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वा०-बे थी मांडी नव तांइ पृथक् (प्रत्येक) संज्ञा छै। तिण कारण बे सौ थी लेइ नव सौ नै पृथक्-सौ कहिये । इण न्याय नव सौ नों पिण पुत्र संभव। __एक जीव नव सौ नों पुत्र किम हुइ? ते कहै छै-नव सौ सांड प्रमुख नों वीर्य छै ते एक गाय प्रमुख नी योनि मांहि पेर्छ, एतलै नवसौ तिर्यच भोगवी तेहगें बीज एकळू थयु । तिण मांहि एक जीव ऊपनों, ते जीव नव सौ नो पुत्र थयो, नव सौ नां बीज में ऊपनां मारी।
*एक जीव - हे भगवंतजी ! एकण भव रै माय ।
जीव केतला पुत्रपण जे, शीघ्र ऊपजै आय? २३. श्री जिन भाखै जघन्य एक वा, बे तथा त्रिण सुत थाय ।
उत्कृष्टा पृथक्-लक्ष जीवा, शीघ्र सुतपणे ऊपजे आय ।।
२२.
२२. एगजीवस्स णं भंते ! एगभवग्गहणेणं केवइया जीवा
पुत्तत्ताए हब्बमागच्छति? २३. गोयमा ! जहणणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हब्वमागच्छति ।
(श० २।८७)
२४, २५. मत्स्यादीनामेकसंयोगेऽपि शतसहस्रपृथक्त्वं गर्भ
उत्पद्यते निष्पद्यते चेत्येकस्यैक भवग्रहणे लक्षपृथक्त्वं पुत्राणां भवतीति।
(वृ०-५० १३४)
सोरठा मत्स्यादिक नै जेह, एक संयोगे पिण जिके। मछली योनि विषह, तेह तणां जे गर्भ में ।। पृथक् - लक्ष उपजेह, निपजै जनम पिण बली। तिण सू एक भवेह, इक ने पृथक्-लक्ष सुत ।। फुन मनु योनि विषेह, एक संयोगे पिण जिके।
पृथक्-लक्ष उपजेह, पिण निपजै जनमै नहिं बहु ।। २७. *ते किण अर्थे ? इम कहिये प्रभु, जाव शीघ्र उपजेह।
गर्भ विष पृथक् लक्ष जीवा?, ए गोयम प्रश्न करेह ।। २८. जिन कहै-स्त्री नै बलि पुरुष नै, कर्म कृता योनि मांही ।।
मिथुनवत्तिए नाम संयोग उपजै, बिहु नो रुधिर शुक्र रहै त्यांही।
२६. मनुष्ययोनौ पुनरुत्पन्ना अपि बह्वो न निष्पद्यन्त इति ।
(वृ०-प० १३४) २७. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव हव्वमागच्छंति ?
२६. तिहां जघन्य एक तथा बे, अथवा त्रिण जीव ऊपजै आय।
उत्कृष्टा पृथक्-लक्ष जीवा, शीघ्र सुतपणे उपजाय ।। वा०-स्त्री पुरुष नै कम्मकडा नाम कर्म-निवत्तित योनि नै विष, अथवा कर्ममदनोद्दीपक व्यापार कीधो जेहनै विष तिका कर्म-कृता योनि मिथुन नी प्रवृत्ति छै जेहनै विय ते मिथुन-वृत्ति कहिई अथवा मिथुन प्रत्यय-हेतु छै जेहनै विष ते मैथुनप्रत्ययिक संजोए---संजोग, संपर्क ते स्त्री पुरुष बिहु थकी स्नेह----शुक्र, रुधिर लक्षण तेह प्रत, तिणे एकत्र तिहां संबंध थया नै विषै जघन्य थकी एक अथवा दोय अथवा तीन जीव पुत्रपणे गर्भ मांहै उपज। उत्कृष्ट थी नव सत-सहस्र
पृथक् संज्ञा छ । ते नव लाख जीव पुत्रपणे उपजै इत्यर्थः । ३०. ते इण अर्थे करिने हे गोतम, जाव शीघ्र ही आय ।
पुत्रपणे नव लक्ष ऊपज, ए सन्नी तणो अपेक्षाय ।। वा....इहां कोई पूछ भरत नै सवा कोड पुत्र थया ते किम? उत्तर-रुधिर, शुक्र बिहं मिल्या तेहनै विष उत्कृष्ट नव लक्ष जीव गर्भे ऊपज ते एक माता नी अपेक्षाय
नव लक्ष संभवै, वली बहुश्रुत कहै ते सत्य । *लय-आधाकर्मी थानक में साधु रहै
२८. गोयमा ! इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणीए
मेहुणवत्तिए नामं संजोए समुप्पज्जइ । ते दुहओ सिणेहं
चिणंति, चिणित्ता २६. तत्थ णं जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति। वा---'कम्मकडाए जोणीए' ति नामकर्मनिवतितायां योनौ, अथवा कर्म-मदनोद्दीपको व्यापारस्तत् कृतं यस्यां सा कर्मकृताऽतस्तस्यां मैथुनस्य वृत्तिः-प्रवृत्तिर्यस्मिन्नसौ मैथुनवृत्तिको मैथुन वा प्रत्ययो-हेतुर्यस्मिन्नसौ मैथुनप्रत्ययिक:..."संयोगः' संपर्कः, 'ते' इति स्त्रीपुरुषी 'दुहओ' ति उभयतः 'स्नेह' रेतः शोणितलक्षणं
'संचिनुतः' सम्बन्धयतः इति। (वृ०-प० १३४) ३०. से तेणठेणं जाव हब्वमागच्छति। (श० २।८८)
२५४ भगवती-जोड़
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