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४६. ए प्रभु ! रत्नप्रभाई तास, तीस लाख छै नरकावास।
इक - इक नरकावासे जान, समयाधिक जघन्य स्थिति वर्तमान ।। ५०. स्यू कोहोवउत्ता माणोवउत्ता कहाय, मायोव उत्ता लोभोब उत्ता ताय?
हिव अस्सी भंगा भाखै जिन भाण, इक संजोगिया आठ पिछाण ।।
४६, ५०. इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निर
यावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहणहितीए वट्टमाणा नेरइया कि कोहोवउत्ता? माणोव उत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता?
५१-५८. गोयमा ! १. कोहोवउत्ते य, २. माणोवउत्ते य,
३. मायोव उत्ते य, ४. लोभोबउत्ते य, ५. कोहोव उत्ता य, ६. माणोव उना य, ७. मायोवउत्ता य, ८. लोभोवउत्ता
५२.
य।
५४.
इक संजोगिया आठ भांगा कोहोवउत्ते इक वच जान, जीव एक क्रोधे वर्तमान । मान माया लोभे न वर्तत, पहिलो भांगो एह कहत ।। माणोवउत्ते इक बच जान, जीव एक माने वर्तमान । क्रोध माया लोभे न वर्तत, बीजो भांगो एह कहत ।। मायोवउत्ते इक वच जान, जीव एक माया वर्तमान । क्रोध मान लोभे न वर्तत, तीजो भांगो एह कहत ।। लोभोवउत्ते इक वच जान, जीव एक लोभे वर्तमान । क्रोध मान माया न वर्तत, चोथो भांगो एह कहत ।। कोहोवउत्ता बहु वच जान, जीव घणां क्रोधे वर्तमान। मान माया लोभे न वर्तत, पंचमो भांगो एह कहंत ।। माणोव उत्ता बहु वच जान, जीव घणां माने वर्तमान । क्रोध माया लोभे न वर्तत, छठो भांगो एह कहत ।। मायोवउत्ता बह बच जान, जीव घणां माया वर्तमान । क्रोध मान लोभे न वर्तत, सप्तम भांगो एह कहंत ।। लोभोव उत्ता बहु वच जान, जीव घणा लोभे वर्तमान । क्रोध मान माया न वर्तत, अष्टम भांगो एह कहंत ।।
५७.
५८.
द्विक संजोगिया २४ भांगा ५६. कोहोवउत्ते माणोव उत्ते' एक, कोहोवउत्ते माणोवउत्ता संपेख।
कोहोवउत्तामाणोवउत्ते" धार, कोहोव उत्तामाणोव उत्ता" ए च्यार ॥
५६. ६. अहवा कोहोवउत्ते य, माणोवउत्ते य। १०. अहवा
कोहोब उत्ते य, माणोव उत्ता य। एवं असीतिभंगा नेयव्वा ।
६०. कोहोब उत्ते भायोव उत्ते" पंच, कोहोव उत्ते मायोव उत्ता विरंच।
कोहोव उत्ता मायोव उत्ते" सप्तम, कोहोब उत्ता मायोवउत्ता" अष्टम ।। ६१. कोहोवउत्ते लोभोवउत्ते" नवम, कोहोव उत्त लोभोव उत्ता दशम ।
कोहोव उत्ता लोभोवउत्ते" ग्यार, कोहोवउत्ता लोभोवउत्ता" बार ।। ६२. माणोव उत्ते मायोवउत्ते" तेर, माणोवउत्ते मायोवउत्ता हेर।
माणोवउत्ता मायोव उत्ते" सुवोल, माणोव उत्ता मायोवउत्ता" सोल ।।
१. अंगसुत्ताणि मूल पाठ में अस्सी भंगों का संकेत है, पर
उनका पृथक ग्रहण नहीं है। जयाचार्य ने जोड़ में प्रत्येक भंग का स्वतंत्र निरूपण किया है। यह टीका के आधार पर किया गया है। अंगसुत्ताणि १।२१८ के पाद टिप्पण में सब भंग उल्लिखित हैं।
१३० भगवती-जोड
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