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________________ धम्मं पडिवण्णा अवसेसा णं परिसा समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसंति वंदित्ता मंसित्ता एवं बयासी सुयवखाए ते भंते! णिग्गंथे पावयणे एवं सुपण्णत्ते सुभासिए सुविणीए सुभाविए अणुत्तरे ते भंते! णिग्गंथे पावणे धम्मे णं आइक्खमाणा तुम्भे उवसमं आइक्खह उवसमं आइक्खमाणा विवेगं आइक्खह विवेगं आइक्खमाणा वेरमणं आइक्खह वेरमणं आइक्खमाणा अकरणं पावाणां कम्माणं आइक्खह परि णं अच्छे के समवा मावा के एरिस धम्ममाइति किमंग पुण इत्तो उत्तरतरं एवं वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया । ३११. प्रथम डाल प्रभु वच सुन भारी पहुंडी परिषद निज पद सारी। भिक्षु भारीमा ऋषिराम प्रसादं, 'जय जय' संपति अव्यावाध जय जय वर्द्धमान जगतारी, आख्या वयण अमूल्य उदारी ।। २. जेष्ठ तेहनुं ढाल : २ वहा तिण काल ने तिण सम, श्रमण तो सुविचार | भगवंत श्री महावीर नौ जेष्ठ प्रथम शिष्य सार ॥ शोस आस्यूं सोरठा कहिवेह, सकल संघ नायकपणुं । एह, हिव कहियै छै नाम तसुं ॥ *वीरजी के शिष्य प्यारे । जग प्यारो, शासण सिणगारो, स्वामी हद प्यारो ।। ध्रुपदं ।। ३. ओ तो इंद्रभूति प्रसिद्धो नाम मात पिता नो दीधो ॥ दूहा इंद्रभूति नामे करी, तृतिया विभक्ति स्थान । विभक्ति ना परिणाम थी, नाम पाठ पिछान' ॥ सोरठा अंतेवासी ख्यात, ते तो श्रावक पिण हुवै । इह कारण अवदात, आगल कहियै छै हि ॥ *लय - वनमाला ए निसुणी जाम *लय — ज्यांरं सोभै केसरिया साड़ी Jain Education International १. यहां व्याकरण के अनुसार 'नाम्ना इन्द्रभूतिः' तृतीया विभक्ति होनी चाहिए। पर विभक्ति का विपरिणाम होने से तृतीया विभक्ति के स्थान पर 'इंदभूती नामं अणगारे' इस पद में प्रथमा विभक्ति का प्रयोग हुआ है । १, २. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे अंतेवासी तेन कालेन तेन समयेन श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य 'जेट्ठे' त्ति प्रथमः 'अंतेवासि' त्ति शिष्यः । अनेन पदद्वयेन तस्य सकलसंङ्घनायकत्वमाह (१००१०११) ३. इंदभूती नाम इन्द्रभूतिरिति मातापितृकृतनामधेयः । ४. 'नाम' ति विभक्तिपरिणामान्नाम्नेत्यर्थः । For Private & Personal Use Only (बु०० ११) (००११) ५. अन्तेवासी किल विवक्षया श्रावकोऽपि स्यादित्यत आह(२०-५० ११) श० १, उ० १, ढा० २ ३७ www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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