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________________ , प्रभु ! ते किरिया स्वं फरथी के अणफय होय ? जावत् निर्व्यापात ते जी. पट दिशि फर्शी जोय ।। व्याघात- अलोक नैडो तिहां जी, ते आश्री अवधार । कदा तीन कदाचिदिने जो पंच दिशि किवार ॥ तिका किया प्रभु ! स्यू कीधी के अणकोधी धाय ? जिन कहै - क्रिया कीधी हुवै छे, अणकीधी हुवै नांय || तिका किया प्रभु आप से कीधी के पर कीधी हो ? के आत्म पर बिनीं कोधी क्रिया लागे ए जोय ? ॥ जिन कहे-आपरी कीधी लागे, पर नीं कोधी न लागंत ? बलि विहं नी कोषी नहि साग, फुन गोयम पूच्छंत ॥ तिका क्रिया प्रभु ! स्यूं आनुपूर्वी, अनुक्रम कीधी लागंत ? के अनानुपूर्वी कधी लागे छे, अनुक्रम विष उपजंत ? ।। जिन कहै आनुपूर्वी ते अनुक्रम कीधी क्रिया लागत । अनुक्रम विण अनानुपूर्वी कोधी क्रिया नवि हंत ॥ गये काले जे क्रिया कीधी, संप्रति काल करत काल अनागत किया करिस्य ते सह अनुक्रम त ।। ३०. हे भगवंत ! नैरइयां नै प्राणातिपात नीं जोय । किरियाकर्म हवं सही जी ? जिन कहै हंता सोय ।। ३१. प्रभु ते किरिया स्वं श्यों थी, के अणफश्य होय ? जावत् निर्व्याघात तें जी, षट दिशि फर्शी जोय || २६. -- २२. २३. २४. २५. २६. २७. २८. ३२. ३३. ३४ ३५. ३६. तिका क्रिया प्रभु ! स्यूं जाव आनुपूर्वी कीधी जिम रातिम एकेंद्रो वरजी, भणवूं विमाणिक अंत एकेंद्री ने जीव तणी पर कहियूँ सहु विरतंत ॥ 1 प्राणातिपातको जिह विध, तिम नृपावाद पिछाण छै अदत्त मिथुन परिग्रह जावत् मिच्छादंसण सत्य जाण ।। इम ए अठार पाव स्थानक, चउवीस दंडके जान । सेवं भंते कही वीर वंदी गोयम विचरै धरता ध्यान || कीधी के अणकीधी चाय ? हुवै, तीनूं काल है मांय || १४४ भगवती जोड - सोला ना अंक नो देश कह्यो ए, सरस सतरमी ढाल । भिक्खु भारीमाल ऋषराय प्रसादे 'जय जय' संपति माल ॥ Jain Education International २२, २३. सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जइ ? अपुट्ठा कज्जइ ? गोमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव निव्यापार छति वापायं पहुच सिया तिदिसि सिया चउदिसिं, सिया पंचदिसि । ( श० १।२७७ ) २४. सा भंते! कि कडा कज्जइ ? अकडा कज्जइ ? गोयमा ! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ । (२० १२७८) २५. सा भंते! कि अत्तकडा कज्जइ ? परकडा कज्जइ ? तदुभयकडा कज्जइ ? २६. गोयमा ! अत्तकडा कज्जइ, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभयकडा कज्जइ । (०२१४२७२) २७-२६. सा भंते कि आणुपुब्वि कडा कज्जइ ? अणाणुपुव्वि कडा कज्जइ ? गोयमा ! आपुवि कहा जा कडा कज्जइ । जाय कडा, जा य कज्जइ, जा य कज्जिस्सइ, सव्वा सा आणुपुव्वि कडा, नो अणाणुपुवि कडा ति' वत्तब्वं सिया । (श० ११२८० ) ३०. अस्थि णं भंते ! नेरइयाणं पाणाइवार्याकरिया कज्जइ ? हंता अत्थि । ( ०१४२६१) ३१. सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ ? अपुट्ठा कज्जइ ? गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ जाव नियमा छद्दिसि कज्जइ । ( ० १४२०२) ३२. सा भंते ! किं कडा कज्जइ ? अकडा कज्जइ ? गोयमा ! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ । ( श० ११२८३) तं चैव जाव नो अणाणुपुव्वि कडा ति वत्तव्वं सिया । ( श० ११२८४ ) ३३. जहा नेरइया तहा एगिदियवज्जा भाणियव्वा जाव बेमाणिया । एगिदिया जहा जीवा भाणियव्वा । ( श० ११२८५ ) तहा ३४, ३५. जहा पाणाइवाए तहा मुसावाए, तहा अदिण्णादाणे मेहुणे, परिस्महे, कोहे जाय मिच्छादंसणसत्लेएवं एए अट्ठारस चडवीसं दंडगा भाणियव्वा । (रा० १२६६) ३५. सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर तजा विहति । ( ० १२६७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003617
Book TitleBhagavati Jod 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1981
Total Pages474
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size25 MB
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