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वीर्य अंतराय कर्म जिणे, न बांध्यो न फो कोय । जाव उदय आयो नहीं, उपशांत तसुं जय होय ।।
वीर्य अंतराय बांधियो, जाव उदय आया हुवै हार। तिण अर्थे करिने कह यो, पूरव वृत्त प्रकार ॥
५. गोयमा ! जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माइं नो बधाई नो पुट्ठाई जाव नो अभिसमण्णागयाइं नो उदिण्णाई
उवसंताई भवंति से णं परायिणति । ६. जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई बद्धाइं जाव उदिषणाई
णो उवसंताई भवंति से णं पुरिसे परायिज्जति, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चति-सवीरिए परायिणति, अवीरिए परायिज्जति ।
(श० ११३७४) ७. जीवा णं भंते ! कि सीरिया? अवोरिया ?
वीर्य ना अधिकार थी, वीर्य प्रश्न पूछाय । हे प्रभु ! जीव सवीरिया, अवीरिया कहिवाय? जिन कहै-सांभल गोयमा ! वीर्य-सहित पिण जीव । वीर्य-रहित पिण जीव छै, किण अर्थे ए कहीव ?
जिन कहै-जीव द्विविध कह्या, संसारी नै असंसार । असंसारी अवी रिया, संसारी दोय प्रकार ।।
सेलेशी गुणस्थान चवदमें, असे लेशी गुण तेर। सेलेशी लब्धि-सवीरिया, करण-अवोरिया हेर ।
८. गोयमा ! सवीरिया वि, अवीरिया वि । (श० ११३७५) से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जीवा सवीरिया वि?
अवोरिया वि? ६. गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—संसारसमावगणगा य, असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा । सिद्धा णं अवीरिया। तत्थ णं
जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णता, तं जहा१०. सेलेसिपडिवण्णगा य, असेलेसिपडिवण्णगा य । तत्थ णं
जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं लद्धिवीरिएणं सवीरिया,
करणवीरिएणं अवीरिया। ११. तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णगा ते णं लद्धिवीरिएणं
सवीरिया, करणवीरिएणं सवीरिया वि, अवीरिया वि। १२. 'सवीर्याः' उत्थानादिक्रियावन्तः अवीर्यास्तूत्थानादि
क्रियाविकलाः, ते चापर्याप्त्यादिकालेऽवगन्तव्याः।
असेलेशी लब्धि-वीर्य थो सवीरिया कहिवाय । करण-वीर्य करि उभय छ, सवीर्य अवीर्य ताय ।। पर्याप्ता करण-वीर्य थी, सवीरिया कहिवाय । अपर्याप्ता करण-वीर्य थी, अवीरिया ए न्याय ।।
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तिण अर्थे करि जीवड़ा, वीर्य सहीत रहीत । नेरइया प्रण ! स्यं सवीरिया, के अवीरिया संगीत ?
१५.
जिन कहै-लब्धि वीर्य करी, नरक सवीरिया होय । करण-वीर्य करि सवीरिया, अवीरिया पिण जोय ।। किण अर्थे तब जिन कहै, जे ने रइया नै छै उठाण । कर्म बल वीर्यादिक अछ, पर्याप्ता पहिछाण ।। ते नेरइया लब्धि वीर्य करी, सबीरिया अवलोय । करण-वीर्य करि पिण तिके, सवीरिया छ सोय ।।
१३. से तेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जीवा दुविहा पण्त्तणा, तं जहा-सवीरिया वि, अवीरिया वि।
(श०११३७६) नेर इया णं भंते ! कि सवीरिया ? अवीरिया ? १४. गोयमा! नेरइया लद्धिवोरिएणं सवीरिया, करण
वीरिएणं सवीरिया य, अवीरिया य। (श० १।३७७) १५, १६. से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइनेरइया लद्धिवी
रिएणं सवोरिया ? करणवीरिएणं सवीरिया य? अवीरिया य? गोयमा ! जेसि णं नेरइयाणं अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कारपरक्कमे, ते णं नेरइया लद्धिवीरिएण वि सवीरिया, करणवीरिएण वि सवी
रिया। १७. जेसि णं ने रइयाणं णत्थि उठाणे जाव परक्कमे, ते णं
नेर इया लद्धिवीरिएणं सवीरिया, करणवीरिएणं अवीरिया।
(श० १।३७८)
जे नरक रै उठाणादिक नहीं, लब्धि वीर्य करि तेह। सवीरिया कहिय अछ, करण अवीरिया जेह ।।
श०१, उ०८, ढा०२५ १७१
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