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________________ २१६ नंदी एक उपाध्याय राजपुत्रों को पढ़ा रहा था। उनका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। वे लाक्षा गोलकों से क्रीड़ा करते रहते, पढ़ाई नहीं करते । उपाध्याय ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। राजकुमारों की क्रीड़ा को शिक्षण में बदल दिया। वह राजकुमारों से लाक्षा गोलकों का प्रक्षेप वैसे करवाने लगा जिससे अक्षरों और अंकों का अंकन हो जाए। इस विधि से उसने राजकुमारों को समस्त लिपि और गणित सिखाया। उनके क्रीड़ा रस को भी नहीं रोका और अध्ययन भी करवा दिया। यह उपाध्याय की वैनयिकी बुद्धि है । यह कहानी आवश्यक हारिभद्रीया टिप्पणकम् में उपलब्ध है । ५. पष्ट किसी कुशल भूजलवेत्ता ने एक व्यक्ति से कहा- इतने गहरे में पानी है। उसने कुए की खुदाई की किन्तु पानी नहीं निकला । उसने भूजलवेत्ता को कहा- इतनी खुदाई कर लेने पर भी जल नहीं मिला। भूजलवेता ने कहा- पार्श्व की भूमि पर एडी से प्रहार करो 1 प्रहार के साथ ही पानी बाहर निकल गया । यह भूजलवेत्ता की वैनयिकी बुद्धि का उदाहरण है । ६. अश्व दृष्टान्त 1 अनेक अश्व व्यापारी द्वारिका गये। वहां सारे राजकुमारों ने स्थूल और बड़े छोटे अश्वों को खरीदा। वासुदेव ने एक छोटा, दुर्बल किंतु लक्षण सम्पन्न अश्व खरीदा। वह कार्यक्षम और अनेक घोड़ों का मुखिया बन गया । यह वासुदेव की वैनयिकी बुद्धि थी । ७. दुष्यन्त एक राजकुमार युवावस्था में राजा बना। युवा राजकुमार का युवकों की कर्मजाशक्ति में अति विश्वास था । उसने अपनी सेना से सभी वृद्ध पुरुषों को अवकाश दे दिया। उनके स्थान पर नवयुवकों की नियुक्तियां कर दीं। एक बार सेना के साथ जा रहा था। मार्ग में सघन अटवी आई। पानी के अभाव में तृषा से आकुल-व्याकुल हो गया । राजा किंकर्त्तव्यविमूढ़ हो गया। उन सैनिकों में से किसी एक सैनिक ने कहा- राजन् ! वृद्ध पुरुष की बुद्धि रूपी नौका के सिवाय अब कोई भी हमें इस आपत्ति रूपी समुद्र से पार पहुंचाने में समर्थ नहीं है। अतः आपसे मेरा सानुरोध निवेदन है कि किसी वृद्ध पुरुष की खोज की जाये । राजा ने वैसा ही किया । सम्पूर्ण सेना में उद्घोषणा करवा दी कि कोई वृद्ध पुरुष हो तो वह आगे आए। एक पितृभक्त सैनिक प्रच्छन्न रूप से अपने पिता को साथ लाया था । वह बोला - राजन् ! हुए उसने अपने पिता को राजा के सम्मुख उपस्थित कर दिया। राजा ने आदरपूर्वक वृद्ध से पूछा । अटवी में पानी कैसे मिलेगा ? वृद्ध ने कहा -स्वामिन्! कुछ गर्दभों को इस अटवी में स्वतन्त्र रूप से (ज) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, प. १३७ : लेहे जहा अट्ठारसलिविजाणतो । एवं गणिए वि । अण्णे भांतिवट्टेहि रमंतेणं अक्खराणि सिक्खाविता गणियं च । अयं भावार्थ:-खटि कामया गोलकास्तथोपाध्यायेन भूमौ पातिताः कुमाराणामक्षरशिक्षणाय यथा भूमावक्षराण्युत्पद्यन्ते । टिप्पणककार ने लेख का उल्लेख अठारह लिपि ज्ञाता के संदर्भ में किया है। मतान्तर में बतलाया गया है कि उपाध्याय ने खड़िया मिट्टी से बने हुए गोलों को भूमि पर इस प्रकार डाला जिससे अक्षरों की आकृति बन जाए। यह प्रयत्न कुमारों को अक्षर सिखाने के लिए किया गया है। (झ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १८० : लेखे - शिष्यः विध्यमाणः सर्वलिपीति । हंसलिवी १ भूयलिबी २ जक्खी ३ तह रक्खसी य ४ बोधव्वा । उड्डी ५ जवणि ६ तुरुक्की ७ कीरी ८ दविडी ९ Jain Education International य सिंधवीया १० मालविणी ११ ॥ मेरा पिता वृद्ध है ऐसा कहते महाभाग ! कहिए सेना को चरने छोड़ दिया जाए । वे नडि १२ नागरी १३ ताडलिवी १४ पारसी १५ य बोधव्वा । तह अनिमित्तीयलिवी १६ चाणिकी १७ मूलदेवी १८ य ॥ गणितं एकादिपरावेति । १२. (क) आवश्यक चूर्णि पृ. ५५३ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ० २८३ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगरीया वृत्ति, प. ५२४ (घ) नन्दी मलयगिरीवा वृत्ति प. १६१ (च) नन्दी हारिनीया वृत्ति टिप्पणकम् पृ. १२० (छ) आवश्यकनिर्मुक्ति ३. (क) आवश्यक पू. ५५३ , (ख) आवश्यकमिति हारिमा वृत्ति पू. २०३ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२४ (घ) नदी मलयगिति ११ (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम्, पृ. १३७-१३८ (छ) आवश्यकनिर्युति दीपिका, प. १८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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