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________________ परिशिष्ट : १ अणुष्णानंदी १२. से किं तं सचिता वाणुष्णा ? सचिता दव्याण्णा - से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा ईसरे इ वा तलवरे वा माबिए वा कोबिए ६ वा इ इ इ इन्भे इवा सेट्ठी इ वा सेणावई इ वा सत्थवाहे इवा करसइ कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे आसं वा हस्थि वा उट्टं वा गोणं वा खरं वा घोडयं वा एलयं वा अयं वा दासं वा दासि वा अणुजाना। सेतं सविता दवाणुष्णा। १३. से किं तं अचित्ता बयाणा ? अचित्ता दयागुण्णा- - से जहाणामए राया इ वा जुवराया इवा ईसरे इ वा तलवरे या माबिए इ वा कोबिए वाइवा सेट्ठी इवा सेणावई इ वा सत्यवाहे इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे आसणं वा सयणं वा छत्तं वा चामरं वा पडगं वा मउडं वा हिरणं वा सुवणं वा कंसं वा दूर्त वा मणि-मोत्तिय संख - सिलप्पवाल-रत्तरयणमादीयं संत-सार-सावइमं अणुजाणिज्जा। सेतं अचित्ता दयाणा || १४. से कि तं मीसिया दव्याणुष्णा ? मीसिया दयागुण्णा - से जहाणामए राया इ वा जुवराया इ वा ईसरे इ वा तलवरे ६ वा माबिए वा कोबिए इ वा इमे इ वा सेट्ठी इ वा सेणावई इ वा सत्यवाहे इ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे हत्थि वा मुहमंडयमंडियं आसं वा वासव चामरमंडियं कडगं दासं वा दासि वा सव्वालंकारविभूसियं अणुजाणिज्जा से मोसिया दवाणुण्णा । सेतं लोइया बन्याणुष्णा ॥ १५. से कि तं कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा ? कुप्पावयणिया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहासविता अविता मीसिया ॥ १६. से कि तं सचित्ता दाणा ? सचित्ता दव्वागुण्णा - से जहाणामए आयरिए इ वा उवज्झाए इ इवा करसइ कम्मि कारणे तुट्ठे समाने आसं वा हस्थि वा उट्टं वा गोणं वा खरं वा घोडं वा अयं या एल वा दासं वा दासि वा अणुजाणिज्जा सेतं सचिता दव्याण्णा ॥ 1 इ १७. से कि तं अविता दव्यागुण्णा ? अचित्ता दवागुणा से जहानामए आयरिए इ वा उवज्झाए वो करसइ कम्मि कारणे तुट्ठे समाणे आसणं वा सघणं वा छतं वा चामरं व पटट (पडगं ?) वा मउड वा हिरणं वा सुवणं वा कंसं वा दूसं वा मणि-मोत्तिय Jain Education International १२. वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? सचित्त द्रव्यअनुज्ञा-जैसे कोई राजा, युवराज, तलवर (कोतवाल), मडम्बपति, कुटुम्बपति, इभ्य, सेठ, सेनापति अथवा सार्थवाह किसी पर किसी कारण से तुष्ट होने पर घोड़े, हाथी, ऊंट, बैल, गधे, घोटक ( खच्चर), भेड़, बकरे, दास अथवा दासी के लिए अनुज्ञा दे। वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा है । १६५ 1 १३. वह अचित्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? अचित्त द्रव्यअनुज्ञा-जैसे कोई राजा युवराज तलवर (कोतवाल), मडम्वपति कुम्बति इभ्य सेठ, सेनापति अथवा सार्थवाह किसी पर किसी कारण से तुष्ट होने पर आसन, शयन, छत्र, चामर, पताका, मुकुट, हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दृष्य, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि तथा श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य एवं स्वापतेय (दान, भोग आदि के लिए स्वाधीनता पूर्वक व्यय किए जाने वाले धन की अनुज्ञा देव अचित्त द्रव्यअनुज्ञा है । १४. वह मिश्र द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? मिश्र द्रव्यअनुज्ञा - जैसे कोई राजा, युवराज तलवर (कोतवाल) मम्पति पति इभ्य सेठ, सेनापति अथवा सार्थवाह किसी पर किसी कारण से तुष्ट होने पर मुखभाण्ड (मुखालंकार) से मण्डित हाथी, स्थासक और चामर से मण्डित अश्व, कड़े सहित दास अथवा सत्र अलंकारों से विभूषित दासी के लिए अनुज्ञा दे यह अनुज्ञा है है । १५. वह प्राचनिक द्रव्यअनुज्ञा क्या है? कुप्रावयनिक द्रव्यअनुज्ञा के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—- सचित्त, अचित्त मिश्र । १६. वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? सचित्त द्रव्यअनुज्ञा जैसे कोई आचार्य अथवा उपाध्याय किसी पर किसी कारण से तुष्ट होने परपोड़े, हाथी, अंड, बैल, गधे, पोट (ख), बकरे, भेड़ पा अथवा दासी के लिए अनुज्ञा दे । वह सचित्त द्रव्यअनुज्ञा है । दास १७. वह अचित्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? अचित्त द्रव्यअनुज्ञा-जैसे कोई आचार्य अथवा उपाध्याय किसी पर किसी कारण से तुष्ट होनेपर आसन, शयन, छत्र, पामर, पट्ट ( पताका?) मुकुट, हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, दृष्य, मणि, मौक्तिक, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न आदि तथा श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्य एवं स्वापतेय (दान भोग आदि के लिए स्वाधीनतापूर्वक For Private & Personal Use Only T www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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