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भूमिका विषय वस्तु
प्रस्तुत आगम की विषय-वस्तु ज्ञान मीमांसा है। प्रारम्भ में स्थविरावली की ४४ गाथाएं हैं। उनमें महावीर स्तुति, संघ स्तुति, तीर्थकरावली, गणधरावली, शासनस्तुति और स्थविरावली है। अन्तिम तीन गाथाओं में आगमकार ने अपने आचार्य दूष्यगणी तथा अन्य आगमधरों को नमस्कार किया है। भगवती और स्थानांग में ज्ञान के विषय में संक्षिप्त विवरण मिलता है, किंत उसकी व्यवस्थित रूपरेखा प्रस्तुत आगम में ही उपलब्ध है। ज्ञान विषयक चर्चा के विषय में प्रस्तुत आगम को देखने के संकेत अनेक आगमों में मिलते हैं
१. समवाओ (८८/२) जहा नंदीए २. भगवती (८/१०२) जहा नंदीए
भगवती (८/१८६,१८७) जहा नंदीए भगवती (२५/९७) जहा नंदीए ३. रायपसेणइयं (७४१-७४३) जहा नंदीए
ये संकेत आगम वाचना काल में स्वयं देववाचक ने किए अथवा उत्तरकाल में किसी संक्षिप्त लिपि करने वालों ने, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता, किन्तु यह तथ्य निश्चित है कि ज्ञान मीमांसा की दृष्टि से प्रस्तुत आगम सर्वाधिक व्यवस्थित है। इसकी विषय वस्तु अन्य आगमों से उद्धृत या संकलित है-इस स्थापना की पुष्टि के लिए कोई प्रामाणिक स्रोत उपलब्ध नहीं। नंदीसूत्र में ज्ञान के विषय में कुछ नए सिद्धांत हैं, वे उपलब्ध किसी भी आगम में नहीं हैं। भगवती में ज्ञान की मीमांसा के लिए 'रायपसेणइय' सूत्र देखने का संकेत मिलता है और रायपसेणइय में नंदीसूत्र को देखने का संकेत है। प्रज्ञापना में अवधिज्ञान के दो प्रकार उपलब्ध हैं-देशावधि और सर्वावधि ।' प्रस्तुत आगम में देशावधि और सर्वावधि का उल्लेख नहीं है केवल परमावधि का उल्लेख मिलता है।' गोम्मटसार में अवधिज्ञान के तीन प्रकार मिलते हैं-देशावधि, परमावधि और सर्वावधि।'
प्रस्तुत आगम में अवधिज्ञान के छः प्रकार किए गए हैं, उनमें पहला प्रकार आनुगामिक है, उसके दो प्रकार हैं-अन्तगत और मध्यगत ।' यह विषय अन्य किसी भी उपलब्ध आगम में नहीं है । प्रतीत होता है देवद्धिगणी ने यह पूरा प्रकरण ज्ञानप्रवाद पूर्व से लिया था। इस दृष्टि से नंदी सूत्र का मुख्य आधार ज्ञान प्रवाद पूर्व हो सकता है। स्थानांग, समवायांग, भगवती आदि इसके आधार नहीं । ज्ञान प्रवाद चौदह पूर्वो में पांचवां पूर्व है, उसकी विशाल ग्रंथ राशि में केवल ज्ञान का ही निरूपण है।'
प्रस्तुत आगम के इस प्रकरण से एक चिर जिज्ञासित प्रश्न का समाधान होता है। कहा जाता है कि तंत्र शास्त्र और हठयोग में चक्रों का निरूपण है, किंतु जैन साहित्य में उनका कोई निरूपण नहीं है। ध्यान की पद्धति छूट जाने के कारण इस प्रश्न का उत्तर खोजा भी नहीं गया। हरिभद्रसूरी, शुभचन्द्र, हेमचन्द्र आदि आचार्यों ने अपने योग ग्रन्थों में हठयोग का समावेश किया, किंतु जैन साहित्य में उपलब्ध चक्रों की ओर ध्यान नहीं दिया। देशावधि ज्ञान चक्र सिद्धांत का मौलिक आधार है। नंदी सूत्र में देशावधि और सर्वावधि का उल्लेख नहीं है, किंतु उनकी व्याख्या बहुत विस्तार से मिलती है। अन्तगत देशावधि का सूचक है और मध्यगत सर्वावधि का सूचक है । अन्तगत अवधिज्ञान के तीन प्रकार हैं
१. पुरतः अन्तगत २. पृष्ठतः अन्तगत ३. पार्श्वत: अन्तगत । चूर्णिकार और हरिभद्रसूरी ने अन्तगत शब्द के अनेक अर्थ किए हैं१. यह औदारिक शरीर के पर्यन्त भाग में स्थित होता है, इसलिए अन्तगत है।
१. उवंगसुत्ताणि, पण्णवणा, ३३३३३ २. नवसुत्ताणि, नंदी, सू. १८ गा. २ ३. गोम्मटसार जीवकाण्ड, ३७३ :
भवपच्चइगो ओही, देसोही होदि परमसव्वोही । गुणपच्चइगो णियमा, देसोही वि य गुणे होदि ॥
४. नवसुत्ताणि, नंदी, सू. ९ ५. वही, सू. १० ६. नंदी चूणि, पृ.७५ : पंचमं णाणप्पवाद ति तम्मि णाणाइपंचकस्स सप्रमेवं प्रावणा जम्हा कता तम्हा गाणप्पवाद, तम्मि पदपरिमाणं एका पदकोडी एक पदूणा।
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