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________________ नंदी गाथा ७ १३. (गाथा ७) प्रस्तुत गाथा में अवधिज्ञान का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से विचार किया गया है। जैसे-जैसे अवधिज्ञान के विषयभूत काल की सीमा बढ़ती है वैसे-वैसे उसके विषयभूत क्षेत्र, द्रव्य और पर्याय के बोध की भी सीमा बढ़ती है। अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्र की वृद्धि के साथ द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होती है, उसके साथ काल की वृद्धि का नियम नहीं है, वह भाज्य है-कदाचित् होती है कदाचित् नहीं । हरिभद्र ने इसका हेतु बतलाया है-क्षेत्र सूक्ष्म होता है काल उससे स्थूल होता है । वीरसेन ने काल की वृद्धि के विकल्प को स्वाभाविक बतलाया है। काल की अपेक्षा क्षेत्र सूक्ष्म होता है यह स्वाभाविक है, इसलिए दोनों वक्तव्यों में कोई तात्त्विक अन्तर नहीं है। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि का नियम द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने पर क्षेत्र और काल की वृद्धि भाज्य है-कदाचित् होती है कदाचित् नहीं । इसका हेतु हैद्रव्य और पर्याय की अपेक्षा क्षेत्र और काल स्थूल है । द्रव्य की वृद्धि होने पर पर्याय की वृद्धि अवश्य होती है । पर्याय की वृद्धि होने पर द्रव्य की वृद्धि भाज्य है-कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं । क्योंकि पर्याय द्रव्य से सूक्ष्म है । वीरसेन ने द्रव्यवृद्धि के साथ पर्यायवृद्धि का नियम बतलाया है। जिनभद्रगणी ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की सूक्ष्मता का गणित की भाषा में प्रतिपादन किया है। काल सूक्ष्म है । क्षेत्र काल से असंख्येय गुण सूक्ष्म है । द्रव्य क्षेत्र से अनन्त गुण सूक्ष्म है । पर्याय द्रव्य से असंख्येय गुण अथवा संख्येय गुण सूक्ष्म है।' गाथा ८ १४. (गाथा ८) काल सूक्ष्म होता है । इसका हेतु यह है कि कमल के सौ पत्तों का भेदन करने में प्रतिपत्र के भेदन में असंख्येय समय लगते हैं । इस दृष्टान्त के द्वारा हरिभद्र ने काल की सूक्ष्मता का निरूपण किया है । काल की अपेक्षा क्षेत्र सूक्ष्मतर है। एक अंगुल की श्रेणी मात्र क्षेत्र में जो प्रदेश का परिमाण है उसके प्रति प्रदेश में समय गणना की दृष्टि से असंख्येय अवसर्पिणी हो जाती है। एक अंगुल की श्रेणी मात्र क्षेत्र के प्रदेशों का परिमाण असंख्येय अवसर्पिणी के समयों के परिमाण जितना है। मलयगिरि ने यहां अंगुल के प्रसंग में प्रमाणांगुल का उल्लेख किया है । मतान्तर के अनुसार उत्सेधांगुल का भी उल्लेख है।' अकलंक ने देशावधि, परमावधि और सर्वावधि इन तीनों की वृद्धि और हानि का विचार द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के संदर्भ में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत आगम की गाथाओं में संकेत मात्र है । विवरण की दृष्टि से तत्त्वार्थवार्तिक अवलोकनीय है।' १. हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २५: क्षेत्रस्य सूक्ष्मत्वात्, कालस्य च स्थूलत्वात् । २. षट्खण्डागम, पुस्तक १३, पृ. ३०९ : साभावियादो। ३. हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८ : द्रव्यवृद्धौ तु पर्याया वर्द्धन्त एव, पर्यायवृद्धौ च द्रव्यं भाज्यम्, द्रव्यात् पर्यायाणां सूक्ष्म त्वाद् । ४. षट्खण्डागम, पुस्तक १३, पृ. ३०९ : दव्वबुड्ढीए पुण णियमा पज्जयवुड्ढी। ५. विशेषावश्यक भाष्य, गा. ६२३ : कालो खेत्तं दव्वं भावो य जहुत्तरं सुहुमभेया। थोवा-संखा-णंता-संखा य जमोहिविसयम्मि ॥ ६. (क) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८ : सूक्ष्मश्च-श्लक्ष्णश्च भवति कालः, यस्मादुत्पलपत्रशतभेदे समयाः प्रतिपत्रमसंख्येयाः प्रतिपादिताः। तथापि ततः कालात् सूक्ष्मतरं भवति क्षेत्रम् । (ख) मलयगिरीया वृत्ति, प. ९५ ७. हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८ : अङगुलश्रेणिमात्रक्षेत्रप्रदेशा ग्रमसमंङ्खयावसर्पिणीसमयराशिपरिमाणमिति । ८. मलयगिरीया वृत्ति, प. ९३ ९. तत्त्वार्थवार्तिक, सू. १।२२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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