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________________ २२२ नंदी उन्हें सेनापति के डेरे के पीछे ले गया और गड़ा हुआ धन दिखा दिया। राजा उसकी बात से विश्वस्त होकर रात्रि में ही घोड़े पर सवार होकर अपने राज्य में पहुंच गया । यह अभयकुमार की पारिणामिकी बुद्धि थी। २. श्रेष्ठी दृष्टांत' एक नगर में काष्ठ नामक श्रेष्ठी रहता था। उसकी पत्नी का नाम था वज्रा। देवशर्मा ब्राह्मण प्रतिदिन उसके घर आता था। एक बार श्रेष्ठी दिग्यात्रा के लिए गया । श्रेष्ठी की पत्नी का देवशर्मा के साथ अनुराग हो गया। श्रेष्ठी के घर तीन पक्षी थेतोता, मैना और मुर्गा। उन तीनों को प्रशिक्षित कर रात्रि के समय जब ब्राह्मण वज्रा के पास आया, तब मैना ने तोते से कहापिता से कौन नहीं डरता ! तोते ने उसे रोकते हुए कहा-ऐसा मत कहो, जो माता को प्रिय है वह हमारा पिता है। मैना ने तोते की बात पर ध्यान नहीं दिया। जब भी ब्राह्मण वज्रा के पास आता, वह उस पर आक्रोश करती । उसके आक्रोशपूर्ण व्यवहार से क्षुब्ध होकर वज्रा ने उसे मार दिया, किन्तु तोते को नहीं मारा। एक दिन कोई नैमित्तिक वजा के घर आया। मुर्गे को देखकर उसने कहा-जो इस मुर्गे के सिर को खाएगा वह राजा बनेगा। यह बात उससे ब्राह्मण ने सुन ली। उसने वज्रा से कहा-इस मुर्गे को मारो, मुझे इसका मांस खाना है । वज्रा बोली-यह मुर्गा तो मेरे लिए पुत्र के सदृश है, अत: इसे मत मारो। ब्राह्मण के बहुत आग्रह करने पर वज्रा ने उसे मार डाला । ब्राह्मण स्नान करने चला गया। इसी बीच वजा का पुत्र पाठशाला से आ गया। वह भूख से रोने लगा। वज्रा ने उस मुर्गे के मांस के शीर्ष भाग को पुत्र को परोस दिया। जब ब्राह्मण स्नान आदि से निवृत्त हो भोजन करने बैठा। वज्रा ने अवशिष्ट मांस उसे परोस दिया। उसने सिर मांगा । वज्रा ने कहा-वह तो बालक को दे दिया । यह सुन ब्राह्मण रुष्ट हुआ। उसने कहा-सिर के लिए ही तो मैंने मुर्गे को मारा था। याद मैं इस बालक का सिर खाऊं तो राजा बन जाऊंगा। उसने मन ही मन बालक को मारकर उसका सिर खाने का निर्णय कर लिया। धाय ने ब्राह्मण और वज्रा के सारे वार्तालाप को सुन लिया। वह बालक को लेकर वहां से भाग गई। धायमाता और बालक दोनों वहां से किसी दूसरे नगर में पहुंचे। वहां का राजा अकस्मात् मर गया। उसके कोई संतान नहीं थी। परम्परानुसार घोड़े को घुमाया गया। प्रशिक्षित अश्व के द्वारा उसका अभिषेक हुआ। वह बालक अब राजा बन गया। इधर काष्ठ श्रेष्ठी अपने घर आ गया। उसने घर को पूरी तरह अस्त-व्यस्त पाया। उसने वज्रा से सारी स्थिति का जायजा लेना चाहा पर उसने कुछ भी नहीं बताया। पिंजरे से मुक्त तोते ने ब्राह्मण के साथ संबंध आदि की सारी बात श्रेष्ठी को कह दी। श्रेष्ठी को संसार के सही स्वरूप का ज्ञान हो गया। उसने सोचा मैं इसके लिए इतना कष्ट उठाता हूं और इसका असली रूप इस प्रकार का है। श्रेष्ठी का मन संसार से विरक्त हो गया। उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली। कुछ समय बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आया। वज्रा और ब्राह्मण दोनों अभावग्रस्त होकर घूमते-घूमते उसी नगर में पहुंच गए जहां उसका पुत्र राज्य करता था। मुनि के रूप में काष्ठ श्रेष्ठी का भी उसी नगर में पदार्पण हुआ। वज्रा ने मुनि को पहचान लिया। उसने मुनि को छलपूर्वक भिक्षा में स्वर्ण दिया व शोर मचाने लगी। आरक्षकों ने मुनि को पकड़ लिया और उसे राजा के पास ले गए। धाय ने मुनि को ध्यान से देखा । उसने मुनि को पहचान लिया और राजा को सारी स्थिति से अवगत कराया। राजा ने पिता को भोग के लिए निमन्त्रित किया। मुनि ने उसे स्वीकार नहीं किया। उसने राजा को संबोध प्रदान कर श्रावक बना दिया। वर्षावास पूर्ण हो गया । मुनि का अपयश कैसे हो, ऐसा सोचकर ब्राह्मण ने दासी को इस कार्य के लिए नियुक्त किया । दासी ने परिभ्रष्ट औरत (कुलटा) का रूप बनाया। वह गर्भवती के रूप में पीछे-पीछे चलने लगी। उसने मुनि को पकड़ लिया और कहने लगी-हे मुनि ! यह गर्भ तुम्हारा है । तुम इसे छोड़कर कहां जा रहे हो । मुनि ने सोचा-यह लोगों को भ्रांत करेगी तो प्रवचन की अप्रभावना होगी। अतः प्रवचन रक्षा के लिए उन्होंने कहा-यदि यह गर्भ मेरा हो तो प्रसव यथाविधि हो, अन्यथा यह पेट चीरकर बाहर निकले । समय आने पर उस दासी का पेट चीरकर (ऑपरेशन के द्वारा) प्रसव करवाना पड़ा । फलतः दासी की मृत्यु हो गई। लोगों ने यथार्थ जाना । प्रवचन की बहुत अधिक प्रभावना हुई । यह श्रेष्ठी की पारिणामिकी बुद्धि थी। १. (क) आवश्यक चूणि, पृ. ५५८,५५९ (ख) आवश्यक नियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८६ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२८ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६६ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १४० (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, १८२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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