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२० हे प्रभु ! शक्र देवेंद्र तणी जे, ऊर्ध्व अधो तिरि गति-विषयेह। २०. सक्कस्स णं भंते ! देविंदस्स देवरण्णो उड्ढं अहे तिरियं गति नों विषय कुण-कुण थी अल्प छै, कुण-कुण थी बहु तुल्य अधिकेह? च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा? बहुए वा?
तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? २१. जिन कहै सर्व थी थोडो खेत्र जे, एक समय शक नीचो जाय। २१. गोयमा ! सव्वत्थोवं खेत्तं सक्के देविदे देवराया अहे
गति मंदपणां थकी क्षेत्र आश्रय, इक समय नीचो थोडो जावै ताय॥ ओवयइ एक्केणं समएणं २२. तेहथी तिरछो संख्यात भाग जायै, इहां कल्पना करि देखा.। २२. तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, इक समये एक योजन नीचो जाव, तिरछो जाय दोढ जोजन तिवारै ।। कल्पनया किलैकेन समयेन योजनमधो गच्छति शक्रः,
तत्र च योजने द्विधाकृते द्वौ भागौ भवतः, तयोश्चैकस्मिन् द्विभागे मीलिते त्रयः संख्येया भागा भवन्ति अतस्तान्
तिर्यग् गच्छति, सार्द्ध योजनमित्यर्थः । (वृ०-५० १७८) २३. ऊध्वं संख्या ते भाग अधिक गति-कल्पना ए दोय योजन कहाय। २३. उडढं संखेज्जे भागे गच्छद। (०३।१२०) जोजन एक नां भाग करणा बे, इक-इक भाग अधिक इण न्याय ।। यान् किल कल्पनया त्रीन् द्विभागांस्तिर्यग्गच्छति तेषु
चतुर्थेऽन्यस्मिन् द्विभागे मीलिते चत्वारो द्विभागरूपाः संख्यातभागाः संभवन्ति अतस्तान् ऊवं गच्छति ।
(व०-५०१७८) २४.हे प्रभ! चमर अमरिंद्र तणी जे, ऊध्वं अधो तिरि गति-विषयेह। २४. चमरस्स णं भंते ! असूरिदस्स असुररण्णो उड्ढं अहे गति-विषय कुण-कुण थी अल्प है, कुण-कुण थी बहु तुल्य अधिकेह? तिरियं च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा?
बहुए ग? तुल्ले वा? विसेसाहिए वा? २५. जिन कहै सर्व थी थोडो खेत्र जे, चमर ऊर्ध्व इक समये जाय। २५. गोयमा ! सब्वत्थोवं खेत्तं चमरे असुरिदे असुरराया
गति मंदपणां थकी क्षेत्र आथये, इक समये ऊर्ध्व अल्प जावै ताय । उड्ढं उप्पयइ एक्केणं समएणं २६ तेच थी तिरछो भाग संख्याते जावे, नीचो संख्यातमें भाग निहाल। २६. तिरिय संखेज्जे भागे गच्छइ, अहे संखेज्जे भागे गच्छइ । सूत्र मांहि इम समचै भाख्यो, बुद्धिवंत न्याय मेलै सुविशाल ।।
(श० ३११२१) २७. वज्र ने जेम शक ने कह्यो तिम, णवरं विसेसाहिए कहिवाय। २७. वज्जं जहा सक्कस्स तहेव नवरं विसेसाहियं कायव्वं । वृत्ति मांहि कह्यो वाचनांतरे, साख्यात पाठ अछै इम ताय।।
(वृ०-प० १७७) २८. हे प्रभु ! बज्र तणों गति-विषय, ऊंचो नीचो तिरछो छै तेह। २८. वज्जस्स णं भंते ! उड्ढ अहे तिरियं च गइविसयस्स गति-विषय कुण-कुण थी अल्प है, कुण-कुण थी बहु तुल्य अधिकेह? कयरे कयरेहितो अप्पे वा? बहुए वा ? तुल्ले वा ? विसे
साहिए वा? २६. जिन कहै सर्व थी थोडो खेत जे, एक समय वन नीचो जाय। २६. गोयमा ! सब्वत्थोव खेतं बज्जे अहे ओवयह एक्केणं तिरछो विशेष अधिक खेत्र जाय तेहथी, ऊंचो विशेष अधिक खेत्र ताय ।।
समएणं, तिरियं विसेसाहिए भागे गच्छइ, उड्ढे विसेसाहिए भागे गच्छइ।
(श० ३।१२२) ३०. एक योजन नां बारै भाग तेहवा, एक समय मांहै शक्र तिवार।
ऊंचो तो भाग च उवीस जाय छ, तिरछो अठारै मैं नीचो बार ।। ३१. वज्र समय में बारे भाग ऊंचो, तिरछो दस नीचो आठ जगीस।
चमर ऊंचो आठ भाग जाय छ, तिरछो सोलै नीचो भाग चउवीस ।। ३२. ए भाग नी बात अर्थ में कही छै, सूत्र माहै तो समचै बाय ।
पाठ सू मिलती तिका मान लेणी, अणमिलती नहीं मानणी ताय ।।
३५८ भगवती-जोड़
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