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११२. सीहगति नैं सोहविक्रमगति, दक्षिण दिशि नां एह उप्पति ॥ ११३. दिशा-इंद्र अमियवाहन प्यार, तुरियगति खिप्रगति सुधार ॥ ११४. सीह विक्रमगति नैं सीहगति, उत्तर दिशि ना एह उन्नति ।। ११५. वाउ- इंद्र बेलंब नैं प्यार, काल अने महाकाल उदार ।। ११६. अंजन नै चउथो रिठ जाण, दक्षिण दिशि ना एह पिछाण ॥ ११७. बाउ-द्र प्रभंजन ने प्यार काल अने महाकाल विचार || ११८. रिष्ट चोथो अंजन कहिवाय उत्तर दिशि ना ए सुखदाय ॥ ११६. थणित इंद्र घोष ने च्यार, आवत्तं वेयावर्त्त विचार ॥ १२०. नंदियावर्त्त महानंदियावत्त, दक्षिण दिशि नां एह उचत्त ।। १२१. पणित इंद्र महाषोप नं प्यार, आवर्त बेयावर्त उदार ॥ १२२. महानंदियावर्त्त नंदियावत्त, उत्तर दिशि नां एह पवित्त ॥ १२३. शक्र - सुरिन्द्र चिउं लोकपाल, सोम जम वरुण वेसमण न्हाल ॥ १२४. ईशा ने चिसोकपाल, सोम जम वेसमण वरण भात || १२५. इस इक इक जे इंद्र अंतर जाण, जाय अन्य तांई पहिचान || १२६. शक नां लोकपाल नुं नाम तिमहिज तीजे पंचम ताम || १२७. सप्तम दशम इंद्र लोकपाल, एक सरीखूं नाम निहाल || १२८. ईशानेंद्र लोकपास में नाम, चोबे छठे अष्टम नुं ताम ॥ १२९. अच्युत तणां लोकपाल, एहना नाम सरीखा न्हाल || १३०. ठाणांगे ए आखी वाय, पुस्तकांतरे भगवती १३१. एक सरीवो जेह, बहुति न्याय विचार तेह ॥ १३२. अथवा चथै शतक निहाल, ईशाणेंद्र नां जे लोकपाल || १३३. सोम जम वेसमण वरुण ताय, तसुं स्थिति गाथा' तिहां कहिवाय ॥ १३४.पण जे कल्पं ताम, तीजा लोकपाल नं नाम ॥ १३५. समण को ताय, वरुण नाम बोयो कहियाय || १३६. स्थिति पिण वेसमण थी सुविशेख, वरुण तणी अधिकी ते देख || १३७. तिण सूं पुस्तकांतर मांय, बहुश्रुत तास विचारै न्याय || १३. पुस्तक ते बहु परत मशार, ए अंतर देयो वृत्तिकार ।। १३६. पुस्तक अंतर आस्यूँ तास मे बहुत म्याय विभास ॥ बहुश्रुत १४० अंक अती सणुं अवधार, आख्यो अर्थ रूप अधिकार ॥
मांय ॥
तृतीयशते अष्टमोद्देश कार्थः ॥ ८॥
१४१.
दूहा अवधि छते पिण सुर तणें, छं इंद्रिय ते मार्ट इंद्रिय विषय नवम उद्देश
१. आदि दुय तिभागूणा पलिया धणयस्स होंति दो चेव । दो सतिभागा बरु पलियमहायण्ण देवाणं ॥
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( श० ४१५ संग्रहणी - गाहा )
१४१. देवानां चावधिज्ञानसद्भावेणीन्द्रियपयोग यस्तीत्यत इन्द्रियविषयं निरूपयन्नवमोकमा
( वृ० प० २०१)
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श०३, उ० ८, ६, ढा० ७३ ४१३
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