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परिशिष्ट ३ : कथा
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चरते हुए जिस भूभाग को सूंघे, वहां पानी मिल जायेगा। राजा ने वैसा ही किया। पानी मिल गया । पानी मिलने पर सभी सैनिकों को राहत मिली। राजा संकट से उबर गया ।
८. लक्षण दृष्टान्त'
पारस देश में कोई घोड़े का व्यापारी रहता था। उसने एक व्यक्ति को अश्व रक्षक के रूप में रखा और उसे एक नियत कालावधि के पश्चात् अश्व रक्षा के मूल्य स्वरूप दो मन इच्छित अश्व देने का वादा किया। वह अश्व रक्षक अश्व स्वामी की पुत्री के साथ था। एक दिन उसने उससे (स्वामी की पुत्री से) पूछा-दो अच्छे अश्व कौनसे हैं ? उसने कहा-'पत्थरों से भरे हुए कुप्पे को वृक्ष के शिखर से गिराएं । उन पत्थरों के शब्द को सुनकर जो भयभीत न हों, वे अश्व अच्छे हैं।' अश्वरक्षक ने उसी विधि से घोड़ों का परीक्षण किया।
जब वेतन प्रदान करने का समय आया तो वह बोला-श्रेष्ठिवर ! मुझे अमुक-अमुक दोनों घोड़े प्रदान करें। व्यापारी यह बात सुन असमञ्जस में पड़ गया। उसने कहा--अन्य सारे घोड़ों को ले लो पर इनको मत लो। वह तो उन्हीं घोड़ों को चाहता था अत: उसने व्यापारी की बात को अस्वीकार कर दिया। उस व्यापारी ने अपनी पत्नी से कहा-हमें इस अश्वरक्षक को गृह जामाता के रूप में स्वीकार कर लेना चाहिए । अन्यथा यह इस श्रेष्ठ अश्वद्वय को लेकर चला जाएगा। पत्नी ऐसा नहीं चाहती थी। व्यापारी ने उसे समझाते हुए कहा--लक्षणसम्पन्न अश्व से अन्य बहुत से अश्वों को पैदा किया जा सकता है और उनका कुटुम्ब भी बढ़ जाता है। ये दोनों ही अश्व लक्षणसम्पन्न हैं अतः तुम मेरी बात को स्वीकार करो और इसे अपना गृह जामाता बना लो। आखिर पत्नी को पति की बात जच गई। उसने अपनी पुत्री का विवाह अश्वरक्षक के साथ कर दिया। अश्वरक्षक गृह जामाता बन गया। वे दोनों अश्व उसके घर में ही रहे । यह अश्वस्वामी की वैनयिकी बुद्धि थी। ९. ग्रन्थि दृष्टान्त'
पाटलिपुत्र नगर में मुरण्ड राजा शासन करता था। किसी विदेशी राजा ने दूत के माध्यम से तीन वस्तुएं भेजी-१. गूढ़ सूत्र (मोम से लिपटा सूत्र) २. समयष्टि (जिसके दोनों सिरे समान हों) ३. पेटी (लाख से लिपटी हुई जिसका मुंह दिखाई नहीं देता) । इन तीनों वस्तुओं के रहस्य की व्याख्या को मुरण्ड राजा से जानना चाहा-१. सूत्र का अन्त कहां है २. यष्टि का मूल भाग कहां है ३. पेटी का द्वार कहां है? राजा मुरण्ड ने ये वस्तुएं सभासदों के सामने रखीं पर कोई भी सभासद इसका रहस्य नहीं समझा सका। राजा ने पादलिप्त सूरि से पूछा-भगवन् ! क्या आप इनका रहस्य बताएंगे? उन्होंने कहा-हां मैं बता सकता हूं, बहुत अच्छी तरह बता सकता हूं।
पादलिप्त सूरि ने सूत्र को गरम पानी में डाला, उससे मोम पिघल गया। सूत्र का अन्त भाग पकड़ में आ गया। यष्टि को पानी में डाला, इसका गुरु भाग नीचे चला गया, आदि भाग पकड़ में आ गया।
पेटी को गरम पानी में डाला, लाख पिघल गई, द्वार प्रकट हो गया । राजा ने पादलिप्त सूरि को निवेदन किया-भगवन् ! आप भी कोई ऐसा दुर्विज्ञेय कौतुक करें, जिसे मैं वहां भेज सकूँ । आचार्य ने एक तुम्बा लिया। उसके एक स्थान में एक खंड को हटा कर (एक टुकड़ा काटकर) तुम्बे को रत्नों से भर दिया। पुनः उस खंड को तुम्बे पर लगाकर इस प्रकार सिलाई की कि कोई जान न सके।
राजा ने विदेशी राजा के दूतों को कहा-इस तुम्बे को तोड़े बिना रत्नों को ग्रहण करना है। उन लोगों ने बहुत प्रयत्न किया पर वे इसमें सफल नहीं हो सके । यह पादलिप्त सूरि की वैनयिकी बुद्धि थी।
१. (क) आवश्यकचूणि, पृ. ५५३,५५४
(ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८३ (ग) आवश्यकनियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२४ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १६१,१६२ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३८ (छ) आवश्यकनियुक्ति दीपिका, प. १८१
२. (क) आवश्यकचूणि, पृ.५५४ (ख) आवश्यकनियुक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २८३ (ग) आवश्यकरियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२४,५२५ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, १. १६२ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३८ (छ) आवश्यकनियुक्ति दीपिका, प. १८१
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