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________________ ३०७. फुन समवसरणक तणुं वर्णक तेह इह विध जाणिय। वर वृत्ति थी संक्षेप करि कहियै तिको दिल आणिय ।। ३०८. तपस्वी श्रमण भगवंत ना वह अंतेवासी शिष्य भला। उग्रकुल ना ऊपना वर चरण-धारक गुण निला ।। ३०६. इत्यादि जे मुनि प्रमुख वर्णक इहां तेहिज जाणवू । सुर चतुर्विध प्रभु पास आवही वर्णक तास बखाणवू ।। ३०७-३०६. समवसरणवर्णके च 'समणस्स भगवओ महा वीरस्स अंतेवासी बहवे समणा भगवंतो अप्पेगइया उग्गपव्वइया' इत्यादि साध्वादिवर्णको वाच्यः, तथाऽसुरकुमारा: शेषभवनपतयो व्यन्तरा ज्योतिष्का वैमानिका देवा (देव्य) श्च भगवतः समीपमागच्छन्तो वर्णयितव्याः । (वृ०-प०१०) ३१०. *प्रभु वंदवा परषद निकली, धर्म कह्यो जिन धीरं। ३१०. परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। पडिगया परिसा। पाछी बली परपदा सुणन, स्वाम वयण सुख सीरं ।। (श० ११८) वाल-परिसा णिग्गया इति राजगह नगर थकी राजादिक लोग भगवंत नै वंदन वा--'परिसा निग्गय' त्ति राजगृहाद्राजादिलोको अर्थे नीकल्या ते निर्गम इम-- भगवतो वन्दनार्थ निर्गतः । तन्निर्गमश्चैव-तए णं... तए णं रायगिहे णगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह इत्यादिर्वाच्यो यावद्भगवन्तं नमस्यन्ति पर्युपासते पहेसु-बहु जणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ...एवं खलु देवाणुप्पिया समणे भगवं चेति, एवं राजनिर्गमोऽन्तःपुरनिर्गमश्च तत्पर्युपासना महावीरे इह गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं ओगिहित्ता संजमेणं तवसा चौपपातिकवद्वाच्या। (वृ०-५० १०, ११) अप्पाणं भावमाणे विहरइ। तं सेयं खलु तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं नामगोयस्सवि सवणयाए किमंग पुण बंदण णमंसणयाएत्ति कटु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता इत्यादिक कहिवो, ज्यां लग भगवंत प्रते नमस्कार करै पर्युपासना करै । इम राजानिर्गम । वलि अन्तःपुर-निर्गम । वली ते पर्युपासना उववाई नी पर कहिवं । धम्मो कहिओत्ति-धर्म कथा इहां भगवंत नी कहिवी तिका इम-तएणं 'धम्मो कहिओ' त्ति, धर्मकथेह भगवतो वाच्या । समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रग्णो चिल्लणापमुहाणं देवीणं तीसे य महइ (वृ०-प०११) महालियाए परिसाए, इसिपरिसाए, मुणिपरिसाए, जइपरिसाए, देवपरिसाए, अणेगसयाए, अणेगसयवंदाए, अणेगसयवंदपरियालाए, ओहबले, अइबले, महब्बले, अपरिमियबलविरियतेयमाहप्पकंतिजुत्ते सारदनवथणियमहुरगंभीरकोंचणिग्धोसदुंदुभिस्सरे, उरेवित्थडाए, कंठेवट्टियाए, सिरेसमाइण्णाए, अगरलाए, अमम्मणाए सव्वक्ख रसण्णिवाइयाए, पुण्णरत्ताए, सब्वभासाणुगामिणीए, सरस्सईए, जोयणणीहारिणा सरेणं, अद्धमागहीए भासाए भासइ–अरिहा धम्म परिकहेति। तेसि सब्वेसि आरियमणारियाणं अगलियाए धम्म आइक्खइ सावि य णं अद्धमागही भाषा तेसि सब्जेसि आरियमगारियाणं अप्पणो सभासाए परिणामेणं परिणमइ तं जहा–अत्थिलोए अत्थि अलोए एवं जीवा अजीवा बंधे मोक्खे इत्यादि। तथा जह नरगा गम्मती जे णि रया जा य वेयणा णरए सारीरमाणसाइं दुक्खाई तिरिक्खजोणीए इत्यादि । पडिगया परिसत्ति लोक स्वस्थान गया, पाछो जावणो ते परषदा नो इम कहिवो-तए णं सा महइमहालिया महच्च परिसा महति महती आलप्रत्यय नै स्वाथिकपणा थकी अतिशय थकी अतिशय घणी भारी मोटी परषदा प्रशस्त पण प्रधान परषदा अथवा महा अर्चा, भली पूजा नै ते महा अर्चा परिषद् इति । समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठा जाब हियया उट्ठाए उठेइ उठ्ठित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति वंदति णमंसति वंदित्ता णमंसित्ता अत्थेगतिया मुंड भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया अत्थेगतिया पंचाणुव्वयं सत्त सिक्खावयं दुवालसविहं गिहि *लय-बीस बिहरमाण ३६ भगवती-जोड Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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