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________________ 1 " का । रा 11 १०२. जे खेत्र थी प्रदेश मे आकाश परदेशे रा । ते काल थी सप्रदेशि ये समवादि स्थितिकपणे क ॥ १०४. जे खेत्र थी सप्रदेशि बे आकाश परदेशे रह्यः । काल थी अप्रदेश इम इक समय स्थितिकपणे का. ॥ १०५. जे श्री प्रदेशि में आकाश परदेशे रय । खेत्र ते भाव भी प्रदेशि के गुण आदि कृष्णादिक कहा ॥ १०६. जे खेत्र थी सप्रदेशि वे आकाश परदेशे रा । ते भाव थी अप्रदेशि इम गुण एक कृष्णादिक का 11 १०७. जे काल थी सप्रदेशि बे समयादि स्थितिकपणें रहा । ते द्रव्य भी प्रदेशिन, दुपदेखियादिक में कहा ॥ १०. जे काल वो सप्रदेशि ये समयादि स्थितिकपणे ह्य ते द्रव्य की अप्रदेशि इम परमाणु-पुद्गल का ॥ १०२. जे काल की सप्रदेशि वे समयादि स्थितिरूपणे का ं । ते खेत्र भी प्रदेशि वे आकाश परदे रहा 11 ११०. जे काल की सप्रदेशि वे समयादि स्थिति ते खेत्र थी अप्रदेशि इक आकाश परदेशे १११. जे काल थी सप्रदेशि बे समयादि स्थितिकपणै रह्य | ते भाव थी सप्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक कहा ॥ ११२. जे काल थी सप्रदेशि बे समयादि स्थितिकपणै रह्य । ते भाव भी अप्रदेशि इम गुण एक कृष्णादिक क ॥ ११३. जे भाव थी सप्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक रहा। ते द्रव्य थी सप्रदेशि खंध, दुपदेसियादिक ने कहा ॥ ११४. जे भाव भी प्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक रहा। ते द्रव्य थी अप्रदेशि इम परमाणु युद्गल ने कहा ॥ ११५. जे भाव भी प्रदेशि वे गुण आदि कृष्णाविक कहा । ते क्षेत्र यो प्रदेति वे आकाश परदेशे रा ११६. जे भाव भी प्रदेशि वे गुण आदि कृणादिक का अप्रदेश इक आकाश परदेशे रहा ॥ प्रदेशि के गुण आदि कृष्णादिक रहा। प्रदेश के सम्पादि स्थितिरूपणे ल ॥ प्रदेशि वे गुण आदि कृष्णादिक रहा । ते काल भी अप्रदेशि इम, इक समय स्थितिकपणे बस ते क्षेत्र यो ११७. जे भाव भी ते काल भी ११८. जे भाव भी ११६. अथ एहनुं वलि ते ९२ भगवती जोड़ Jain Education International वहा द्रव्य प्रमुख थी, सप्रदेश नुं तेह | अप्रदेशी तणो, अप्रदेशी तणो, अल्पबहुत्व कहेह || For Private & Personal Use Only ११६. जामेव द्रव्यादितः सप्रदेश प्रदेशानामल्पबहुत्व विभागमाह - ( वृ०१० २४१) www.jainelibrary.org
SR No.003618
Book TitleBhagavati Jod 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages582
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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