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________________ * गगमस एगे अणुवडते आगमतो एगा दण्यागुण्णा, दोण्णि अगुवउत्ता आगमतो दोणि दध्वागुण्णाओ, तिष्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णि दस्त्राणाओ एवं जावतिया अणुवत्ता तावतियाओ दव्वाणुण्णाओ । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स एगे वा अणेगे वा अणुवत्तो वा अगुवउत्ता वा दव्वाणुण्णा वा दव्वाणुष्णाओ वा सा एगा दव्वाण्णा । उज्जुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमतो एगा दव्वाणुण्णा, पुहतं नेच्छइ । तिन्हं सद्दणयाणं जाणए अणुवउत्ते अवत्थू । कम्हा ? जति जाणए अणुवउसे न भवति। सेतं आगमतो दव्वाणुष्णा ॥ ७. से कि तं नोआगमतो दव्वाणुष्णा ? नोआगमतो दवाणपणा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - जाणगसरीरदव्वाणुण्णा भवियसरीरदव्वाणुष्णा जागगसरीरमवियसरीरवइरित्ता दव्यागुण्णा ।। ८. म से फि तं जाणगसरीरव्याण्णा ? जणगसरीरदव्यः णुष्णा-'अनुष्ण' ति पदस्थाहिगारजणगस्त गं सरीरं ववनयचतचइयचत्तवेहं जीवविप्पज सिज्जागयं वा संभारगवं वा निसोहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएगं [जिणदिट्ठेणं भावेणं ? ] 'अणुष्ण' त्ति पयं आघवियं पण्णवियं परूवियं दंसियं णिवंसियं उबवंसियं । जहा को दिटतो ? अयं पकने आसी, अयं महकमे आसो । सेत्तं जाणगसरीरदव्वाणुष्णा ॥ ६. से कि तं भवियसरी रदव्वाणुण्णा ? भवियसरीरदव्वाण्णा जे जीवे जोणीजम्मणणिक्खते इमेणं चेव तरोरसमसस्सएवं आदतेणं जिणदिट्ठेणं भावेणं 'अणुष्ण' ति पयं सेवकाले सिक्सिस, न ताव सिक्ख । जहा को दितो ? अयं घयकुंभे भविस्सति, अयं महुकुंभे भविस्सति । सेत्तं भवियसरीरव्याण्णा | १०. से कि जाणगसरीरभवियसरीरवइरित्ता दाणा ? जाणगसरीरमवियसरीरवइरिता दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा लोइया कृष्णावणिया लोउत्तरिया व ॥ ११. सेक लोदवाना ? लोइया चयाणा तिविहा पण्णता, तं जहा - सचित्ता अचित्ता मोसिया ॥ Jain Education International नंदी गमन की अपेक्षा एक अनुपयुक्त (बिस की प्रवृत्ति से शून्य ) व्यक्ति आगमतः एक द्रव्यअनुज्ञा है, दो अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः दो द्रव्यअनुज्ञा हैं, तीन अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः तीन द्रव्यअनुज्ञा हैं । इस प्रकार जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं, नैगमनय की अपेक्षा उतने ही आगमतः द्रव्यअनुज्ञा हैं। इसी प्रकार व्यवहारनय की अपेक्षा भी जितने अनुपयुक्त व्यक्ति हैं उतने ही आगमतः द्रव्य अनुज्ञा हैं । संग्रह्नय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति है या अनेक अनुपयुक्त व्यक्ति हैं आगमतः एक द्रव्यअनुज्ञा है अथवा अनेक द्रव्यअनुज्ञा हैं, वह एक द्रव्यअनुज्ञा है । ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक अनुपयुक्त व्यक्ति आगमतः एक द्रव्यअनुज्ञा है । भिन्नता उसे इष्ट नहीं । तीन शब्दनयों (शब्द, समभिद्र और एवंभूत) की अपेक्षा अनुपयुक्त हाता अवस्तु ( वास्तविक नहीं है। क्योंकि यदि कोई ज्ञाता है तो वह अनुपयुक्त नहीं होता। वह आगमतः द्रव्यअनुज्ञा है । ७. वह नोआगमतः द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? नोआगमतः द्रव्यअनुज्ञा के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे—ज्ञशरीर द्रव्यअनुज्ञा, भव्यशरीर द्रव्यअनुज्ञा, ज्ञशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्यअनुज्ञा । ८. वह ज्ञशरीर द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? ज्ञशरीर द्रव्यअनुज्ञा - अनुता इस पद के अधिकार को जानने वाले व्यक्ति का जो शरीर अवेतन प्राण से च्युत, किसी निमित्त मे शापच्युत किया हुआ अनशन द्वारा वक्त वा जीवविप्रमुक्त है, उसे शय्या विधीने श्मशानभूमि या सिद्धशिलातल पर देखकर कोई कहे आश्चर्य है इस पौद्गलिक शरीर ने (जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार ? ) 'अनुज्ञा' इस पद का आख्यान, प्रज्ञापन प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया है जैसे कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहा इसका दृष्टान्त यह है) यह घुतघट था, यह मधुघट था। वहु ज्ञशरीर द्रव्यअनुज्ञा है । ९. वह भव्य शरीर द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? भव्यशरीर द्रव्यअनुज्ञा -- गर्भ की पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त पौद्गलिक शरीर से 'अनुज्ञा' इस पद को जिन द्वारा उपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में नहीं सीखता है, तब तक वह भव्यशरीर द्रव्यअनुज्ञा है। जैसे कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहाइसका दष्टान्त यह है) यह घृतबट होगा, यह मधुघट होगा। वह भव्यशरीर द्रव्यअनुज्ञा है । १०. वह ज्ञशरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्यअनुज्ञा क्या है ? शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य के तीन प्रकार प्रज्ञप्त है, जैसे लौकिक, कुप्राचनिक और रिक ११. वह लौकिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है? लौकिक द्रव्यअनुज्ञा के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे- सचित्त, अचित्त, मिश्र । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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