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________________ ६८. 'उवयारियलेणं' ति गृहस्य पीठबन्धकल्पं । (वृ०-५० १४६) सोरठा चमर-प्रासाद अमूल्य, तेह प्रमुख नी पीठिका। गृह-पीठि बंध तुल्य, ते उपकारिक-लयन छै ।। वा०–ते बहु सम रमणीक भूमिभाग ना बहु मध्य देश भाग नै विषै इहां अतिहि मोटो उपकारिका-लयन परूप्यो । ते चमर असुरेन्द्र संबंधी प्रसादावतंसकादिक नीं पीठिका अनै अन्य स्थानके ए उपकार्य उपकारिका इति प्रसिद्धा। ६६. *वैमानिक नां विमान गढ नो, प्रामाद सभादि प्रमाणो। तेह थी अर्ध प्रमाण कह्यो छ, राजधानी में जांणो।। वाल-सौधर्म वैमानिक नां विमान नों प्राकार-गढ़ तीन सौ जोजन ऊंचपण अन ए चमर नी राजधानी नों प्राकार—गढ़ दोढ़ सौ जोजन ऊंचपण । तथा सौधर्म वैमानिक नों मूल प्रासाद पांच सौ जोजन ऊंचापण । ते मूल प्रासाद नै चउफेर च्यार प्रासाद अढाई सौ योजन ऊंचपण । तेहन चउफेर सोल प्रासाद सवा सौ योजन ऊंचपण । तेहनै चउफेर चउसठ प्रासाद साढ़ा बासठ जोजन ऊंचपण। तेहनै चउफेर दोय सौ छप्पन्न प्रासाद सवा इकतीस जोजन ऊंचपण । ए सुधर्म देवलोक ना विमान नी च्या र परपाटी कही। इहां चमर नी राजधानी में उपकारिकालयन ते पीठिका - विष चमर नों मूल प्रासाद अढी सौ जोजन ऊंचपण, तेहनै चउफेर च्यार प्रासाद सवा सौ योजन ऊंचपण, तेहनै च उफेर १६ प्रासाद ६२॥ योजन ऊंचपण, तेहनै चउफेर ६४ प्रासाद सवा इकतीस योजन ऊंचपण, तेहनै च उफेर २५६ प्रासाद १५ योजन, एक जोजन ना ८ भाग कीज ते माहिला ५ भाग एतलो ऊंचपर्ण । एहिज वाचनांतरे कह्य-चत्तारि परिवाडीओ पासायवडंसगाणं अद्धदहीणाओं' ए च्यार परिपाटी नै विषे ३४० प्रासाद अन एक मल प्रासादावतंसक ए ३४१ हुवे । ए प्रासाद थकी ईशाण कूणे सुधर्मा-सभा, सिद्धायतन, उपपात-सभा, द्रह, अभिषेक-सभा, अलंकार-सभा, व्यवसाय-सभा ते पुस्तक-सभा, ए चमर नीं सौधर्म सभादिक छै। ते सौधर्म वैमानिक सभादिक प्रमाण थकी अर्द्ध प्रमाण छ। ते भणी इहां ए चमर संबंधी सभादि ऊंचपणे ३६ योजन, लांबपण ५० जोजन, चोड़पणे २५ जोजन छ। ६६. सव्वप्पमाणं बेमाणियप्पमाणस्स अद्धं नेयब्वं । (श०२।१२१) वा०-सौधर्मवैमानिकानां विमानप्राकारो योजनानां त्रीणि शतान्युच्चत्वेन, एतस्यास्तु सार्द्ध शतं, तथा सौधर्मवैमानिकानां मूलप्रासादः पञ्च योजनानां शतानि तदन्ये चत्वा रस्तत्परिवारभूताः साढे द्वे शते ४, प्रत्येकं च तेषां चतुर्णामप्यन्ये परिवारभूताश्चत्वारः सपादशतम् १६, एवमन्ये तत्परिवारभूताः सार्दा द्विषष्टिः ६४, एवमन्ये सपादैकत्रिंशत् २५६, इह तु मूलप्रासादाः साढ़े द्वे योजनशते एवमद्धिहीनास्तदपरे यावदन्तिमाः पञ्चदश योजनानि पञ्च च योजनस्याष्टांशाः । एतदेव वाचनान्तरे उक्तम्-चत्तारि परिवाडीओ पासायवडेंसगाणं अद्धद्धहीणाओ त्ति एतेषां च प्रासादानां चतष्वपि परिपाटीषु त्रीणि शतान्येकचत्वारिंशदधिकानि भवन्ति, एतेभ्यः प्रासादेभ्यः उत्तरपूर्वस्यां दिशि सभा सुधर्मा सिद्धायतनमुपपातसभा ह्रदोऽभिषकसभाऽलङ्कारसभा व्यवसायसभाचेति, एतानि च सुधर्मसभादीनि सौधर्मवैमानिकसभादिभ्यः प्रमाणतोऽर्द्धप्रमाणानि, ततश्चोच्छ्य इहैषां षट्त्रिंशत्योजनानि पञ्चाशदायामो विष्कम्भश्च पंचविंशतिरिति। (वृ०-५० १४६) ७०. 'सभा सुधर्मा थी ईशाण, जिण-घर तिहां कहिवायो। बलि उपपात सभा पिण कहिवी, बलि द्रह वर्णन आयो ।। बलि अभिषेक सभा पिण त्यां छै, राजा बेस तिहां आवी। बलि अलंकार सभा पिण त्यां छे, अलंकार तनु भावी।। जिम विजय सर नों ऊपजवो, जीवाभिगम मझारो। आख्यो छै विस्तार तिमिज ते, इहां कहिवं अधिकारो।। उपपात सभा में नवो ऊपनों, चितवियो मन माह्यो। पहिला पछै मुझ नै स्यूं करिवू ? राज तणी विध ताह्यो। *लय-प्रभवो चोर चोरां ने 'लय—साचू बोलोजी ७२. सर्व च जीवाभिगमोक्तं विजयदेवसम्बन्धि चमरस्य वाच्यं । (वृ०-प० १४६) ७३. उपपातसभायां सङ्कल्पश्चाभिनवोत्पन्नस्य कि मम पूर्व पश्चाद्वा कर्तुं श्रेयः? (व०-प०१४६) श०२, उ०८, ढा०४५ ३०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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