________________
नंदी
गाथा ३३,३५ २२. (गाथा ३३,३५) आर्य स्कन्द्रिल और आर्य नागार्जुन
ये दोनों अनुयोग प्रवर्तक हैं । वी. नि. की ९ वी शताब्दी में १२ वर्ष का भयंकर दुष्काल हुआ। उस दुष्काल में मुनियों की शक्ति भोजन जुटाने में ही खप जाती। फलतः ग्रहण, गुणन और अनुप्रेक्षा के अभाव में श्रुत विनष्ट हो गया। बहुत सारे अनुयोगधर मुनि दिवंगत हो गए। दुष्काल की समाप्ति होने पर मथुरा में एक बड़ा साधु सम्मेलन हुआ। उसका नेतृत्व आर्य स्कन्दिल ने किया । उस समय जैन शासन और शासन के आधारभूत आगम साहित्य के बारे में चिन्तन किया गया। उसका निष्कर्ष यह रहा कि जिस मुनि को जो कालिक श्रुत कण्ठस्थ था उसका संकलन किया जाय । चूर्णिकार ने मतान्तर का उल्लेख किया है । उसके अनुसार श्रुत विनष्ट नहीं हुआ था। जो प्रधान अनुयोगधर दिवंगत हुए थे केवल आर्य स्कन्दिल ही बच पाए थे । उन्होंने मथुरा में साधुसंघ को एकत्रित कर पुनः अनुयोग का प्रवर्तन किया। वह प्रवर्तन मथ रा में किया गया । इसलिए वह माथुरी वाचना के नाम से प्रसिद्ध है।
वी. नि. की ९ वीं शताब्दी (ईसा की ४ थी शताब्दी) में आर्य स्कन्दिल मथुरा में आगम बाचना का कार्य कर रहे थे उसी समय नागार्जन वलभी में आगम वाचना का कार्य कर रहे थे। नागार्जुन की वाचना बलभी वाचना के रूप में प्रसिद्ध है। देवधिगणी ने माथरी वाचना को प्रधान वाचना के रूप में स्वीकार किया और बल भी वाचना को वाचनान्तर अथवा पाठान्तर के रूप में स्वीकृति दी।
गाथा ३७, ३८, ३९ २३. (गाथा ३७,३८,३६)
भूतदिन्न
नंदी के मूल पाठ में इनके कुल और वंश का नाइल के रूप में परिचय दिया हुआ है। ये वाचक नागार्जुन के शिष्य हैं। अनुयोगधरों में ये प्रधान थे। नाइल शाखा का उल्लेख पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि में मिलता है। इस शाखा का विकास आर्य वज्रश्रेणिक से हुआ था।
देवधिगणी ने भूतदिन्न के बारे में तीन गाथाएं लिखकर उनके उत्कर्ष का प्रदर्शन किया है किन्तु इतिहास की दृष्टि से उनके बारे में कोई विशिष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है।
गाथा ४० २४. (गाथा ४०) लौहित्य
लौहित्य के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं है। सूत्रकार ने उनके तीन विशेषण दिए हैं। उनसे ज्ञात होता है कि वे पदार्थ के नित्य व अनित्य अवस्था के विशेषज्ञ, सूत्र और अर्थ के धारक तथा द्रव्य के पारमार्थिक स्वरूप के व्याख्याता थे।
गाथा ४१,४२ २५. (गाथा ४१,४२)
दूष्यगणी का भी जीवनवृत्त उपलब्ध नहीं है। वे देवधिगणी के गुरु थे। सूत्रगत गाथाओं से ज्ञात होता है कि वे प्रसिद्ध प्रावचनिक, ग्यारह अङ्गों तथा बारहवें अङ्ग के कुछ अंशों के धारक थे। उनके पास सैकड़ों प्रातिच्छक-विभिन्न गणों के साधु श्रुताध्ययन के लिए आते थे। वे सूत्र के अर्थ और महार्थ-नाना नयों से नाना पर्यायों की व्याख्या के विशेषज्ञ थे । उनका वाग व्यापार बहुत मधुर था। उनके पास कोई क्रुद्ध व्यक्ति भी आता तो उनकी वाणी से शांत हो जाता।
गाथा ४३ २६. (गाथा ४३)
चूर्णिकार के अनुसार सूत्रकार ने २३ से ४२ गाथाओं में नामोल्लेखपूर्वक युगप्रधान स्थविरों को नमस्कार किया है। १. नंदी चूणि, पृ. ९
२. नवसुत्ताणि, पज्जोसवणाकप्पो, सू. २१८ : थेरेहितो णं
अज्जवइरसेणिएहितो, एत्थ णं अज्जनाइली साहा निग्गया।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org