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________________ में छहड़े मोक्ष नो फल कह्यो छ। तेहनों अर्थ 'दरियापुरी धर्मसी कृत भगवती' नो यंत्र, ते मध्ये पिण साधुहिज फलायो छै। तथा लूकां री सूत्रां री ५८ बोलां री हुंडी ते मध्ये जे समणं वा माहणं वा एक साधु नै बिहुँ नामे करी क ह्या। तथा वा शब्द पिण का एहवू कह्य । तिहां सूयगडांग १७ अध्ययन नी साख दीधी छ। समणे ति वा माहणे ति वा इत्यादिक साधु रा नाम कह्या तिहां तेरै ठिकाण वा शब्द का छै। एहवं ते हुण्डी मध्ये पिण कह्य छ। इम अनेक ठामे सूत्र नै विषे समणं वा माहणं वा साधु नै कह्या छ। अनै तेहनी सेवा नो मोक्ष नुं फल कह्यो छ। तथा अन्यतीर्थी ना एबे नाम कह्या छै पिण श्रावक ना नथी कह्या। विवेकलोचन करी विचारी जोइज्यो। ___अनै वृत्ति में इहां दूजो अर्थ माहण शब्दे श्रावक कह्य तथा भगवती श०१ उ०७ में सांभलवा नै अधिकारे स्थूल प्राणातिपातादिक थकी निवो त श्रावक नै माहण कह्यो। तथा रायप्रश्रेणी नी वृत्ति में परम गीतार्थ श्रावक नै माहण कह्यो। अनै उत्तराध्ययन अध्येन २५ में सर्वथा प्रकारे पंच आथव त्याग्या, पंच महाव्रतधारी, न्याती-संग पूर्व-संजोग छोड्या, तेहनै माहण कह्यो। तथा सूयगडांग अध्येन १६ में सर्व पाप थी निवयो तेहनै माहण कह्यो। इम अनेक ठामै सूत्र माहग साधु कह्या ते पाठ देखतां वृत्ति में माहण शब्दे श्रावक कह्यो ते विरुद्ध । वृत्ति चूणि में तो अनेक वारता विरुद्ध कही छ। ते केतलाएक बोल लिखिये छ। आचारंग श्रु०२ अ०१ उ०१ कारणे आधाकर्मीआदि लेणो वृत्ति में कह्यो ते कहै छैतथाप्रकारमेवंजातीयमऽशुद्धमशनादि चतुर्विधमऽप्याहारं परहस्ते दातहस्ते परपात्रे वा स्थितं अप्रासुकं सचित्तम् अनेषणीयम् आधाकर्मादि दोषदुष्टम् इति एवं मन्यमानः स भावभिक्षुः सत्यपि लाभे न प्रतिगृह्णीयादित्युत्सर्गत: अपवादस्तु द्रव्यादि ज्ञात्वा प्रतिगृह्णीयादपि, तत्र द्रव्यं दुर्लभद्रव्यं, क्षेत्रं साधारणद्रव्यलाभरहितं सरजस्कादिभावित वा, कालो भिक्षादि, भावो ग्लानतादिः इत्यादिभि: कारणरुपस्थितैरल्पवहत्वं पर्यालोच्य गीतार्थो गलीयादिति।। (आचारांग-वृत्ति पत्र ३२१) इम शीलांकाचार्य टीका में नीलण-फूलण तस-जीव सहित उत्सर्ग मार्गे न लेणो अनै कारण पडियां लेणो कह्यो। आधाकर्मी प्रमुख दोष दुष्ट उत्सर्ग मार्गे न लेणो अनै कारण पडियां द्रव्य क्षेत्र काल भाव, थोड़ो घणो टोटो आलोची गीतार्थ ग्रहै, इम कह्य ते प्रत्यक्ष विरुद्ध छ। भगवती शतक १८ उद्देशे १० सोमल नै महावीर स्वामी सचित्त नै असूझतो आहार साधु नै अभक्ष कह्य । तथा पुफिया उपंगे पिण सोमल नै पार्श्वनाथ सचित्त अनै असूझतो आहार साधु नै अभक्ष का । तथा थावरचा-पुत्रे पिण सुखदेव नै सचित्त नै असूझतो आहार साधु नै अभक्ष का। एहवो आहार साधु कारण पडियां किम लेवे ? अनै श्रावक सचित्त असूझतो साधु रै कारण जाणी किम बहिरावै ? __उबवाई, रायप्रश्रेणी, भगवती, उपासगदशा प्रमुख सूत्रे श्रावक साधु नैं प्रासुक एषणीक बहिरावं एह कह्य, पिण कारण पडियां अप्रासुक अनेषणीक देव एहवो नथी का । २६० भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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