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________________ ५. क्रोधादि-दोष अभाव ते, कांक्ष-दोष क्षय करिवा अर्थ । प्रश्न हिब गोयम करै, कर्म काटण ते संत समर्थ ।। ६. प्रभु ! राग-द्वेष अन्य मत आग्रह, ए कांक्ष-प्रदोष मुनि क्षय कीध । ते अंत करै कर्मा तणो? तथा ह चरम-शरीरी प्रसीध ।। ७. पहिला बह मोह विष रही, पछै आथव रूंधी करै काल । सीझै जाव दुख अंत करै? जिन कहै-हंता इमहिज न्हाल ।। ८. स्वदर्शण नी कही वारता, हिव अन्य दर्शण - प्रश्न पिछाण । ___ अन्यतीर्थी ! प्रभु इम कहै, भाषे पन्नव परूपै जाण ॥ ६. आइक्खंति सामान्य थी, भासंति पाठ विशेष थी जोय। पन्नवेति ते उपपत्ति करी, परूपै भेद कथन थी होय ।। ५. कोधादिदोषाभावाविनाभूतकांक्षाप्रदोषक्षयकार्याभिधानार्थम् । (वृ०-०६७) ६. से नूर्ण भते ! खापदोसे खीणे समणे निग्गंथे अतकरे भवति, अंतिमसरीरिए वा? कांक्षा-दर्शनान्तरग्रहो गृद्धिर्वा सैव प्रकृष्टो दोषः कांक्षाप्रदोषः। (व०प०६७) ७. बहुमोहे वि य णं पुब्धि विहरित्ता अह पच्छा संवुडे कालं करेइ ततो पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति ? हता गोयमा ! कंखापदोसे खीणे जाव अंतं करेति । (श० ११४१६) ८. अण्ण उत्थिया ण भते ! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण वेति, एवं परूवेति६. आख्यान्ति सामान्यतः भासंति' ति विशेषतः 'पण्णवेति' ति उपपत्तिभिः 'परूवति' ति भेदकथनतः । (वृ०-प०६८) १०. एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेति, तं जहा-इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च । ११. ज समयं इहभविवाउयं पकरेति, तं समयं परभवियाउयं पकरेति । जं समयं परभविया उयं पकरेति, तं समयं इहभवियाउयं पकरेति । १२. इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेति । १०. इम इक जीव इक समय में, आउखा दोय भणी पकरंत। इह भव ना आयु प्रतं, अथवा परभव नों वांधत ।। ११. जे समय इह भव - आयु करै, ते समय परभव नो आयु पकरंत । जे समय परभव नों आयु करै, ते समय इहभव नो आयु बांधत ।। १२. इहभवायु करिवा तणा, अध्यवसाय करीने सोय। परभव नों जे आउखो, पकरै बांधै छै अवलोय ॥ १३. परभवायु करिवा तणा, अध्यवसाय करीने सोय। इहभव नों जे आउखो, पकरै बांध छै ते जोय ।। १४. ते किम कहियै ए प्रभु ! जिन कहै-ए अन्यतीर्थी नी वाय। इहभव बै आयु करै, ते मिथ्या-झूठ कहीजै ताय ।। १५. हं पिण इम कहूं छू इसो, एक जीव इक समय मझार। आउखो एक बांधै अछ, इहभव वा परभव न विचार ।। १३. पर भवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेति । (श० ११४२०) १४. से कहमेयं भंते ! एवं? गोयमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एबमाइक्खंति जाब एवं खलु एगे जीये एगेणं समएणं दो आउयाई पकरेति, तं जहा-इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु।। १५. अहं पुण गोयमा ! एबमाइक्खामि, जाव परूवेमि---एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एग आउयं पकरेति, तं जहा—-इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा । १६. जं समयं इहभवियाउयं पकरेति, णोतं समयं परभवियाउयं पकरेति । जं समयं परभवियाउयं पकरेति, गोतं समयं इहभवियाउयं पकरेति । १७. इहभवियाउयस्स पकरणताए णो परभवियाउयं पकरेति। परभवियाउयस्स पकरणताए णो इहभवियाउयं पकरेति। १६. जे समय इहभव - आयु करे, ते समय परभव नों आयु करै नाय । जे समय परभव न आयु करे, ते समय इहभव नुं आयु न कराय ।। १७. इहभव - आयु करिव करी, परभव न आयू करै नांय। परभवायु करिव करी, इहभव नुं आयू न कराय॥ १७६ भगवती-जोड़ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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