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*अहो तापस स्वामी ! म्हारी अरज सुणो अंतरजामी ! (ध्रुपदं) १५. तामली बाल तपस्वी रे जानो, रह्या ऊपरे चिउं दिशि स्थानो।
दिव्य सुर ऋद्धि दिव्य सुर कांति, दिव्य सुर अनुभाव सुशांति ।।
१५. तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसि
ठिच्चा दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवज्जुति दिव्व देवाणुभागं 'सपक्खि' ति समाः सर्वे पक्षा:-पार्वाः पूर्वापरदक्षि
णोत्तरा यत्र स्थाने तत्सपक्षम्। (वृ०-५० १६७) १६. दिव्वं बत्तीसतिविहं नट्टविहि उवदंसेंति,
१६. दिव्य मनहर वर प्रधानो, नाटक बत्तीस विध पहिछानो।
कह्या रायप्रश्रेणी मझारो, तिम देखा. विविध प्रकारो।। १७. तामली बाल-तपस्वी ने तेही, तीन वार प्रदक्षिण देई।
करी वंदना नै नमस्कारो, विनय सहित बोलै तिणवारो॥
१७. तालि बालतस्सि तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण
करेंति, करेत्ता वदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं
वयासी१८. एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे बलिचंचारायहाणी
वत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य १६. देवाणुप्पियं बंदामो नमसामो जाव पज्जवासामो ।
२०. अम्हण्णं देवाणु प्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अजिंदा
अपुरोहिया, २१, २२. अम्हे य णं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया
इंदाहीणकज्जा,
२३. तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचं रायहाणि आढाह,
१८. अहो देवानुप्रिया ! सुण प्यारा, अम्हे बलिचंचा नां रहिणहारा।
धणां असुरकुमार सुजाणी, ए तो देव देवी पहिछाणी।। १६. अहो देवानुप्रिय ! तुझ तामो, म्है तो वंदां करां गुणग्रामो।
नमस्कार करां सिर नामी, जाव सेव करां सुख-धामी।। २०. अहो देवानप्रिया! अम्हारी, राजधानी बलिचंचा सारी।
थइ इंद्र-रहित इहवारी, नहीं पुरोहित शांति-कर्मकारी। २१. म्हारो इंद्र हंतो ते चव्यो तासो, तिण सूं हुआ अत्यंत उदासो।
अम्है इंद्र तणां छां अधीनो, वलि इंद्र अधिष्ठित चीनो ।। २२. ए तो इंद्र अधिष्ठित सारा, स्वामी सर्व कार्य छै म्हारा।
ते इंद्र विना करां केमो, तिण सू सर्व दुखी थया एमो ।। २३. तिण अर्ज करां म्है तुम्हने, आप आदर दीजै अम्ह नैं। बलिचंचा
राजधानी, करो अंगीकार दिल आनी।। २४. बलै स्वामीपण थे जाणो, मन माहै समरण आणो।
प्रयोजन निश्चय कीजै, म्हारी वीनतडी मानीजै ।। २५. वलि कीजै आप नियाणो, प्रार्थना विशेष सुजाणो।
राजधानी बलिचंचा ऊपर, स्थिति-संकल्प करि मन में धर ।। २६. कृपानिधि ! कृपा कीजै, या तो अर्ज म्हारी मानीजै।
एहवो नियाणो चित धरी नै, काल अवसर काल करी नैं ।। २७. बलिचंचा
राजधानी, तिहां ऊपज-स्यो गुणखानी। तुम्है थासो इंद्र अम्हारा, अहो प्राणवलभ सुण प्यारा॥ २८. जब आप अम्हारे संघातो, देव संबंधिया विख्यातो।
भोगविवा योग्य सुभोगो, भोगवता विचरस्यो सुजोगो।। २६. तामली बाल-तपम्वी तिवारै, एहवा वचन सुणी नैं जिवार।
एह अर्थ आदरै नांही, स्वामीपणों न जाणे काई ।।
२४. परियाणह, सुमरह, अट्ठ बंधह,
२५. निदाणं पकरेह, ठितिपकप्पं पकरेह,
२६. तए णं तुब्भे कालमासे कालं किच्चा
२७. बलिचंचाए रायहाणीए उववज्जिस्सह, तए णं तब्भे
अम्ह इंदा भविस्सह, २८. तए णं तुब्भे अम्हेहि सद्धि दिव्वाई भोगभोगाई भुजमाणा विहरिस्सह ।
(श० ३।३८) २६. तए णं से तामली बालतवस्सी तेहि बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहि असुरकुमारेहिं देवेहि देवीहि य एवं वुत्ते समाणे एयमढें नो आढाइ, नो परियाणेइ,
*लय-सुण चिरताली ३३२ भगवती-जोड़
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