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________________ वंदना नमस्कार करी हवी पाठ को-जनावन्ने नाइडुरे सुस्सुसमाने नमसमाणे अंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासति । इहां पिण तीर्थंकर नी पर्युपासना-सेवा कही १ । तथा ज्ञाता अध्येन ५।१७ कृष्ण अरिष्टनेमि कनै आया तिहां एहवो पाठ'जाव पज्जुवासइ' । अरिष्टनेमि नी पर्युपासना - सेवा कही २ । तथा ज्ञाता अध्येन १३|१० में नंदण भगवान कनै आयो तिहां एहवो पाठ कोजा पज्जुवासह इहां महावीर स्वामीनी पपासना-सेवा कही है। तथा छट्ठे अंगे जे श्रुतबंधे अ०] १२१२ राजगृह महावीर स्वामी पधातिह कह्यो - " परिसा निग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ । इहां पिण महावीर स्वामी नीपपासावा कही ४ तथा छट्ठे अंगे श्रु॰२ वर्ग ? अध्येन १११६ पार्श्वनाथ भगवंत पधार्या परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ । इम धर्मकथा में घणी जागां परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ पाठ कह्यो ५ । तथा अंतगड १।३ में कह्यो-आर्य सुधर्म स्वामी समवसऱ्या 'अज्ज जंबू जाव पज्जुवासति' ६ । तथा अणुत्तरोववाइ १११ में कह्यो– 'अज्ज सुहम्मस्स समोसरणं जाव जंबू पज्जुवासइ' ७ । तथा विन्दिसा सू० १६ में कह्यो अरिष्ट नेमनाथ पधार्या कृष्ण वासुदेव 'जाव पज्जुवासइ' ८। - तथा उपासग-दसा अध्येन २।४३ में कह्यो - महावीर स्वामी पधार्या कामदेव श्रावक 'जहा संखे जाव पज्जुवासइ' ६ । तथा निरियावलिया अध्येन ११४ में कह्यो- सुधर्म स्वामी पधार्या तिवार भगवंत जंबू नै ऊपनी प्रश्न पूछवानी श्रद्धा 'जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी' १० । तथा भगवती शतक १ उ० ६ सू० २८६ में कह्यो- रोहा अणगार नैं ऊपनी श्रद्धा 'जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासी' ११ । तथा भगवती शतक १२ में उ० १ सू० २ में कह्यो- सावत्थी नगरी भगवंत महावीर स्वामी पधार्या 'परिसा जाव पज्जुवासई', तिवारे ते संख आदि श्रावक एवार्ता सुयां जहा आभियाए जाय पज्जुवासंति' १२ । तथा भगवती १११ राजीव गौतम स्वामी जाय पर्युपासना करता इम बोल्या १३ । तथा भगवती शतक १२ उ० २ सू० ३६ कोसंबी नगरी भगवंत महावीर स्वामी पधार्या, तिवारे मृगावती जयंति श्राविका जिम देवानंदा जाव बंदी नमस्कार करी उदाई राजा ने आगल करी नै 'ठिया चेव जाव पज्जुवासइ' १४ । तथा भगवती शतक ११० ११ सू० ११५, ११६ में वाणिया ग्राम महावीर स्वामी पधाऱ्या 'जाव परिसा पज्जुवासइ', तिवारं सुदर्शण सेठ पिण वीर पँ आवी पंच अभिगमन साचवी 'तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ' १५ । तथा भगवती शतक २ उ० १ सू० ३६ बंधक विचार्या श्रेय नैं श्रमण मुझ भगवंत महावीर ने वंदना नमस्कार करी सत्कारी सनमानी कल्याणीक मंगलीक दैवत चैत्य एहवा भगवंत नीं पर्युपासना सेवा करिए प्रश्न पूछें। इहां महावीर स्वामीनी पर्युपासना कही ते तीर्थकर ना ए च्यार नाम कह्या वलि खंधक गौतम न कह्यो चालो गौतम ! थारा धर्माचार्य धर्म-उपदेशक नैं वंदणा नमस्कार करां जाव पर्युपासना सेवा करां । इहां तीर्थकर नीं सेवा कही १६ । २० भगवती जोड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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