४. कालावेसे अपएसा असणा
सम्यस्थोवा पोला भावादेसेणं
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तुल्ला
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१२५-१९२० यो हि यस्मिन् समये वर्णन्धरसस्पर्शसङ्घातभेदसूक्ष्मत्वादत्वादिपरिणामान्तरमापन्नः स तस्मिन् समये तदपेक्षया कालतोऽप्रदेश उच्यते, तत्र समयस्थितिरित्वम्, परिणामाश्च बहव इति प्रतिपरिणाम कालादेशसंभवात मिति ।
(बु० १० २४३)
श०५, ०८, ढाल ६२ ६३
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