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________________ ४२, ४३. चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो एगमेगे सामाणिय देवे केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहि असुरकुमारेहि देबेहि देवीहि य आइण्णं वितिकिण्णं...करेत्तए। चमर असुर नां इंद्र नों, सामानिक इक एक । जंबूद्वीप प्रत तिको, संपूर्ण सुविशेख ।। घणां असुर देवे करी, देवी करि आइन्न । वितिकिन्नादि पाठ जे, एकार्थेज सचिन्न ।। वैक्रिय देव देवी करी, जंबूद्वीप भरत । हिवे बीजो समर्थपणों, सामानिक नों कहंत ।। असंख्यात द्वीप-समुद्र ने, भरवा नी समर्थाय । भरया भरै भरसी नहीं, तीन काल रै माय ।। प्रभु ! चमर असूरिद नां, सामानिक सुर ताय । महद्धिक इम यावत् तस, इति वैक्रिय समर्थाय ।। तावतीसक प्रभु चमर नां, केहवा महद्धिक देव । जिम सामानिक आखिया, तिम तावतीसक पिण भेव ।। लोकपाल तिमहिज अछ, नवरं जे संख्यात। द्वीप समद्र भरवा तणी, वैक्रियकरण विख्यात ।। लोकपाल प्रभु ! चमर नां, एहवा महद्धिक जाव। वलि करवा विकुर्वणा, समर्थ इसा कहाव ।। ४४. एवतियं च णं पभू विउब्वित्तए जाव केवलकप्पं जंबुदीवं। __ (वृ०-५० १५८) ४५. ...तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे बहूहि असुरकुमारेहि देवेहि देवीहि य आइण्णे...करेत्तए। ...नो चेव णं संपत्तीए विकुव्विसु वा विकुब्वंति वा, विकुव्विस्संति वा। (श० ३१५) ४६. जइणं भते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुररणो सामाणिय देवा एमहिड्ढीया जाव एवतियं च णं पभू विकु वित्तए, ४७. चमरस्स णं भंते ! अमुरिदस्स असुररण्णो तावत्तीसया देवा केमहिड्ढीया? तावत्तीसया जहा सामाणिया तहा नेयव्वा। ४८. लोयपाला तहेव, नवरं---संखेज्जा दीव-समुद्दा भाणियवा। (श०३।६) ४६. जइ णं भंते ! चमरस्स असुरिदस्स असुररण्णो लोग पाला देवा एमहिड्डीया जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए, ५०. चमरस्स णं असुरिदस्स असुररण्णो अग्गमहिसीओ देवीओ केमहिड्ढियाओ जाव केवइयं च णं पभू विकुवित्तए? ५१. गोयमा ! चमरस्स णं असुरिदस्स असुररण्णो अग्गम हिसीओ देवीओ महिड्ढियाओ जाव महाणुभागाओ। ताओ णं तत्थ साणं-साणं भवणाणं, ५२. साणं-साणं सामाणियसाहस्सीणं, साथ-साणं महत्तरि याणं, साथ-साणं परिसाणं जाव एमहिड्ढीयाओ। ५३. अण्णं जहा लोगपालाणं अपरिसेसं। (श० ३१७) तो अग्रमहेषी चमर नीं, केहवो महाऋधवंत । जाव किती विकुर्वणा, करवा समर्थ हुंत? जिन कहै अग्रमहेषियां, महाऋद्धिवान कहाय । जावत् महानुभाव छ, निज-निज भवनै ताय ।। AC निज-निज सहस्र सामानिका, निज निज महत्तरिकाय । निज-निज परषद जाव इम, महद्धिक इसी कहाय ।। अन्य सहु विस्तार ते, लोकपाल जिम जाण । संपूर्ण कहिवो इहां, अग्रमहेषी आण ।। सेवं भंते ! कही वीर ने, कर वंदना-नमस्कार । वायुभूति गोतम कन्है, आया अग्निभूति अणगार ।। ५४. सेवं भंते ! सेवं भते ! ति भगवं दोच्चे गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव तच्चे गोयमे वायुभूती अणगारे तेणेव उवागच्छइ, अंक इकतीस नं देश ए, सैंतालीसमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' संपति माल । ३१६ भगवती-जोड़ Jain Education International Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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