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________________ परिशिष्ट ३ : कथा २०३ लड्डु ! तुम इस द्वार से निकल जाओ। ग्रामीण द्वारा बार-बार कहने पर भी लड्डु ज्यों का त्यों पड़ा रहा। ग्रामीण ने साक्षियों के सामने सिद्ध कर दिया कि शर्त के अनुसार नागरिक को यही लड्डु मिलना चाहिए। यह नागरिक की औत्पत्तिकी बुद्धि का चमत्कार है । ३. वृक्ष दृष्टांत ' कुछ यात्रियों ने जंगल में एक आम का पेड़ देखा जो फलों से लदा हुआ था । आम देखकर उनके मुंह में पानी भर आया । वृक्ष पर कुछ बंदर बैठे थे। यात्रियों ने एक उपाय सोचा और वे बंदरों पर पत्थर फेंकने लगे। बंदर कुपित हुए और आम तोड़कर यात्रियों पर बरसाने लगे। यात्रियों को सफलता मिल गई । ४. मुद्रिका दृष्टांत राजगृह नगर में महाराज श्रेणिक राज्य करते थे। एक बार उन्होंने एक खाली कुएं में अंगूठी डाल दी और घोषणा कराई कि जो व्यक्ति बाहर खड़ा अंगूठी निकाल देगा उसे पुरस्कृत किया जाएगा। अनेक व्यक्ति अपना-अपना भाग्य परखने के लिए उत्सुक थे किन्तु किसी को कोई उपाय नहीं सूझा । घटना स्थल पर अभयकुमार पहुंचा। उसने पास में पड़ा हुआ गोबर उठाया और अंगूठी पर गिरा दिया अंगूठी उससे चिपक गई। उस पर अग्नि डाली, वह सूख गया। फिर कुएं को पानी से भर दिया। गोबर में लिपटी हुई अंगूठी पानी पर तैर आई । अभयकुमार ने अंगूठी निकालकर राजपुरुषों को दे दी। राजा को स्थिति से अवगत किया गया। अभयकुमार की विलक्षण प्रतिभा देखकर राजा ने उसको प्रधानमन्त्री के पद पर नियुक्त कर दिया । ५. वस्त्रखण्ड दृष्टान्त' उन्होंने कपड़े उतार कर किनारे पर रख दिए। एक व्यक्ति के वस्त्रों में तालाब पर दो व्यक्ति एक साथ स्नान करने गए । बहुमूल्य रेशमी चद्दर थी और दूसरे के पास साधारण कम्बल कम्बल का स्वामी स्नान करके पहले बाहर आया और रेशमी चद्दर लेकर वहां से रवाना हो गया । चद्दर का स्वामी दौड़कर बाहर आया और उसे पुकारने लगा किन्तु उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा । चद्दरवाले ने उसका पीछा किया और गांव तक पहुंचते-पहुंचते वह चद्दर चुरानेवाले के पास पहुंच गया । उसने चद्दर देने से इन्कार कर दिया । चद्दर के स्वामी ने राजकुल में शिकायत की। न्यायाधीश ने बुद्धिबल से काम लिया। उसने दोनों के बालों में कंघी करवाई । जो व्यक्ति कम्बल का स्वामी था उसके बालों में ऊन के तार निकले। न्यायाधीश ने उसके आधार पर चद्दर के स्वामी को उसकी चद्दर लौटा दी । ६. दृष्ट एक व्यक्ति शौच के लिए गया । असावधानी से वह एक बिल पर बैठ गया। अचानक एक गिरगिट उसके गुदा भाग का स्पर्श करके बिल में घुस गया। उस व्यक्ति के मन में सन्देह हो गया कि गिरगिट मेरे पेट में चला गया। इस भ्रम के कारण वह सुस्त रहने लगा । कुछ दिनों में ही उसका शरीर कृश हो गया । एक दिन वह वैद्य के पास पहुंचा और आदि से अन्त तक सारी स्थिति बता दी । वैद्य ने उसका सब प्रकार से परीक्षण १. (क) आवश्यक चूर्ण, पृ. ५४६ ३. (क) आवश्यक चूर्णि, पृ. ५४७ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. २७८ (ख) आवश्यक निर्वक्ति हारिचीया यसि पू. २७९ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति. प. ५१९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५० (च) नन्दी हारिभद्रीया वृत्ति टिप्पणकम् पृ. १३४ (घ) आवश्यक नियुक्तिका १७८ २. (क) आवश्यक पू. ५४६,५४७ (ख) आवश्यक निर्युक्ति हारिभद्रया वृत्ति, पृ. २७८, २७९ (ग) आवश्यक नियुक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५१९ (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५०, १५१ (च) नदी हारिमा वृत्ति टिप्पणम् पृ. १२४ (छ) आवश्यक नियुक्ति दीपिका, प. १७८ Jain Education International (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५१९, ५२० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५१,१५२ (च) नदी हारिभद्रया वृत्ति दियकम् पृ. १३४ (छ) आवश्यकनियंत्रित १७८ ४. (क) आवश्यक चूर्णि, पृ. ५४७ (ख) आवश्यक निति हारिभद्रया वृत्ति, पू. २७९ (ग) आवश्यक निर्युक्ति मलयगिरीया वृत्ति, प. ५२० (घ) नन्दी मलयगिरीया वृत्ति, प. १५२ (च) नन्दी हारिभावृत्ति. १३५ (घ) आवश्यकनिर्मुक्ति दीपिका, प. १७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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