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________________ प्र०५, सू०७६-६१, टि० ३,४ १६५ ५. भाषा--मुनि के लिए वक्तव्य भाषा-सत्य भाषा और व्यवहार भाषा । ६. अभाषा-मुनि के लिए अवक्तव्य भाषा-असत्य भाषा और मिश्र (सत्यमृषा) भाषा । ७. चरण-व्रत, समिति आदि । ८. करण-आहार विशुद्धि । ९. यात्रा-मात्रा-वृत्ति-संयम यात्रा के निर्वाह के लिए प्रमाण युक्त आहार ग्रहण करना । आचार के प्रतिपाद्य विषयों का संक्षिप्त वर्गीकरण पांच आचार के रूप में किया गया है१. ज्ञानाचार २. दर्शनाचार ३. चरित्राचार ४. तपाचार ५. वीर्याचार। समवाओ में आचार में प्रतिपाद्य विषय की सूची लम्बी है । उसमें खड़े होना, चलना, चंक्रमण करना, समिति, गुप्ति आदि अनेक विषयों का उल्लेख है।' जयधवला में आचार के प्रतिपाद्य विषय का संक्षिप्त विवरण है । उसके अनुसार संयमपूर्वक चलना, खड़ा होना, बैठना, सोना, खाना और बोलना इत्यादि वणित है।' वाचना इसका अर्थ है-अध्यापन । सूत्रपद का अध्यापन सूत्र की वाचना और अर्थपद का अध्यापन अर्थ की वाचना है।' बाचना सीमित होती है । देवधिगणी ने आगमों का संकलन किया, उस समय उनके सामने दो प्रमुख वाचनाएं थी १. माथुरी वाचना २. वालभी वाचना उत्तरवर्ती आदर्णी (प्रतियों) के अध्ययन से प्रतीत होता है कि कुछ अन्य वाचनाएं भी रही हैं। अनुयोगद्वार अनुयोग के मुख्यतः चार प्रकार हैं१. उपक्रम २. निक्षेप ३. अनुगम ४. नय। आचाराङ्ग के अध्ययन संख्येय हैं और अनुयोगद्वार सूत्रप्रतिबद्ध नहीं है वह प्रज्ञापक पर निर्भर है। प्रज्ञापक शिष्य को संख्येय अनुयोगद्वारों का ही ज्ञान कराता है।" वेडा व्याख्याकारों ने इसका अर्थ छन्द जाति अथवा छन्द विशेष किया है।' श्लोक आचाराङ्ग की रचना शैली चौर्ण है । इस शैली में गद्य के साथ पद्य का भी भाग होता है । इसीलिए संख्येय श्लोकों का निर्देश है। द्रष्टव्य-आचारांग भाष्यम्, भूमिका पृष्ठ २३ । १. समवाओ, प्रकीर्णक समवाय, सू. ८९ करणं च अणि योगद्दारा, ते आयारे संखेज्जा, तेसि पण्णव२. कषायपाहुड, पृ. १२२ : गवयणगोयरत्तणतो। जदं चरे जदं चिट्ठे जदमासे जदं सए। (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ७६ जदं भुजेज्ज भासेज्ज एवं पावं ण बज्झइ । ६. (क) नन्दी चूणि, पृ.६२ ३. नन्दी चूणि, पृ. ६२ (ख) हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ७६ ४. अणुओगदाराई, सू. ७५ (ग) मलयगिरीया वृत्ति, प. २१० ५. (क) नन्दी चूणि, पृ, ६२ : उवक्कमादि णामादिणिक्खेव Jain Education Intemational ucation Intermational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003616
Book TitleAgam 31 Chulika 01 Nandi Sutra Nandi Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size9 MB
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