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________________ १२. वायुभूति पूछे भगवान नैं, जो चमर इसो ऋद्धिवानो । जाव एहवी विकुर्वणा, करिवा समर्थ भगवानो ।। १३. तो प्रभु ! दक्षिण नां असुर थी, विशिष्ट रोचन दीपंदो। उत्तर दिशि नां असूर नों, बली वैरोचन - इंदो।। १२. एवं वयासी-जइ णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरराया एमहिड्ढीए जाब एवतियं च णं पभू विकुवित्तए, १३. बली णं भंते ! वइरोयणिदे वइरोयणराया 'वइरोयणिदे' त्ति दाक्षिणात्यासुरकुमारेभ्यः सकाशाद् विशिष्टं रोचनं-दीपनं येषामस्ति ते वैरोचनाऔदीच्यासुरास्तेषु मध्ये इन्द्रः-परमेश्वरो वैरोचनेन्द्रः। (वृ०-५० १५७) १४. केमहिड्ढीए ? जाब केवइयं च णं पभू विकुवित्तए? १४. केहवो महा ऋद्धिवान छै, यावत् केहवी जाणी। विकूर्वणा करिवा तणी, समर्थाइ पहिछाणी? १५. जिन भाखै बली नाम छै, वेरोचन नों राजा। महद्धिक जाव भवन तसुं, तीस लाख है ताजा ।। १६. साठ सहस्र सामानिका, शेष चमर जिम लेखो। तिम बली नै पिण जाणिय, णवर इतलो विशेखो।। १७. जाझो बूद्वीप नै, शेष तिमज सर्व ताह्यो। णवर भवण सामानिका, नानापणों कहिवायो ।। १८. बे वार सेव भंते ! कही, तीजा गोतम तिण वारो। वायभति तिण अवसरे, जावत विचरै सारो।। बीजा गोतम तिण अवसरे, अग्निभति अणगारो। वीर प्रतै वांदी करी, बोलै करी नमस्कारो॥ जो वली वैरोचन इंद्र ते, एहवो महाऋद्धिवानो। जाव इतो विविवा, समर्थ छै भगवानो। २८. तो प्रभु धरण दक्षिण दिशै, नागकुमार नो रायो। केहवो महाऋद्धिवान छै, जाव वैक्रिय समर्थायो? जिन कहै धरण नागेंद्र ते, एहवो महाऋद्धिवंतो। जाव भवन तेहना तिहां, लाख चम्मालीस तंतो।। १५. गोयमा! बली णं बइरोणिदे वइरोयणराया महिड् ढीए जाव महाणुभागे। से णं तत्थ तीसाए भवणावाससयसहस्साणं। (वृ०-प० १५६) १६. सट्ठीए सामाणियसाहस्सीणं सेसं। (वृ०-५० १५६) जहा चमरस्स तहा बलिस्स वि नेयब्वं, नवरं-. १७. सातिरेगं केवलकप्पं जंबुद्दोवं दीवं भाणियब्वं, सेसं तं चेव निरवसेसं नेयवं, नवरंनाणतं जाणियव्वं भवणेहि सामाणिएहि य। (श० ३।१२) १८. सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति तच्चे गोयमे वायुभई अणगारे जाव पज्जुवासइ। (श०३।१३) १६. तते णं से दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी---- २०. जइ ण भंते ! बली वइरोणिदे वइरोयणराया एमहि ड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए, २१. धरणे णं भंते ! नागकुमारिदे नागकुमार राया केमहिड् ढीए ? जाव केवइयं च णं पभू विकुवित्तए? २२. गोयमा ! धरणे णं नागकुमारिदे नागकुमारराया महि ड्ढीए जाव महाणुभागे। से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं, २३. छहं सामाणियसाहस्सीणं, तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, छण्हं अग्गमहिसीणं, २४. सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, २५. चउव्वीसाए आयरक्ख देवसाहस्सीण अण्ण सि, च जाव विहरइ। २६. एवतियं च णं पभू विउम्बित्तए। से जहानामए जुवती नुवाणे २३. सामानिक षट सहस्र छै, तावतीसक तेतीसो। लोकपाल चिउं तेहने, छ अग्रहिपि जगीसो।। २४. सपरिवार महिषियां, परषद तीन विख्यातो। अणीकटक' तसं सात छ, सप्त अणिक नां नाथो ।। २५. आत्मरक्षक देवता, चउवीस सहस्र उदारो। अन्य सुर बहु नों अधिपति, यावत् बिचरै सारो।। विविवा समर्थ इसू, यथा दृष्टांत कहातो। युवान पुरुष युवती प्रत, ग्रहै हस्त करि हाथो ।। ६ . १. सेना। ३१८ भगवती-जोड़ dain Education Intermational Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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