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________________ २०० नंदी यावणियाणं २७-३१. निरयावलियाणं कप्पियाणं हां इन सबका उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त कप्पडिसियाणं पुफियाणं पुप्फचलियाणं (वण्हि- होता है। याणं) बहिदसाणं ३२. आसीविसभावणाणं ३३. दिदिविसभावणाणं ३४. चारणभावणाणं ३५. सुमिणभावणाणं ३६. महासुमिणभावणाणं ३७. तेयग्गिनिसग्गाणं? सव्वेसि पि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ॥ १०.जइ अंगपविद्वस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो १०. यदि अंगप्रविष्ट श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और य पवत्तइ, कि १. आयारस्स २. सूयगडस्स अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या १. आचार २. सूत्रकृत ३. स्थान ४. ३. ठाणस्स ४. समवायस्स ५. वियाहपण्णत्तीए समवाय ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञातधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. ६. नायाधम्मकहाणं ७. उवासगदसाणं ८. अंतगड- अन्तकृतदशा ९. अनुत्तरोपपातिकदशा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकदसाणं . अणुत्तरोववाइयदसाणं १०. पण्हावागर- श्रुत १२. दृष्टिवाद का होता है ? णाणं ११.विवागसुयस्स १२. दिट्ठिवायस्स? हां इन सबका उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त सवेसि पि एएसि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो होता है। प्रस्तुत प्रस्थापना की दृष्टि से इस साधु के लिए, इस साध्वी य पवत्तइ। इमं पुण पट्ठवणं पडुच्च इमस्स साहुस्स के लिए (अमुक श्रुत का) उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग इमाए साहुणोए (अमुगस्स सुयस्स) उद्देसो समुद्देसो प्रवृत्त होता है। क्षमाश्रमणों के हाथ से सूत्र, अर्थ और तदुभय से अणण्णा अणुओगो य पवत्तइ । खमासमणाणं हत्थेणं उद्देश करता हूं, समुद्देश करता हूं, अनुज्ञा करता हूं। सुतेणं अत्थेणं तदुभएणं उद्देसामि समुद्देसामि अणुजाणामि ।। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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