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५६. प्र. ! पुरुष भदंत ! पुरुष प्रतै, शक्ति करीनै हणंत ।
अथवा ते नर निज हाथ सूं, खड्गे शिर छेदंत ।। ५७. क्रिया किती ते पुरुष नै ? जिन कहै-उत्तर तंत।
शक्ति अथवा निज कर हणे, ते क्रिया पंच फर्शत ।।
५६, ५७. पुरिसे णं भंते ! पुरिसं सत्तीए समभिधंसेज्जा, सय
पाणिणा वा से असिणा सीसं छिदेज्जा, ततो णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे तं पुरिसं सत्तीए समभिधसेति, सयपाणिणा वा से असिणा सीसं छिदति--ताद
च णं से पुरिसे...पंचहि किरियाहिं पुढें । ५८. आसण्णवधएण य अणवकखणवत्तीए णं पुरिसवेरेणं पुछे।
(श० ११३७२)
५८. प्र. ! आसन्न वध है जे थकी, बलि अनवकांक्षणवृत्त।
एहवा पुरुष वेरे करी, फरसै ते अपवित्त ।।
५६.
सोरठा अनवकांक्षण - वृत्त, अपेक्षा रहित ज वर्तवू । पर-प्राण-वांछा नहिं चित्त, अथवा निज दुख परिहार नी।।
५६. अनवकांक्षणा-परप्राणनिरपेक्षा स्वगतापायपरिहार
निरपेक्षा वा वृत्तिः-वर्तनं यत्रैव वैरे तत्तथा तेनानवकांक्षण वृत्तिकेनेति ।
(वृ०-प०६४)
६०. *इम पुरुष वैर फयो तिको, तिणहिज भव मझार ।
अथवा भुगतै परभवै, कर्म हेतु दुख भार॥ शतक प्रथम देश अष्टमो, एह चोबीसमी ढाल। भिक्खु भारीमाल ऋषराय थी, 'जय-जश' संपति विशाल ।। धन-धन गोयम गणहरू, ज्यां पूछ्या प्रश्न उदार । धन-धन प्रभु उत्तर आपिया, धन-धन शासन सार ।।
६२.
ढाल : २५
दूहा
क्रिया ना अधिकार थी, हिव तेहिज विस्तार । युद्ध रूप क्रिया तणो, गोयम प्रश्न उदार ॥
+वीर नै गोयम वीनवै (ध्रुपदं) बे नर सरिखा कुशलपणे, प्रमाण आदिपणे दीस । प्रभुजी। सरिखी त्वचा, वय ना धणी, भंड उपगरण सरीस ।। प्रभुजी।।
संग्राम आपस में करै, एक हार जीते एक। हे भदंत ! किण कारण ? जिन कहै सुण सुविशेख॥ जीत सवीर्य पराक्रमी, अवीर्यवंत हारंत ।
गोयम कहै-किण कारण? तब भाखै भगवंत ।। *लय--भाभीजी हो डूंगरिया हरिया हुवा लय-धन्न सीमंधर स्वामजी !
२.दो भंते ! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोबगरणा 'सरिसय' त्ति सदृशकौ कौशलप्रमाणादिना।
(वृ०-प०६४) ३, ४. अण्णमण्णेणं सद्धि संगाम संगामेंति तत्थ णं एगे
पुरिसे पराइणति, एगो पुरिसे परायिज्जति । से कहमेयं भंते। एवं? गोयमा ! सवीरिए परायिण ति, अवीरिए परायिज्जति।
(श० ११३७३) से केणट्टेणं जाव परायिज्जति ?
१७० भगवती-जोड़
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