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________________ १६६ परिशिष्ट २ : जोगनंदी ६. जइ आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अगुण्ण। अणुओगो६. यदि आवश्यक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग य पवत्तइ, किं १. सामाइयस्स २. चउवीसत्थयस्स प्रवृत्त होता है तो क्या १. सामायिक २. चतुर्विंशतिस्तव ३. वंदना ३. वंदणस्स ४. पडिक्कमणस्स ५. काउस्सग्गस्स ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग ६. प्रत्याख्यान का होता है ? ६. पच्चक्वाणस्स ? सव्वेसि एतेसि उद्दसो समुद्दसो हां इन सबका उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ॥ ७. जइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा ७. यदि आवश्यकव्यतिरिक्त श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अणुओगो य पवतइ, कि कालियसुयस्स उद्देसो अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा समुद्देसो अशुण्णा अणुओगो य पवत्तइ ? उक्कालिय- और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? अथवा उत्कालिक श्रुत का उद्देश सुयस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य समुदेश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त होता है ? पवत्तइ ? कालियस्स वि उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा कालिक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग अणुओगो य पवत्तइ, उक्कालियस्स वि उद्देसो प्रवृत्त होता है, उत्कालिक श्रुत का भी उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो य पदत्तइ ॥ और अनुयोग प्रवृत्त होता है । ८. जइ उक्कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अगुओगो ८. यदि उत्कालिक श्रुत का उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और य पवत्तइ, किं १. दसवेकालियस्स २. कप्पियाकप्पि- अनुयोग प्रवृत्त होता है तो क्या १. दशवकालिक २. कल्पिकाकल्पिक यस्स ३. चुल्लकप्पसुयस्स ४. महाकप्पसुयस्स ३. क्षुल्लककल्पश्रुत ४ महाकल्पश्रुत ५. औपपातिकश्रत ६. राजप्रश्नीय५. उववाइयसुयस्स ६. रायपसेणीयसुयस्स श्रुत ८. जीवाभिगम ८. प्रज्ञापना ९. महाप्रज्ञापना १०. प्रमादाप्रमाद ७. जीवाभिगमस्स ८. पण्णवणाए ६. महापण्ण- ११. नन्दी १२. अनुयोगद्वार १३. देवेन्द्रस्तव १८. तन्दुलवैचारिक १५. ११. नंदीए १५. चन्द्रकवेध्यक १६. सूरप्रज्ञप्ति १७ पौरुषीमण्डल १८. मण्डल१२. अणुओगदाराई १३. देविदथयस्स १४. तंदुल- प्रवेश १९. विद्याचरणविनिश्चय २०. गणिविद्या २१. संखेलनाश्रुत वेयालियस्स १५. चंदाविज्झयस्स १६. सूरपण्णत्तीए २२. विहारकल्प २३. वीतरागश्रुत २४. ध्यानविभक्ति २५. मरण१७. पोरिसिमंडलस्म १८. मंडलप्पवेसस्स १६. विभक्ति २६. मरणविशोधि २७. आत्मविभक्ति २८. आत्मविशोधि विज्जाचरणविणिच्छियस्स २०. गणिविज्जाए २९. चरणविशोधि ३०. आतुरप्रत्याख्यान ३१. महाप्रत्याख्यान का २१. संलेहणासुयस्स २२. विहारकप्पस्स २३. होता है ? वीयरागसूयस्स २४. झाणविभत्तीए २५. मरण- हां इन सबका उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग प्रवृत्त विभतीए २६. मरणविसोहीए २७. आयविभत्तीए होता है। २८. आयविसोहीए २६. चरणविसोहीए ३०. आउरपच्चक्खाणस्स ३१. महापच्चक्खाणस्स? सव्वेसि एएसि उद्देसो समुद्देसा अणुण्णा अणुओगो य पवत्तइ॥ ६. जइ कालियस्स उद्देसो समुद्देसो अगुण्णा अणुओगो ९. यदि कालिकश्रुत का उद्देश समुद्देश, अनुज्ञा और अनुयोग य पवत्तइ, कि १. उत्तरज्झयणाणं २. दसाणं प्रवृत्त होता है तो क्या १ उत्तराध्ययन २. दशा ३. कल्प ४. व्यवहार ३.कप्पस्स ४. ववहारस्स ५. निसीहस्स ६. महा- ५. निशीथ ६. महानिशीथ ७ ऋषिभाषित ८. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति ९. निसोहस्स ७. इसिभासियाणं ८. जंबुद्दीवपण्णत्तोए चन्द्रप्रज्ञप्ति १०. द्वीपप्रज्ञप्ति ११. सागरप्रज्ञप्ति १२ क्षुल्लिकाविमान8. चंदपण्णत्तीए १०. दीवपण्णत्तीए ११. सागर- प्रविभक्ति १३ महती विमानप्रविभक्ति १४. अंगचूलिका १५ वर्गपण्णत्तीए १२. खुड्डियाविमाणपविभत्तीए १३. चूलिका १६. व्याख्याचूलिका १७. अरुणोपपात १८. वरुणोपपात १९. महल्लियाविमाणपविभत्तीए १४. अंगलियाए गरुडोपपात २०, धरणोपपात २१. वैश्रमणोपपात २२. वेलन्धरोपपात १५. वग्गचूलियाए १६. वियाहचुलियाए १७. २३. देवेन्द्रोपपात २४. उत्थानश्रुत २५. समुत्थानश्रत २६. नागअरुणोक्वायस्स १८. वरुणोववायस्स १६. गरुलोव- पर्यापनिका २७-३१. निरयावलिका, कल्पिका, कल्पवतंसिका, पुष्पिका, वायस्स २०. धरणोववायस्स २१. वेसमणोववायस्स पुष्पचूलिका, (वृष्णिका) वृष्णिदशा । ३२. आशीविषभावना ३३. २२. वेलंधरोववायस्स २३. देविदोववायस्स २४. दृष्टिविषभावना ३४. चारणभावना ३५. स्वप्नभावना ३६. महाउदाणसुयस्स २५. समुठाणसुयस्स २६. नागपरि- स्वप्नभावना ३७. तेजोग्निनिसर्ग का होता है ? Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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