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________________ प्र० १, गा० २८-३५, टि० १८-२२ १५० वर्ष के लगभग अन्तर बैठता है । अतः आर्य मंगु और नागहस्ति समकालीन व्यक्ति नहीं हो सकते । " शब्द विमर्श है।' भणगं-कालिक श्रुत और पूर्वश्रुत का अध्येता' करगं - सूत्र के अर्थ का ध्यान करने वाला । चूर्णि और टीका में इसका अर्थ भिन्न रूप में मिलता है। उसमें करक का अर्थ चरण-करण क्रिया करने वाला किया गया झरगं - ज्ञान के प्रवाह को आगे बढ़ाने वाला। चूर्णि के अनुसार इसका अर्थ है-सूत्र के अर्थ का मन से चिन्तन करने वाला । टीकाद्वय में इसका अर्थ धर्मध्यान का प्रयोग करने वाला किया गया है।" प्रभावक - चूर्णि में इसके दो अर्थ किए गए हैं १. परप्रवादियों को जीतकर जिन प्रवचन की प्रभावना करने वाला । २. ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि गुणों की प्रभावना करने वाला । वृत्तिद्वय में केवल दूसरा अर्थ उपलब्ध है । १६. ( गाथा ३१ ) रेवती नक्षत्र २०. ( गाथा ३२ ) ब्रह्मदीपक शाखा और आस कल्पसूत्र की स्थविरावलि में नक्षत्र नाम का उल्लेख मिलता है। दिगम्बर साहित्य में भी नक्षत्र का उल्लेख उपलब्ध है ।" यह नक्षत्र रेवती नक्षत्र का ही संक्षिप्त नाम जान पड़ता है । तपागच्छ पट्टावलि में रेवतीमित्र नाम मिलता है। दिगम्बर साहित्य के अनुसार नक्षत्र ग्यारह अंग के धारक और तपागच्छ पट्टावलि के अनुसार रेवतीमित्र आर्य सुहस्ति और वज्रस्वामी के अन्तराल में हुए हैं। इसलिए उन्हें ग्यारह अंगधारी की कोटि में नहीं रखा जा सकता । गाथा ३२ २१. ( गाथा ३४ ) आर्य हिमवंत कृष्णा और वेणा नदी के संगम स्थल पर ब्रह्मद्वीप नाम का द्वीप था। उसमें ५०० तापस रहते थे । वे वज्रस्वामी के मामा आर्यममित के पास दीक्षित हुए। वे ब्रह्मद्वीप में रहते थे इसलिए उनकी प्रसिद्धि ब्रह्मद्वीपक के रूप में हुई ।" पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि में भी इसका उल्लेख मिलता है । गाथा ३१ आर्य हिमवंत के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । १. कषायपाहुड़, पृ. ४५ २. नंदी चूर्ण कालियवत्त्वं भवतीति भएको 1 ३. वही, पृ० ८ : चरण-करण क्रियां करोतीति कारकः । ४. वही, पृ. ८ सुत्तत्थे य मणसा झायंतो ज्झरको । ५. (क) हारिभद्रया वृत्ति, पृ० १२ : धर्मध्यानं ध्यायतीति । (ख) मलयगिरिया वृत्ति प. ५० ६. नंदी चूणि, पृ० ८ : परप्पवादिजयेण पवयणप्पभावको । नाण- दंसण चरणगुणाणं च पभावको आधारो य । ७. पट्टावली समुच्चय, कल्पसूत्र की स्थविरावलि, ८. कषायपाहुड़, प्रस्तावना पृ० ४९ पृ० ९ २५ Jain Education International गाथा ३४ ९. आगमन अवलोकन १०५९ १०. (क) निशीथसूत्रम्, भाग ३, पृ० ४२५; निशीथ भाष्य चूर्णि ४४७० से ४४७२ : ते य पंचतावससया समियायरियस समीवे पव्वतिता । ततो य बंभदीविया साहा निम्गया । (ख) विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-जैन साहित्य मां गुजरात, पृ. १८४, १८५ " ११. नवा परोसनाको ० २१५ बेरेहितो गं अज्ज समिएहितो, एत्थ णं बंभद्दीविया साहा निग्गया । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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